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गाय के गोबर का कमाल, चूल्हे की तपन से महिलाओं को मिली राहत, घर-घर पहुंची गैस पाइपलाइन

अमेरिका की एक संस्था, ‘इंजीनियरिंग विदाउट बॉर्डर’ (EWB) दुनिया भर में गरीब लोगों के लिए काम करती है. इस संस्था से बहुत से इंजीनियर जुड़े हुए हैं और वे सभी अपनी सैलरी में से पैसे बचा कर समाज के लिए काम कर रहे हैं. इस संस्था ने चिपया गांव में गोबर गैस प्लांट का निर्माण किया है. 

चूल्हे से मिली राहत चूल्हे से मिली राहत
हाइलाइट्स
  • यू एस की कंपनी द्वारा बनाया गया गोबर गैस प्लांट

  • महंगी गैस की जगह ली गोबर गैस ने

मध्य प्रदेश के आगर मालवा की रहने वाली ममता को पहले घर में खाना बनाने से लेकर चाय बनाने तक के लिए जंगल से लकड़ियां बिन कर लानी पड़ती थीं. कभी गायों और जानवरों के गोबर से कंडे बनाती थीं ताकि घर में ईंधन रहे. फिर खाना बनाते हुए धुएं से परेशानियों का सामना करना पड़ता था. 

पर अब उनका जीवन बदल गया है. अब उन्हें ऐसा कुछ नहीं करना पड़ता है. और यह कमाल हुआ है गोबर गैस प्लांट के कारण. 

अमेरिका की संस्था की पहल:

दरअसल अमेरिका की एक संस्था, ‘इंजीनियरिंग विदाउट बॉर्डर’ (EWB) दुनिया भर में गरीब लोगों के लिए काम करती है. इस संस्था से बहुत से इंजीनियर जुड़े हुए हैं और वे सभी अपनी सैलरी में से पैसे बचा कर समाज के लिए काम कर रहे हैं. इस संस्ठा ने चिपया गांव में गोबर गैस प्लांट का निर्माण किया है. 

गुड न्यूज टुडे ने यूएसए से आए इंजीनियर से बात की. इस गांव को चुनने के पीछे उन्होंने बताया कि यहां गायों के गोबर की उपलब्धता के साथ-साथ पानी की उपलब्धता भी है. वातावरण भी अच्छा है और इसी वजह से वे यहां पर यह प्लांट लगा रहे हैं. 

साथ ही, महिलाओं की तकलीफों को दूर करने के लिए यह प्लांट लगाया गया है ताकि घर-घर में गोबर गैस पहुंचे और महिलाएं सुरक्षित हों.

सैकड़ों परिवारों को मिली राहत:

इस प्लांट की कीमत करोड़ों रुपए हैं. इस प्लांट से पास के गांव के सैकड़ों परिवारों को फायदा मिल रहा है. क्योंकि यहां से जो पाइप लाइन बिछाई गई है उसका कनेक्शन गांव में दिया जा रहा है. लोगों के घर में पाइप लाइन बिछाने का काम शुरू हो गया है. 

जिससे अब महिलाओं को चूल्हे से आराम मिलेगा. अलग-अलग विभागों के संगठनात्मक सहयोग के चलते यह प्लान तैयार किया गया है और इस प्लांट के बनने से काफी लोगों को फायदा हो रहा है. 

कैसे काम करता है प्लांट:

टेक्निकल रूप से अगर देखा जाए तो इस प्लांट को तीन भागों में बांटा गया है. पहले भाग में पांच गहरे-गहरे गड्ढे हैं जिनमें गौशाला का गोबर डाला जाता है. फिर पानी डाला जाता है. गोबर से गैस बनने के बाद इसे एक स्टोरेज में स्टोर किया जाता है. पाइप लाइन के जरिए इस गैस को गांव में पहुंचाया जाता है..गांव के पहले ही एक दूसरा स्टोरेज बनाया गया है जहां गैस इकट्ठा होती है. यहां से एक पतले पाइप के जरिए कनेक्शन घर-घर तक पहुंचाए गए हैं. 

गोबर गैस कनेक्शन के गांव में आने के कारण महिलाओं में काफी राहत देखी जा रही है. महिलाओं का मानना है कि उन्हें अब जंगल जाकर लकड़ियां इकट्ठा करने या चूल्हा जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. क्योंकि अब उन्हें काफी किफायती कीमत पर बायो गैस मिलेगी. अब हर घर में मीटर लगे हैं और अब महिलाओं को केवल ₹300 प्रति माह का ही खर्च आता है. 
 

(प्रमोद कारपेंटर की रिपोर्ट)