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कोरोना का असर: 31 देशों में 2.8 करोड़ साल कम हुई लोगों की जिंदगी

साल 2020 में रूस, बुल्गारिया, लिथुआनिया, अमेरिका और पोलैंड समेत 31 देशों में 2.8 करोड़ साल जिंदगी कम हो गयी है. ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपे इस अध्ययन में 37 देशों को शामिल किया गया. इसमें पाया गया कि ज्यादातर देशों में जो मृत्यु हुई हैं उसका एक बहुत बड़ा कारण कोरोना वायरस है.

प्रतीकात्मक तस्वीर प्रतीकात्मक तस्वीर
हाइलाइट्स
  • एक शिशु के जन्म लेने के बाद उसके जीवित रहने की एक संभावित अवधि को लाइफ एक्सपेक्टेंसी या जीवन प्रत्याशा कहते हैं

  • ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपे इस अध्ययन में 37 देशों को शामिल किया गया

कोरोना महामारी में न जाने कितने लोगों ने अपनी जान गवाई है. इसका सीधा प्रभाव लोगों की सेहत और जीवन पर पड़ा है. इससे मृत्यु दर भी अछूता नहीं रहा. कोरोना महामारी का मृत्यु दर पर प्रभाव काफी असमान रहा है. पिछले साल ज्यादातर जगहों पर लाइफ एक्सपेक्टेंसी (Life expectancy) में गिरावट आई है, जिससे 31 देशों के लोगों की जिंदगी 2.8 करोड़ साल कम हो गयी है. कोविड-19 की वजह से जितने साल जिंदगी कम हुई है यह 2015 में आये इन्फ्लूएंजा की तुलना में पांच गुना ज्यादा है.

क्या है लाइफ एक्सपेक्टेंसी?

दरअसल, एक शिशु के जन्म लेने के बाद उसके जीवित रहने की एक संभावित अवधि को लाइफ एक्सपेक्टेंसी या जीवन प्रत्याशा कहते हैं. इसका संबंध किसी की असल उम्र से नहीं होता. ये एक औसत उम्र होती है. लाइफ एक्सपेक्टेंसी इस बात का संकेत होती है कि इंसान उनकी उम्र को ध्यान में रखने के बाद औसतन कितने समय तक जीवित रहते हैं, ये अनुमानित होता है. हालांकि, इसमें इस बात का भी ख्याल रखा जाता है कि समय के साथ हर आयु वर्ग में मरने वाले लोगों की संख्या में कोई बड़ा बदलाव न हुआ हो.

Photo: BMJ
Photo: BMJ

37 देशों को किया गया शामिल 

ब्रिटिश मेडिकल जर्नल (BMJ) में छपे इस अध्ययन में 37 देशों को शामिल किया गया. इसमें पाया गया कि ज्यादातर देशों में जो मृत्यु हुई हैं उसका एक बहुत बड़ा कारण कोरोना वायरस है. साल 2020 में महामारी के कारण रूस, बुल्गारिया, लिथुआनिया, अमेरिका और पोलैंड समेत 31 देशों में 28 मिलियन यानि 2.8 करोड़ से अधिक साल की जिंदगी कम हो गयी है. ये अध्ययन ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एपिडेमियोलॉजिस्ट नजरूल इस्लाम के नेतृत्व में किया गया है.

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