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World Animal Welfare Day: हिम तेंदुओं को बचाने के लिए बनाया महिलाओं का पहला स्नो लेपर्ड मॉनिटरिंग ग्रुप, कैमरा ट्रैपिंग से दीपशिखा शर्मा कर रही हैं इस जानवर का संरक्षण 

इसके लिए उन्होंने महिलाओं का एक मॉनिटरिंग ग्रुप बनाया है. हिमाचल प्रदेश के किब्बर गांव में लॉन्च किया गया यह पहला ऐसा स्नो लेपर्ड मॉनिटरिंग ग्रुप है जिसमें सभी औरतें हैं. इसके तहत ये महिलाएं ये सीखती हैं कि हिम तेंदुओं पर कैसे नजर रखनी है. इसके लिए इन्हें कैमरा ट्रैप का उपयोग करना सिखाया जाता है. 

Deepshikha Sharma Deepshikha Sharma
हाइलाइट्स
  • 2019 से दीपशिखा कर रही हैं काम 

  • पहला स्नो लेपर्ड मॉनिटरिंग ग्रुप जिसमें केवल महिलाएं हैं 

पिछले 25 साल में हिम तेंदुओं की आबादी में 20 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आई है, लेकिन हिमाचल प्रदेश में, हिम तेंदुओं (Snow Leopard) की संख्या बढ़ रही है. दरअसल, हिमाचल प्रदेश ने हिम तेंदुओं को राज्य का वन्यजीव पशु घोषित किया है. लेकिन अब ये लुप्त होने की कगार पर हैं. हिमाचल प्रदेश के वन विभाग ने साल 2021 में स्नो लेपर्ड पर स्टडी की थी. ये अपनी तरह की पहली स्टडी थी. इसमें राज्य के वन्यजीव विभाग और मैसूर के नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन (NCF) ने अनुमान लगाया था कि हिमाचल प्रदेश में हिम तेंदुओं की आबादी 73 है. जबकि पहले के अनुमानों में किन्नौर के ऊपरी क्षेत्र और स्पीति घाटी के कुछ हिस्सों को शामिल करते हुए इस क्षेत्र में हिम तेंदुओं की आबादी 62 से 65 के बीच होने का सुझाव दिया गया था.

लोकिन पहाड़ी इलाकों में लुप्त होने की कगार पर आए हिम तेंदुओं को बचाने की मुहीम चल रही है, जिसमें दीपशिखा शर्मा (Deepshikha Sharma) जैसे लोग बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं. दीपशिखा शर्मा हिमाचल प्रदेश के हिम तेंदुओं को बचाने का काम कर रही हैं. ये इसके लिए महिला पशुपालकों के साथ मिलकर काम कर रही हैं. 

2019 से दीपशिखा कर रही हैं काम 

पहाड़ी इलाकों में जानवरों की एक स्वस्थ आबादी होने का मतलब है कि वहां प्रकृति के लिए एक स्वस्थ वातावरण है. दीपशिखा इन्हें बचाने और इंसानों और हिम तेंदुओं के बीच में एक पुल बनने का काम कर रही हैं. दीपशिखा ने GNT डिजिटल को बताया, “मैंने 2019 से नेचर कंजर्वेशन फाउंडेशन में काम करना शुरू किया था. उससे पहले मैं अपनी एमए की पढाई कर रही थी. वहां से मुझे फाउंडेशन के बारे में पता चला. मैंने ज्वाइन किया तो पता चला कि इसमें स्नो लेपर्ड को लेकर काम हो रहा है. हम इसके तहत स्नो लेपर्ड और इंसानों के बीच में एक पुल बनने का काम कर रहे हैं. लोकल लोगों को उनके बारे में बताकर और उनका संरक्षण करके हम ऐसा करते हैं.” 

(Photo Credit: Prasenjeet Yadav)

पहला स्नो लेपर्ड मॉनिटरिंग ग्रुप जिसमें केवल महिलाएं हैं 

इसके लिए उन्होंने महिलाओं का एक मॉनिटरिंग ग्रुप बनाया है. हिमाचल प्रदेश के किब्बर गांव में लॉन्च किया गया यह पहला ऐसा स्नो लेपर्ड मॉनिटरिंग ग्रुप (Women Snow Leopard Monitoring Group) है जिसमें सभी औरतें हैं. इसके तहत ये महिलाएं ये सीखती हैं कि हिम तेंदुओं पर कैसे नजर रखनी है. इसके लिए इन्हें कैमरा ट्रैप का उपयोग करना सिखाया जाता है. 

