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101 साल पुरानी लाइब्रेरी कम म्यूजियम में मौजूद हैं प्राचीन ग्रंथों, किताबों से लेकर टेराकोटा की कलाकृतियां तक, चावल-अनाज की देशी किस्में भी सहेजीं

पश्चिम बंगाल में 101 साल पुरानी लाइब्रेरी कम म्यूजियम है. इस लाइब्रेरी में पुराने ग्रंथों से लेकर पुरानी से पुरानी किताबें मौजूद हैं. और तरह-तरह की कलाकृतियां भी मौजूद हैं.

Library cum Museum Library cum Museum
हाइलाइट्स
  • ताड़ के पत्तों पर लिखी पांडुलिपियां हैं मौजूद

  • मौजूद हैं टेराकोटा, पेपर कटिंग की कलाकृतियां 

पश्चिम बंगाल के पूर्व बर्दवान जिले में 101 साल पुरानी लाइब्रेरी कम म्यूजियम है. इस असाधारण ग्रंथागार में पढ़ना और देखना दोनों साथ-साथ चलते हैं. इस ग्रंथागार में सजी किताबों के पन्नों में सालों पुरानी महक है. इसलिए यह कहना गलत होगा कि यह केवल एक ग्रंथागार है क्योंकि यह प्राचीन कलाकृतियों से भरा एक प्रदर्शनी हॉल भी है. 

पूर्व बर्दवान जिले के जमालपुर का जारग्राम माखनलाल पठागर एक ग्रंथागार सह संग्रहालय है. इस लाइब्रेरी में ताड़ के पत्तों पर लिखी पांडुलिपियों से लेकर विभिन्न प्राचीन पुस्तकें हैं. साहित्यिक बंकिम चंद्र चट्टोपाध्याय की किताब बंगदर्शन से लेकर गांधीजी की हरिजन, राजा राधाकांत देव बहादुर की शब्दकल्पद्रुम जैसी महान किताबें भी यहां मौजूद हैं. 

1921 में हुई थी शुरुआत
जारोग्राम पश्चिम बंगाल के पूर्व बर्दवान जिले के जमालपुर ब्लॉक का एक सुदूर गांव है. यहां की इस लाइब्रेरी को पूर्व बर्दवान सहित पड़ोसी जिलों की सबसे पुरानी लाइब्रेरीज में से एक लाइब्रेरी कहा जाता है. 

इस लाइब्रेरी का निर्माण 1921 में शिवसाधन चटर्जी की पहल के पर केवल पच्चीस पुस्तकों के साथ किया गया था. ब्रिटिश सरकार के एक सिपाही मनमथ नाथ बोस के बैठक कक्ष में तब अस्थायी ग्रंथागार चल रहा था. फिर 1962 में नया भवन बनाया गया. आज उस लाइब्रेरी में पुस्तकों की संख्या लगभग साढ़े सत्रह हजार है और दो हजार अठारह समाचार पत्र हैं. 

माखनलाल ने दान की पुस्तकें 
शिवसाधन चट्टोपाध्याय ग्रंथागार के संस्थापक संपादक हैं. पुस्तकालय के निर्माण के दौरान गांव के एक प्रमुख शिक्षाविद् माखनलाल ने पुस्तकों का दान किया. गांव के लोगों ने सर्वसम्मति से ग्रंथागार का नाम शिक्षाविद् माखनलाल के नाम पर जारग्राम माखनलाल पठागार रखा.

एक ओर प्रसिद्ध लेखक ताराशंकर बनर्जी ने ग्रंथागार का दौरा किया था. साथ ही इस ग्रंथागार में प्रख्यात पंडित वीरेंद्र कृष्ण भद्र, भाषाविद् सुकुमार सेन ने किताबें पढ़ीं और पुस्तकालय के बारे में अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां 'विजिटर्स बुक' में लिखीं. यह भी कहा जाता है कि इस ग्रंथागार की पुस्तकें पढ़ कर  भाषाविद् सुकुमार सेन अपना शोध कार्य करते थे. 

मौजूद हैं टेराकोटा, पेपर कटिंग की कलाकृतियां 
इस पठागार /लाइब्रेरी के दो मंजिला भवन में अमूल्य संग्रहालय है. जहां सैकड़ों वर्ष पुरानी दुर्लभ पुस्तकें, पांडुलिपियां, मूर्तियां और अन्य अमूल्य ऐतिहासिक वस्तुएं संरक्षित हैं. टेराकोटा कलाकृतियों के विभिन्न निशान हैं और साथ ही पुराने पेपर कटिंग के भी. 

संग्रहालय में हरित क्रांति के कारण लुप्त हुई चावल और अनाज की विभिन्न देशी किस्मों को संग्रहित किया गया है. साल 1958 में, इसे पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा ग्रामीण ग्रंथागार के रूप में मान्यता दी गई थी. 1987 में, ग्रामीण ग्रंथागार से टाउन लाइब्रेरी में अपग्रेड किया गया. इस लाइब्रेरी  में सदस्यों की संख्या 173 हैं-जिसमें से 42 बाल सदस्य, 104 साधारण सदस्य और 27 वरिष्ठ सदस्य हैं. हालांकि पाठकों की संख्या 600 से अधिक है. 

(सुजाता मेहरा की रिपोर्ट)