हिंदी का ककहरा और अंग्रेजी की ABCD सीखते ये बच्चे उन परिवारों से है जहां क से किताब और स से स्कूल की अहमियत कुछ खास नहीं. इनमे से किसी के पैरेंट्स कबाड़ का काम करते हैं तो किसी के रिक्शा चलाते हैं. कुछ दिहाड़ी मजदूर के बच्चे हैं तो कुछ की मां घरों में झाड़ू पोछा का काम तरती हैं. लेकिन प्रिंस सर ने ये ठान लिया था कि इन बच्चों की किस्मत वो भले ही न बदल पाएं लेकिन उनके भाग्य में शिक्षा की रेखा कम से कम काली नहीं रहेगी. नोएडा के प्रिंस शर्मा चैलेंजर ग्रुप नाम की एक संस्था चलाते हैं जिसका मकसद है हर बच्चे को स्कूल पहुंचाना. पिछले 5 सालों में प्रिंस के चैलेंजर्स ग्रुप ने हजारों बच्चों को पढ़ाया है. साथ ही साथ सैकड़ों बच्चों का सरकारी और प्राइवेट स्कूल में एडमिशन करवाया है.
नशे में धुत्त बच्चे ने कहा 'तू पढ़ाएगा?'
प्रिंस की उम्र इस वक्त सिर्फ 24 साल है. जब उन्होने चैलेंजर्स ग्रुप बनाया था वो महज 18-19 साल के थे. प्रिंस बताते हैं कि चैलेंजर्स के बनने के पीछे एक बेहद दिलचस्प किस्सा है. वो बताते हैं कि एक बार वो और उनका दोस्त सड़क पर जा रहे थे. उन्हे एक बच्चा रुमाल सूंघते हुए मिला. वो बच्चा नशे में था उसकी उम्र महज 6-7 साल रही होगी. प्रिंस बताते हैं कि हमने उससे बात करने की कोशिश की, एक वक्त को लगा कि वो हम पर हमला कर देगा. हमने उससे कहा ये क्या कर रहे हो, पढ़ाई क्यों नहीं करते? बच्चे ने जवाब में कहा कि तू पढ़ाएगा? प्रिंस कहते हैं कि उस दिन उन्हे एहसास हुआ कि सिर्फ ज्ञान देने से काम नहीं चलता. समस्या को हल करने की कोशिश भी करनी चाहिए. और इस तरह अगले दिन से प्रिंस ने स्लम के बच्चों को पढ़ाना शुरु कर दिया.
'2 घंटे में तो ये 50 रुपए कमा लेगा'
प्रिंस बताते हैं कि शुरु में झुग्गी के लोग अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजने को तैयार नहीं थे. कई लोगों ने हमें डांट कर भगा दिया. कई लोगों ने ये भी कहा कि जितनी देर बच्चा पढ़ाई करेगा उतनी देर में तो भीख मांगकर या कूड़ा बिनकर 50 रुपए कमा लेगा. प्रिंस बताते हैं कि उन्होने सिर्फ 2 बच्चों के साथ फुटपाथ पर पढ़ाना शुरु किया था. हालांकि धीरे धीरे लोगों ने हम पर भरोसा करना शुरु किया. आज हम दिल्ली नोएडा गाजियाबाद सहित 8 सेंटर में 500 से ज्यादा बच्चों को पढ़ा रहे हैं.
'एक अंकल ने बच्चों के लिए कहा ये लोग किसी के सगे नहीं होते, इनसे तेरा घर चलेगा क्या'
प्रिंस बताते हैं कि उनके इस काम में घरवालों ने हमेशा बहुत सपोर्ट किया लेकिन रिश्तेदार और पड़ोसियों ने शुरु में बहुत खराब बातें बोली. वो बताते हैं कि जब मेरे एक अंकल को मेरे इस काम के बारे में मालूम चला तो उन्होने मुझे मेरी टीम के सामने बहुत डांटा उन्होने कहा कि तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है.. ये लोग किसी के सगे नहीं होते.. ये कबाड़ी वाले क्या तुम्हारा घर चलाएंगे? प्रिंस बताते हैं कि उन्हे उस दिन बहुत बुरा लगा लेकिन फिर भी उन्होने अपने काम को चुपचाप जारी रखा. प्रिंस बताते हैं कि कुछ लोगों ने ये भी कहा कि नेता बनना है? नेतागिरी करनी है? प्रिंस ने ऐसे लोगों से कहा कि अगर ये नेतागिरी है तो हर नागरिक को नेतागिरी करनी चाहिए.
'एशिया बुक ऑफ रिकार्ड में नाम दर्ज'
प्रिंस बताते हैं कि तमाम मुश्किलों के बावजूद तमाम ताने सुनने को बावजूद वो अपना काम शांति से करते रहे और उसी का नतीजा है कि आज उनका और उनके बच्चों का नाम इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड और एशिया बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज हो चुका है. प्रिंस बताते है कि टीचर्स डे पर डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णनन की 60वीं जयंती पर उनके 60 बच्चों ने 3.51 सेकेंड में डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णनन के 60 कैरीकेचर बनाए थे. जिसके लिए पहले उनका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकार्ड और फिर एशिया बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज हुआ.