scorecardresearch

Wonder Plant Hemp Part-2: क्या भारत में इतना आसान है भांग उगाना? जानें हेम्प की खेती का प्रोसेस और इसमें आने वाली परेशानियों के बारे में

Wonder Plant Hemp: उत्तराखंड में Hemp की खेती करने की जद्दोजहद अभी भी जारी है. इसी को आसान बनाने के लिए नई हेम्प पॉलिसी का ड्राफ्ट (Uttarakhand Hemp Policy Draft) जारी किया गया है. जिसको जल्द ही लागू किया जा सकता है. उत्तराखंड को देखते हुए हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश भी अपनी-अपनी हेम्प पॉलिसी पर काम कर रहे हैं.

Wonder Plant Hemp Part-2 Wonder Plant Hemp Part-2
हाइलाइट्स
  • हेम्प की खेती के लिए लेना होता है लाइसेंस 

  • हेम्प के बीज लेने में आती है परेशानी

करीब 3400 साल का इतिहास लिए भांग के पौधे को अक्सर नशीले पदार्थ से जोड़कर देखा जाता रहा है. जिसके कारण इससे होने वाले फायदे कहीं न कहीं छिप गए हैं. लेकिन 2018 के बाद से जब से उत्तराखंड ने इसकी खेती की इजाजत दी है तबसे इसपर चर्चा होनी शुरू हो गई है. उत्तराखंड देश का पहला राज्य है जिसने भांग या हेम्प (Hemp) की खेती को वैध करने का निर्णय लिया है. यही वजह है कि देश में लगातार हेम्प और इससे बनने वाले प्रोडक्ट डेवलप हो रहे हैं. इस पौधे के लगभग हर हिस्से से बना प्रोडक्ट मार्केट में देखने को मिल रहा है. इसके सीड का और फाइबर का इस्तेमाल किया जा रहा है. फाइबर से रेशा और उससे यार्न (धागा) डेवलप कर सकते हैं, चरखे से फिर आगे फैब्रिक भी डेवलप किया जा सकता है. इसके अलावा, सीड्स से अलग-अलग प्रोडक्ट्स निकलते हैं जैसे तेल और प्रोटीन आदि.

हालांकि, उत्तराखंड में इसकी खेती करने की जद्दोजहद अभी भी जारी है. इसी को आसान करने के लिए नई हेम्प पॉलिसी का ड्राफ्ट (Uttarakhand Hemp Policy Draft) जारी कर दिया गया है. जिसको जल्द ही लागू किया जा सकता है. उत्तराखंड को देखते हुए हिमाचल प्रदेश और मध्य प्रदेश भी अपनी-अपनी हेम्प पॉलिसी पर काम कर रहे हैं. इसको लेकर सेंटर फॉर एरोमेटिक (Centre for Aromatic Plant, Uttarakhand) के डायरेक्टर डॉ नृपेंद्र चौहान कहते हैं कि हमारे बाद हिमाचल और मध्य प्रदेश भी इस प्लान से प्रभावित हुए हैं. हमने पॉलिसी पब्लिक डोमेन में डाल दी है और उन्होंने अपने हिसाब से उसे थोड़ा बहुत अपडेट करके इसपर काम शुरू कर दिया है. 

हेम्प की खेती के लिए लेना होता है लाइसेंस 

लेकिन हेम्प की खेती करना इतना भी आसान नहीं है. इसके लिए कई नियम और कानून बनाए गए हैं. उत्तराखंड में हेम्प की कटाई और खेती के लिए लाइसेंस (Hemp License in Uttarakhand) लेना पड़ता है. हेम्प की कटाई और खेती के लिए लाइसेंस लेने के लिए एक पूरी प्रक्रिया है. उत्तराखंड के सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट के डायरेक्टर डॉ नृपेंद्र चौहान (Dr. Nirpendra K. Chauhan) ने GNT डिजिटल को बताया कि राज्य सरकार ने अभी तक कुल 35 लाइसेंस जारी किए हैं. साथ ही जिन लोगों को लाइसेंस मिले हैं उनमें से ज्यादातर स्टार्टअप (Hemp Startup) वगैरह हैं. 

डॉ नृपेंद्र कहते हैं, “मेडिकल हेम्प के लिए कोई भी लाइसेंस के लिए अप्लाई कर सकता है, जिसके पास उसे बनाने की कैपेबिलिटी हो. जैसे मैनपावर, टेक्नोलॉजी, फाइनेंशियल स्टेटस आदि. फार्मास्यूटिकल कंपनी के तौर पर लाइसेंस लेकर इसकी खेती कर सकते हैं. फिलहाल पॉलिसी में इसी पर काम चल रहा है. ताकि लोग इसे उगा सकें, भंडारण कर सकें, ट्रांसपोर्ट कर सकें या दवाई बना सकें. फिलहाल ये अनुमति केवल उत्तराखंड में दी गई है, बाकी किसी राज्य में नहीं.”

