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Traditional Painting Arts of India: मधुबनी से लेकर कलमकारी तक, देश-दुनिया में मशहूर हैं भारत की ये पारंपरिक चित्रकारी कला

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भारत में बहुत ही समृद्ध संस्कृति और परंपरा है और इस यहां के लोग अपनी अद्भुत कला और शिल्प के माध्यम से चित्रित करते हैं. भारत में, हर क्षेत्र और राज्य की एक विशेष कला है फिर चाहे वह कढ़ाई में हो, मूर्तिकला में हो या चित्रकारी में. हम सब जानते हैं कि बिहार में मधुबनी पेंटिंग से लेकिर गुजरात में पिथौरा पेंटिंग, महाराष्ट्र में वारली पेंटिंग, आंध्र प्रदेश में कलमकारी पेंटिंग और मध्य प्रदेश में गोंड कला जैसी कई चित्रकारी कलाएं भारत में बसती हैं. भारत के कई लोक कला रूप हैं जिन्हें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता और अत्यधिक प्रशंसा मिली है. आज हम आपको ऐसी ही कुछ पारंपरिक भारतीय पेंटिंग आर्ट्स के बारे में बता रहे हैं.  (Photo: Twitter)

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मधुबनी पेंटिंग
मधुबनी पेंटिंग्स या मिथिला पेंटिंग्स की उत्पत्ति बिहार के मधुबनी गांव में हुई और ज्यादातर इन्हें महिलाओं द्वारा बनाया जाता है. इस चित्रकला में उंगलियों, टहनियों, ब्रश, निब-कलम, माचिस की तीलियों और प्राकृतिक आदि का उपयोग किया जाता है. ये दीवारों, पवित्र जगहों के फर्श, कैनवस आदि पर की जाती हैं. चमकीले रंग के मधुबनी चित्रों की विशेषता उनके ज्यामितीय पैटर्न हैं और बिहार के मधुबनी जिले में व्यापक रूप से प्रचलित हैं. मूल रूप से, ये चित्र मिट्टी की दीवारों और मिट्टी की जमीन या फर्श पर बनाए जाते थे, हालांकि, अब इन्हें कैनवस, कपड़े और हाथ से बने कागज पर भी बनाया जाता है. यह भारत में लोक चित्रकला की सबसे मशहूर और लोकप्रिय शैलियों में से एक है. मधुबनी चित्रों के विषय ज्यादातर प्रकृति के दृश्य जैसे सूर्य, चंद्रमा, तुलसी के पौधे और पौराणिक कथाओं के दृश्य और हिंदू देवताओं जैसे कृष्ण, राम, शिव, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती, आदि हैं. कई मधुबनी कलाकारों को कई पुरस्कार जैसे कि राष्ट्रीय पुरस्कार और पद्म श्री आदि भी मिल चुके हैं. (Photo: Twitter)

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वारली पेंटिंग
जनजातीय कला का यह रूप महाराष्ट्र में प्रमुख जनजातियों में से एक वारली से संबंधित है. यह 2500 से ज्यादा साल पुरानी कला है जो अब भी  प्रचलित है. वारली पेंटिंग में ज्यादातर स्थानीय लोगों की दैनिक गतिविधियों जैसे खेती, नृत्य, प्रार्थना, शिकार, बुवाई आदि और प्रकृति के तत्वों को दर्शाया जाता है. ये पेंटिंग सामाजिक और दैनिक जीवन को दिखाने पर केंद्रित हैं. यह कला पौराणिक चरित्रों और देवताओं को दिखाने के बजाय प्रकृति से जुड़ी हुई है. वारली पेंटिंग परंपरागत रूप से चावल के पेस्ट के साथ टहनियों का उपयोग करके झोपड़ियों की मिट्टी की दीवारों पर की जाती थी. इन चित्रों की विशेषता सफेद रंग, सरल ज्यामितीय डिजाइन और त्रिकोण, वर्ग और वृत्त जैसे पैटर्न हैं. समय के साथ वारली पेंटिंग न सिर्फ महाराष्ट्र बल्कि देशभर में प्रचलित हुई है. बहुत से चित्रकारों को पुरस्कार भी मिले हैं और अब यह पेंटिंग कैनवास और तो और कपड़ों पर भी की जाती है. (Photo: Twitter)
 

