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Exclusive: गरीब बच्चों को 1 लाख तक के फ्री prosthetic leg देकर उनके जीवन को संवारने का काम कर रही हैं मधुरम चैरिटेबल ट्रस्ट की फाउंडर श्रद्धा सोपारकर

श्रद्धा सोपारकर एक इंटरप्रेन्योर और मधुरम चैरिटेबल ट्रस्ट की संस्थापक ट्रस्टी हैं. इस ट्रस्ट के माध्यम से श्रद्धा स्पेशल डिसेब्लड बच्चों (disabled child)और शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के जीवन को बदल रही हैं.

Shraddha Soparkar Shraddha Soparkar

श्रद्धा सोपारकर अस्पताल के हॉल में बैठी थीं और अंदर उनकी बेटी का थेरेपी सेशन चल रहा था, जोकि एक स्पेशल चाइल्ड है. श्रुति (श्रद्धा की बेटी) को सेरेब्रल पाल्सी है. सेरेब्रल पाल्सी एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर होता है जो बच्चों की शारीरिक गति, चलने-फिरने की क्षमता को प्रभावित करता है.

सोपारकर ने इधर-उधर देखा तो उन्हें अपने बगल में एक अन्य महिला बैठी दिखाई दी जोकि वहां अपने बच्चे का इलाज करवाने आई थी. उसकी भी थेरेपी होनी थी. श्रद्धा ने देखा कि महिला दोपहर के खाने में केवल छाछ पी रही थी. ये देखकर उन्हें उत्सुकता हुई और श्रद्धा खुद को रोके नहीं पाई और महिला से पूछा कि उसने दोपहर का खाना क्यों नहीं खाया ? इस पर महिला ने जवाब दिया, "अगर मैं रोज खाऊंगी, तो मैं अपने बेटे के इलाज का खर्च कैसे उठाऊंगी?" इस बात ने सोपारकर को अंदर तक झकझोर दिया. इसके बाद सोपारकर ने महिला के बेटे के इलाज के लिए पैसे दिए और इस ओर कुछ और करने की सोची. एक बच्चे से शुरुआत करते हुए सोपारकर ने जल्द ही ऐसे कई बच्चों को वित्तीय सहायता देना शुरू कर दिया. जब वह दसवें बच्चे की मदद कर रही थी, तो उनके परिवार ने सुझाव दिया कि वह इस पहल को बड़े पैमाने पर ले जाएं और यहीं से 2019 में मधुरम चैरिटेबल ट्रस्ट का जन्म हुआ. श्रद्धा ने बताया कि मधुरम (Madhuram Charitable Trust) ऐसा पहला NGO है जो मेंटली चैलेंज लोगों के लिए काम कर रहा है. 

श्रद्धा सोपारकर एक इंटरप्रेन्योर और मधुरम चैरिटेबल ट्रस्ट की संस्थापक ट्रस्टी हैं. इस ट्रस्ट के माध्यम से श्रद्धा स्पेशल डिसेब्लड बच्चों (disabled child)और शारीरिक रूप से विकलांग व्यक्तियों के जीवन को बदल रही हैं. चार साल से भी कम समय में, ट्रस्ट ने 900 से अधिक स्पेशल बच्चों को थेरेपी, हियरिंग एड (सुनने वाली मशीन) और अन्य उपकरण देकर संवारा है. इसी तरह, जिन बच्चों के पैर नहीं होते या जो चल फिर नहीं सकते ऐसे लगभग 200 ऑर्टिफिशियल पैर (prosthetic legs)यानि लगभग 180 लोगों दे चुकी हैं. इनमें से कई लोगों के दोनों पैर नहीं थे. इन आर्टिफिशियल पैर को खासतौर पर जर्मनी से इम्पोर्ट किया जाता है.