हेम्प पर बनी कई रिपोर्ट की मानें तो साल 1894 में, औपनिवेशिक शासन के दौरान, ब्रिटिश सरकार ने भारत में पहली बार हेम्प के विकास पर एक व्यापक अध्ययन किया और इस संबंध में कुछ कानून और नियम बनाए. इंडियन हेम्प ड्रग कमीशन (1894-1895) ने भारत में भांग के उपयोग और प्रोसेसिंग को रेगुलेट करना शुरू किया. अलग-अलग भारतीय राज्यों ने भारत में भांग के विकास को रोकने के लिए कानून पारित किए. 1925 में द हेग में हस्ताक्षरित इंटरनेशनल ओपियम कन्वेंशन ने उन देशों को "भारतीय भांग" के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, जिन्होंने इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था.

भांग के नशे वाले कंपाउंड को देखते हुए इसे नारकोटिक ड्रग्स पर सिंगल कन्वेंशन (1961) और साइकोट्रोपिक सब्सटेंस पर कन्वेंशन (1971) के बाद, भारत ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 (एनडीपीएस एक्ट) पारित किया, जो खेती, उत्पादन, बिक्री, परिवहन, कब्जे को कंट्रोल करता है. यही वजह है की इसे हर जगह नहीं लगाया जा सकता है. 

हेम्प की खेती
हेम्प की खेती

लाइसेंस लेने का प्रोसेस

-सबसे पहले तो अपनी जमीन का मालिक होना चाहिए. आवेदन पत्र को भूमि स्वामित्व प्रमाण के साथ जमा करना होगा. 

-मालिक का 'अच्छे चरित्र का प्रमाण पत्र' (Character Certificate) एक जरूरी दस्तावेज है. 

-आवेदन जिलाधिकारी के पास जमा करना होता है.

-हेम्प की खेती कहां से शुरू की जानी चाहिए इसके बारे में उस जमीन का वर्णन करके और उसके ज्योग्राफिकल कॉर्डिनेट्स (Geographical Cordinates) का चित्रण करके दिया जाना चाहिए.

-अगर किसी कमर्शियल यूनिट के साथ कोई कॉन्ट्रैक्ट साइन किया गया है तो उसे भी सबमिट किया जाना चाहिए.

-सबूत और डॉक्यूमेंट के माध्यम से, ऐसी उपज के लिए भंडारण सुविधा के बारे में भी बताया जाना चाहिए, ये वो जगह होगी जहां खेती की जा सकती है.

-यह दिखाने के लिए एक आश्वासन प्रमाण पत्र भी प्रस्तुत करना होगा कि कोई दूसरा लाइसेंस प्रदान नहीं किया गया है या इसके लिए आवेदन नहीं किया गया है.

-आवेदन की स्वीकृति या अस्वीकृति के संबंध में आखिरी निर्णय जिलाधिकारी का होगा. 

-खेती की गई हेम्प केवल उत्तराखंड सरकार द्वारा अधिकृत खरीदारों को ही बेची जा सकती है.

कैरेक्टर सर्टिफिकेट लेने में ही लग जाते हैं महीनों 

हेम्प आंत्रप्रेन्योर (Hemp Entrepreneur) और पिछले 6 साल से इसपर काम कर रहे संकेत जैन (Sanket Jain) कहते हैं कि उन्हें इसके बारे में 2018 में पता चला था. विदेश से आए उनके कुछ दोस्तों ने उन्हें इसके बारे में बताया. जिसके बाद 2019 में उन्होंने इसे लगाने का सोचा. हालांकि, जितनी सरल प्रक्रिया कागजों में है इतनी असल में नहीं है. संकेत जैन ने इसकी प्रक्रिया के बारे में बात करते हुए GNT डिजिटल को बताया, “जब इसकी प्रक्रिया के बारे में जानना चाहा तो मालूम चला कि इसके लिए अलग-अलग विभागों से कई तरह के एनओसी (No Objection Certificate) लेने पड़ते हैं. इसके लिए जिले के आबकारी विभाग (Excise Department) से खेती के लिए पहले आवेदन डालना होता है. और इसके लिए हमारे पास खेत के नजदीकी स्टोरेज की जगह होनी चाहिए जहां हम अपना प्रोडक्ट स्टोर करते हैं. इसके लिए सीड्स भी लेनी पड़ती है. लेकिन सबसे पहले आवेदन के बाद हमें अपना कैरेक्टर सर्टिफिकेट जमा करवाना होता है, जिसमें मुझे करीब एक महीने लग गए. इसके बाद हमें जिले के राजकीय और वन विभाग अधिकारी और तहसीलदार एवं अन्य अधिकारियों से अपनी जमीन के नक्शे को चेक करवाना पड़ता है और सभी बाउंड्रीज दिखानी पड़ती है, जो कि एक ही जगह होने चाहिए.” इसके बाद संकेत जैन कहते हैं कि ये सब दस्तावेज एक स्थानीय निवासी को जमा करने में करीब 2-3 महीने लगते हैं. जिसके बाद जिला कलेक्टर इसकी अनुमति देते हैं. इसके बाद ही किसान इसे उगा सकते हैं.