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कलमकारी पेंटिंग
कलमकारी शब्द में "कलम" का अर्थ है  सामान्य कलम से है और "कारी" का अर्थ है शिल्प कौशल. आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के कुछ गांवों में कलमकारी पेंटिंग की जाती है. कलमकारी आमतौर पर रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों, संगीत वाद्ययंत्रों, जानवरों, बुद्ध और बौद्ध कला, फूलों और स्वस्तिक जैसे हिंदू प्रतीकों के दृश्यों को दर्शाती है. कलमकारी एक ब्लॉक-प्रिंटिंग भारतीय लोक कला है जो 3000 साल से ज्यादा पुरानी है. कपड़े पर कलम या बांस की छड़ी का उपयोग करके पेंटिंग की जाती है और प्राकृतिक और मिट्टी के रंगों और वनस्पति रंगों जैसे इंडिगो, हरा, जंग, काला और सरसों का उपयोग किया जाता है. यह आम तौर पर सूती कपड़े पर किया जाता है और इसमें तेईस चरणों की प्रक्रिया शामिल होती है. कलमकारी कला का व्यापक रूप से साड़ियों और जातीय परिधानों पर उपयोग किया जाता है और यह बहुत लोकप्रिय है. (Photo: Twitter)

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गोंड पेंटिंग
यह एक भारतीय लोक और जनजातीय कला है. मध्य प्रदेश में गोंड समुदाय के लोग यह चित्रकारी करते हैं. गोंड शब्द द्रविड़ शब्द कोंड से लिया गया है जिसका अर्थ है हरा पहाड़. यह कला 1400 सालों से ज्यादा पुरानी है. इसमें आमतौर पर वनस्पतियों और जीवों, लोगों के दैनिक जीवन, देवताओं, त्योहारों और उत्सवों को चित्रित किया जाता है. इसमें पौराणिक कथाओं, प्रकृति, महत्वपूर्ण अवसरों और रीति-रिवाजों को रचा जाता है. गोंड जनजाति देश की सबसे पुरानी और सबसे बड़ी जनजातियों में से एक है. मूल रूप से, गोंड कला में उपयोग किए जाने वाले रंग प्राकृतिक संसाधनों जैसे गाय के गोबर, पौधों के रस, चारकोल, रंगीन मिट्टी, मिट्टी, फूल, पत्ते आदि से प्राप्त होते हैं. लेकिन आजकल कलाकार कृत्रिम रंगों जैसे ऐक्रेलिक रंग, वाटर कलर, ऑयल पेंट, आदि का उपयोग करते हैं. (Photo: Twitter)

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पटचित्र पेंटिंग
पटचित्र या पट्टाचित्र ओडिशा और पश्चिम बंगाल राज्य का एक पारंपरिक, कपड़ा स्क्रॉल पेंटिंग कला रूप है. इसमें मुख्य रूप से पौराणिक और धार्मिक विषयों, महाकाव्य, हिंदू देवताओं आदि को दर्शाया जाता है. थिया बधिया - भगवान जगन्नाथ के मंदिर का चित्रण, कृष्ण लीला - भगवान जगन्नाथ की लीला, भगवान कृष्ण एक बच्चे के रूप में अपनी शक्तियों को प्रदर्शित करते हैं, दसबतरा पट्टी - भगवान विष्णु के दस अवतार और पंचमुखी - भगवान गणेश का पांच सिरों वाले देवता के रूप में चित्रण कुछ लोकप्रिय विषय हैं जिन्हें पटचित्र कला रूप से दर्शाया गया है. 'पटचित्र' शब्द पट्टा अर्थात कपड़ा और चित्र अर्थात पेंटिंग से लिया गया है. इसमें इस्तेमाल किए गए रंग सफेद, पीले और लाल जैसे प्राकृतिक और जीवंत हैं. यह कला 3000 साल से पुरानी है. (Photo: Twitter)