खुद के लिए तो हर कोई जीता है लेकिन दूसरों के लिए जीने वाले कम ही होते हैं. आज की कहानी ऐसे ही एक व्यक्ति के बारे में है जो व्यस्त जीवन से कुछ समय निकालकर गरीबों की सेवा में लगा रहा है. दिन में एक टाइम भोजन करना और चिलचिलाती धूप में नंगे पैर गांव-गांव जाना मकसद सिर्फ एक गरीबों की सेवा
गरीबों का करते हैं इलाज
पिछड़े वर्ग के समुदाय से ताल्लुक रखने वाले जयंत महतो कभी नहीं भूलते कि वे क्या हैं, शिक्षा और गरीबों की सेवा उनका पहला कर्तव्य है. आज वह झारग्राम जिले के लालगढ़ में ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर हैं, जो कभी माओवादियों का अड्डा था. महतो ड्यूटी के घंटों के बाद दूर-दराज के गांवों में जाते हैं और उन गरीब मरीजों का इलाज करते हैं, जिन्हें भीड़-भाड़ वाली स्थानीय सरकारी स्वास्थ्य इकाई में डॉक्टर के पास जाने में मुश्किल होती है.
महतो ने सालों पहले ही अपना मन बना लिया था कि वह कभी भी प्राइवेट प्रैक्टिस नहीं करेंगे और पैसे के बदले में लोगों का इलाज नहीं करेंगे. वह खुश हैं कि उन्होंने अभी तक अपनी इस बात को कायम रखा.
महतो ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से कहा,“मैं सेवा में शामिल होने से पहले ली गई शपथ को नहीं भूलता. इस शपथ में उन्होंने स्वीकारा, 'मैं मानव जीवन के लिए अत्यंत सम्मान बनाए रखूंगा. मैं अपने कर्तव्य और अपने रोगी के बीच धर्म, राष्ट्रीयता, नस्ल, दलगत राजनीति, या सामाजिक प्रतिष्ठा के विचार को हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं दूंगा. मैं अपने पेशे की सेवा विवेक और गरिमा के साथ करूंगा.”
किसान परिवार से हैं महतो
महतो का जन्म एक छोटे से किसान परिवार में हुआ था. उनका जीवन काफी संघर्षों में बीता. 3 बीघा जमीन पर उनके परिवार के 4 लोगों का पालन पोषण चलता था. उनकी मां एक गृहिणी हैं और उन्हें महतो की शिक्षा के लिए पैसे जुटाने के लिए खेतों में काम करना पड़ता था. एक बार उनकी मां को बच्चों के हिस्सा का चावल भी बेचना पड़ा ताकि उनके स्कूल की फीस और पढ़ाई का अन्य खर्च जुटाया जा सका.
साइकिल से जाते थे स्कूल
महतो माणिकपारा गांव के रहने वाले हैं. वह अपने प्राथमिक स्कूल पैदल चलकर जाते थे, चाहे मौसम कैसा भी हो. ग्यारहवीं और बारहवीं कक्षा की पढ़ाई के दौरान, उन्होंने किसी तरह हाई स्कूल जाने के लिए एक साइकिल का इंतजाम किया. उनका स्कूल उनके घर से 6 किमी दूर था. झाड़ग्राम के एक केंद्र से कोचिंग ट्यूशन लेने के बाद, वह 2012 में संयुक्त प्रवेश परीक्षा में शामिल हुए और एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी की और 2018 में स्वास्थ्य सेवा में शामिल हो गए.
उनकी पहली पोस्टिंग बेलपहाड़ी स्वास्थ्य केंद्र में हुई थी, जिसे पश्चिम बंगाल में माओवादी आंदोलन के केंद्र के रूप में जाना जाता है. बेलपहाड़ी भुखमरी, सूखे और कुपोषण के मुद्दों से पीड़ित है. महतो ने कहा, “पहली पोस्टिंग मेरे लिए एक चुनौती थी. मेरे शामिल होने के कुछ ही समय बाद, कोविड-19 का प्रकोप शुरू हो गया. हमारे पास खाने और सोने का समय नहीं था. स्वास्थ्य केंद्र पर मरीजों का तांता लगा रहा. ड्यूटी पूरी करने के बाद मैं अपने जागरूकता अभियान के तहत ग्रामीणों के पास जाकर उन्हें सचेत किया करता था.”
साल 2022 में महतो का तबादला बिनपुर-एक प्रखंड के लालगढ़ में कर दिया गया. लालगढ़ एक पिछड़ा क्षेत्र है जहां मलेरिया और डायरिया का प्रकोप आम है. महतो कहते हैं, बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए गहन जागरूकता की आवश्यकता है. महतो ने आगे कहा, "बीमारियों से बचने के लिए बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए मैंने क्षेत्र के दूरदराज के इलाकों की यात्रा शुरू की. ये बीमारियां गर्भवती महिलाओं के लिए घातक हो सकती हैं. उन्हें अतिरिक्त देखभाल की जरूरत है. मैंने उन्हें पीने के पानी का उपयोग करना सिखाना शुरू किया. गहन जागरूकता अभियान के बाद, हमारा प्रयास प्रभावी साबित हुआ.”
क्यों नहीं करते प्राइवेट प्रैक्टिस
महतो अब प्रखंड के पांच प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के प्रभारी हैं. वह निजी प्रैक्टिस का विकल्प इसलिए नहीं चुनते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि पैसे कमाने से बेहतर है कि गरीबों के साथ समय बिताया जाए. वहीं उनकी नेकी के किस्से पूरे गांव में चर्चा में हैं. रामगढ़ निवासी फुलरानी टुडू कहती हैं, ''मेरा 8 साल का बेटा तेज बुखार से पीड़ित था. मेरे पति दूसरे जिले में प्रवासी मजदूर के रूप में काम करते हैं. मैं अपने बेटे को लालगढ़ प्रखंड अस्पताल ले जाने की स्थिति में नहीं थी जो मेरे गांव से 11 किलोमीटर दूर था. जब डॉक्टर 'बाबू' हमारे गांव आए, तो मैं उनके पास दौड़ी आई. उन्होंने आकर मेरे बेटे की जांच की और मेरे बेटे को अस्पताल पहुंचाने के लिए सभी इंतजाम किए. मैं अपने बेटे को एक हफ्ते के बाद घर वापस ले आई.”