हेम्प के बीज अभी उपलब्ध नहीं है 

संकेत जैन कहते हैं, “राज्य में अभी सीड्स उतने उपलब्ध नहीं है. हमने सरकार से इसके लिए आवेदन किया है ताकि हम अच्छा इंडस्ट्रियल हेम्प उगा सकें क्योंकि जो लोकल भांग के बीज अभी उपलब्ध हैं उनकी टेस्टिंग करने पर रिजल्ट 0.3 THC लेवल से ज्यादा आता है. औद्योगिक हेम्प के लिए उपयोगी बीज अभी बाहर से मंगवाया जाता है जिसकी प्रक्रिया मुश्किल है और आम किसान के लिए ऐसा कर पाना लगभग नामुमकिन है. बीज आने के बाद उन्हें दिल्ली या फरीदाबाद में प्लांट क्वारंटाइन डिपार्टमेंट में भेजा जाता है. प्लांट क्वारंटाइन डिपार्टमेंट फिर उसे आईसीएमआर भेजता है जहां बीजों की जांच होती है फिर उसे अनुमति मिलती है. इस पूरी प्रक्रिया में करीब 3-4 महीने लगते हैं, जिसके कारण अभी बीज की समस्या हो रही है.” 

हालांकि, बीज को लेकर अभी भी कोई ऐसी संस्था नहीं है जहां से इसे लिया जा सके. जहां किसानों का कहना है कि हेम्प के बीज सेंटर फॉर एरोमेटिक प्लांट्स से लिए जाते हैं तो वहीं CAP का कहना है कि इसके किसान को खुद जांच-पड़ताल करके अपने स्तर पर बीज लेना होता है.

प्रक्रिया को और सरल करने की जरूरत है 

देहरादून के हेम्प किसानों और जो इस क्षेत्र में काम कर रहे है उनके मुताबिक, लाइसेंस बनने के 1 साल बाद किसानों को फिर से लाइसेंस रिन्यू करवाया जाता है. जो काफी बोझिल प्रक्रिया है. संकेत बताते हैं, “जैसे पिथौरागढ़ और चमोली आदि पर्वतीय इलाके में, पटवारी से मिलने से लेकर सब तरह के एनओसी लेने में कफी समय लग जाता है, इसे ऑनलाइन होना चाहिए. और लाइसेंस भी सिर्फ एक साल का मिलता है फिर दोबारा सारी प्रक्रिया पूरी करने के बाद ही लाइसेंस रिन्यू होता है. इसे कम से कम पांच साल का होना चाहिए ताकि किसानों के लिए आसानी हो.” 

वहीं पिछले 2 दशकों से हेम्प पर काम कर रहा आगाज फेडरेशन (Aagaas Federation) का भी मानना है कि किसानों के लिए इस प्रक्रिया को और आसान बनाना चाहिए. आगाज के चेयरमैन जगदम्बा प्रसाद मैठाणी (J.P Maithani) के मुताबिक, “इंडस्ट्रियल हेम्प की जब पहली पॉलिसी 2016 में बनी तो उसमें उत्तराखंड के 13 जिलों के मजिस्ट्रेट को पावर दी गई थी कि जो किसान अप्लाई करेगा वो कैरेक्टर सर्टिफिकेट बनाएंगे. हालांकि नई पॉलिसी में हमने किसानों के लिए एक सिंगल विंडो शुरू करने की मांग रखी है. इससे एक ही जगह पर उन्हें सारी जानकारी मिल सकेगी. साथ ही, हेम्प की खेती का लाइसेंस कम से कम एक किसान को 3 साल के लिए मिलना चाहिए. हर साल मिलना बड़ा कठिन काम है. क्योंकि हेम्प मार्च या अप्रैल में बोया जाता है, कभी-कभी बहुत देर हो जाए तो मई में…इतना ही नहीं अगर वो टीएचसी लेवल 0.3 से ज्यादा आ गया तो ऐसे में आबकारी विभाग का जो अफसर होगा वह जाकर फसल नष्ट कर देगा. हालांकि, कोविड के बाद से लगातार इसपर काम हो रहा है. सेन्टर फॉर एरोमेटिक प्लांट ने इसे लेकर मीटिंग भी की थी.”

भविष्य में इसपर क्या करने की जरूरत है इसको लेकर संकेत कहते हैं, “मुझे लगता है गन्ने की तरह ही सरकार को किसानों को हेम्प उगाने की रॉयल्टी देनी चाहिए, और अच्छे बीज उपलब्ध कराने चाहिए. इससे किसान हेम्प की अच्छी खेती कर सकेंगे जिससे अनेकों प्रोडक्ट बनाए जा सकेंगे. इसके बीज से कई तरह के प्रोडक्ट्स बनते हैं. यहां तक कि इसके धागे से बने कपड़े भी एंटी-बैक्टीरियल और इको फ्रेंडली होते हैं. इसलिए हम चाहते हैं इससे जुड़ी प्रक्रिया सरल हो ताकि आम किसान भी इसकी खेती कर पाए.”