दीपशिखा आगे बताती हैं, “एक ऑर्गनाइजेशन के तौर पर हम रिसर्च में ज्यादा इन्वॉल्व हैं. हमारी पास फील्ड पर एक बहुत अच्छी टीम है. लेकिन जब मैंने देखा कि उसमें केवल लड़के हैं. तो मुझे लगा कि शायद एक महिलाओं की टीम भी बनाना जरूरी है. महिलाएं ही हैं जो संरक्षण में एक बड़ी भूमिका निभाती हैं. पानी से लेकर मिट्टी तक का मैनेजमेंट या संरक्षण महिलाओं के हाथ में है, तब हमें लगा कि इसमें भी महिलाओं की भूमिका जरूरी है. कुछ साल पहले ये सोचा गया कि महिलाओं को इसमें जोड़ना चाहिए. और इसी तरह से हमने ये ऑल वीमेन ग्रुप बनाने का सोचा.”

(Photo Credit: Planet India)

कैसे करता है कैमरा ट्रैप और मॉनिटरिंग ग्रुप काम? 

दरअसल , हिम तेंदुए, जिन्हें स्थानीय भाषा में 'पहाड़ों का भूत' (Ghost of Mountains) भी कहा जाता है, को पहचानना और तस्वीर खींचना बेहद मुश्किल है.  क्योंकि वे आसानी से अपने परिवेश के साथ घुल-मिल जाते हैं. लेकिन इसमें कैमरा ट्रैप बहुत काम करता है. दीपशिखा ने कैमरा ट्रैप और मॉनिटरिंग ग्रुप की वर्किंग के बारे में GNT डिजिटल को बताया. दीपशिखा कहती हैं, “महिलाओं का ये मॉनिटरिंग ग्रुप पहले पायलट मोड में केवल एक गांव से शुरू किया गया. इसमें हम कैमरा ट्रैप का सहारा लिया जाता है. इस एक मॉनिटरिंग ग्रुप में 9 महिलाओं को रखा गया है. इन्हें फील्ड पर भी ले जाया जाता है और साथ ही उन्हें ट्रेनिंग भी दी जाती है.”

बताते चलें कि इसके तहत डीएसएलआर कैमरा ट्रैप स्थापित किया जाता है. ये जगह और टाइम पर काफी निर्भर करता है कि कैमरा हिम तेंदुओं को देख पाएगा या नहीं. इसमें 10 मिनट से लेकर दो घंटे तक का समय लग सकता है. सही स्थान की पहचान करना और उस तक पहुंचने में ज्यादा समय लगता है. 

(Photo Credit: Planet India)

क्या है इनके कम होते जाने का कारण? 

वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड (WWF) के मुताबिक, दुनियाभर में हिम तेंदुए की कुल आबादी 4,500 से 7,500 के बीच होने का अनुमान है. ये अधिकतर 12 देशों जिसमें भारत, अफगानिस्तान, भूटान, चीन, भारत, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, मंगोलिया, नेपाल, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज़्बेकिस्तान में मिलते हैं. 

इसे लेकर दीपशिखा कहती हैं, “पहाड़ी इलाकों में हो रहा कंस्ट्रक्शन एक बहुत बड़ा कारण है. जिन जगहों पर हिम तेंदुए रहते हैं वे जगह बंजर जमीन हैं जो लैंड बेकार है. इन्हें बिना छुए छोड़ा जा सकता है. लेकिन ऐसा नहीं होता है. अगर उनके लैंड को कम किया जाएगा तो वे इंसानों पर अटैक करेंगे. ऐसे में इंसानों और जानवरों के बीच का संतुलन कहीं न कहीं बिगड़ सकता है. इसके अलावा, पर्यटन भी इसमें जिम्मेदार है. हमें इन दोनों को बहुत ध्यान से और हिम तेंदुओं के बारे में सोचकर फैसला लेना चाहिए. साथ ही क्लाइमेट चेंज भी इसमें कहीं न कहीं जिम्मेदार है लेकिन इसमें हम कुछ नहीं कर सकते हैं. तो इसमें लोकल और ग्लोबल दोनों लेवल पर हमें काम करने की जरूरत है.”  

(Photo Credit: Planet India)

आखिर में दीपशिखा बताती हैं कि अधिकतर ऐसा होता है कि स्नो लेपर्ड इंसानों की मवेशियों पर हमला करते हैं या उनके इलाकों में आ जाते हैं, इससे कहीं न कहीं उन्हें नुकसान पहुंचता है. बस इसी को कम करने के लिए हम काम कर रहे हैं. हालांकि, पहाड़ी इलाकों में अब लोग काफी वोकल हुए हैं अपनी परेशानियों को लेकर वे बात कर रहे हैं. जानवरों के बारे में समझ रहे हैं. साथ ही पर्यावरण में हो रहे बदलावों को लेकर भी काफी जागरूक हुए हैं. उन्हें जागरूक करने का काम दीपशिखा के साथ प्लेनेट इंडिया (Planet India) जैसे प्लेटफॉर्म भी कर रहे हैं जो ऐसे क्लाइमेट हीरोज और वन्य जीवों को दिखाने और उन्हें जागरूक करने का काम कर रहे हैं. 

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