बांसों के टुकड़े से ताजमहल, पेरिस के आइफिल टावर, तिरुपति, केदारनाथ- बद्रीनाथ, दक्षिणेश्वर काली मंदिरों से लेकर महानगरी कोलकाता की लुप्त हो गई स्मृतियां जैसे ट्राम और हाथरिक्शा आदि की प्रतिकृति बनाने वाले गणेश भट्टाचार्य की आज हर जगह चर्चा हो रहा है. (फोटो: भोला साहा)
पश्चिम बंगाल में हुगली के चंदननगर के गणेश सालों से ये कलाकृतियां बना रहे हैं. बचपन में उन्होंने अखबारों और टीवी पर देश और दुनिया के इन विख्यात स्मारकों को देखा था. तब से ही ये स्मारक उनके दिल में बस गए और जब उन्होंने होश संभाला तो खुद अपने हाथों से देश और दुनिया के नायाब इमारतों को बनाने लगे. (फोटो: भोला साहा)
निम्न मध्यवर्गीय परिवार में जन्म लेने के कारण गणेश के पास इतना आर्थिक सामर्थ्य नहीं था कि वह बाजार में बिकने वाले नामी एवं महंगे सामानों को खरीद कर अपने सपने को पूरा कर सकें. इसलिए उन्होंने किफायत का रास्ता अपनाया. उन्होंने बांस के फेंके गए टुकड़े को अपनी कला और कारीगरी से तराश कर एक से बढ़कर एक देश और दुनिया के विख्यात तीर्थ स्थलों और इमारतों को बनाकर नाम कमाया. (फोटो: भोला साहा)
इस अजब कलाकारी को हकीकत में तब्दील करने वाले चित्रकार गणेश भट्टाचार्य ने बताया कि बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के नेतृत्व में राज्य सरकार द्वारा कर्मतीर्थ प्रकल्प चलाए जाने के बावजूद उनकी कला को वह सम्मान नहीं मिला जिसके वे हकदार हैं. उन्होंने बड़े दुख के साथ कहा कि पौराणिक काल में कलाकारों को बाकायदा राजा अपने दरबार में स्थान देते थे. लेकिन आज राजा तो दूर सरकार के मुलाजिम भी उन्हें तवज्जो नहीं देते हैं. (फोटो: भोला साहा)
उन्होंने बताया कि वर्तमान में, वह किसी तरह इन स्मारकों को ग्राहकों में बेचकर अपना रोजी-रोटी चला लेते हैं. क्योंकि वह पूरी तरह से इसे अपनी रुचि और रोजगार के रूप में अपना चुके हैं. लगभग 20 साल की युवावस्था से उन्होंने यह शुरू किया था. उन्हें इस वर्ष कोलकाता के एक दुर्गा पूजा पंडाल का काम मिला है. उन्होंने गर्व के साथ कहा कि भले ही उनके कला को उतनी इज्जत, शोहरत, रुपया और पैसा नहीं मिला है लेकिन ईश्वर ने उन्हें जो हुनर दिया है इस पर उन्हें अभिमान है. (फोटो: भोला साहा)