क्या होती है इसकी कीमत?
श्रद्धा ने GNT Digital को बताया कि लाभार्थियों को जो कृत्रिम पैर (prosthetic legs)वो देती हैं, वे जर्मनी में बने होते हैं और प्रत्येक की लागत एक लाख से तीन लाख रुपये के बीच होती है. इन्हें आर्थोपेडिक टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में अग्रणी कंपनी ओटोबॉक (Ottobock)बनाती हैं. ये पैर बहुत ही हल्के होते हैं और एक सिलिकॉन लाइनर के साथ आते हैं, जिससे इन्हें पहनना और भी आसान हो जाता है. प्रोस्थेटिक्स में एक हाइड्रोलिक घुटने का जोड़ होता है, जो मूवमेंट को आसान बनाता है, और इसका पैर आगे की तरफ बढ़ाना आसान हो जाता है. उन्होंने आगे कहा, मैं दूसरे एनजीओ से अपनी तुलना नहीं करना चाहती, जिनमें से कई विशेष रूप से विकलांग व्यक्तियों को ठीक करने में महत्वपूर्ण काम कर रही है, लेकिन हमारा ध्यान और प्रतिबद्धता लाभार्थियों को सर्वश्रेष्ठ देना और ताकि वो अपनी जिंदगी बेहतर तरीके से जी सकें के लिए उनकी मदद करना है.

क्या पैसे को लेकर कभी कोई दिक्कत नहीं आई?
किसी भी प्रोजेक्ट या किसी भी सपने के लिए पहली चुनौती यह सोचना है कि सपना बहुत बड़ा है. जब मैंने मधुरम शुरू किया और जब लोगों को पता चला कि एक कृत्रिम पैर की कीमत 1 लाख रुपये है तो उन्होंने मेरा मजाक उड़ाया. उन्होंने कहा कि कृत्रिम पैर 10 हजार रुपए में मिल जाते हैं. इस पर मैंने तर्क दिया कि अगर मेरा बच्चा अक्षम है, तो क्या मैं 10,000 रुपये का पैर उसको लगवाउंगी? नहीं, मैं जर्मनी जाऊंगी और उसके लिए अच्छे से अच्छा करने की सोचूंगी क्योंकि मैं ये सब कर सकती हूं. लेकिन,यहां दिक्कत उन लोगों के साथ आती है जो ये खर्चा नहीं उठा सकते और उन्हें घटिया समान दिया जाता है. 

आपके आसपास के लोग आपको नीचे खींचने की कोशिश करते हैं. ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती खुद पर विश्वास करना है. दुनिया में किसी भी प्रोजेक्ट के लिए सबसे बड़ी चुनौती फाइनेंस होती है क्योंकि सारी चीजें आकर पैसे पर रुकती हैं. एक अच्छा उत्पाद बेचना मुश्किल है, लेकिन बदले में कुछ नहीं मिलने पर लोगों की जेब से पैसा निकालना और भी मुश्किल है. आज हमने 900 बच्चों की मदद की है और मेरे पास केवल तीन कर्मचारी हैं. सबसे बड़ी चुनौती है अपने फाइनेंस को बढ़ाना, अपने धन का प्रबंधन करना और जब तक आप धन के प्रति आश्वस्त न हों, तब तक कोई प्रोजेक्ट शुरू न करें.

श्रद्धा ने ट्रस्ट में करने के लिए लोग क्यों नहीं रखे हैं इस पर उन्होंने कहा, जैसे-जैसे कोई व्यवस्था बढ़ती है और फैलती है, पारदर्शिता और ईमानदारी बनाए रखना बहुत मुश्किल हो जाता है. इसलिए सही लोगों को काम पर रखना और फाइनेंस पर नियंत्रण बनाए रखना एक और चुनौती है. 

क्या ये बिल्कुल फ्री हैं?
उन्होंने बताया कि वैसे तो ये आर्टिफिशियल पैर पूरी तरह से फ्री हैं, लेकिन इनको लगाने के बाद फीजियोथेरेपी की जरूरत पड़ती है क्योंकि बिना इसके आपकी बॉडी इसे एक्सेप्ट नहीं करेगी. लेकिन वहां पर कुछ लोग ऐसे भी थे जो फिजियोथेरेपी वाला सेशन नहीं लेते थे क्योंकि कई बार जो चीजें आपको मुफ्त में मिलती हैं आप उसकी वैल्यू नहीं समझते हैं इसलिए पैसे वेस्ट हो जाते हैं. इसको ठीक करने के लिए मैं उनके एक छोटे से अमाउंट का डिपॉजिट लेती हूं और जब थेरेपी पूरी हो जाती है तो ये पैसे उन्हें वापस कर दिए जाते हैं. ये सिर्फ इसलिए किया गया ताकि वो इसकी वैल्यू समझे और उसे अपनाएं. एनजीओ को इसमें कोई प्रॉफिट नहीं है. मेंटल थेरेपी के लिए हमने कई सारे थेरेपी सेंटर्स से टाई-अप कर रखा है. वहां जो भी गरीब आता है और वो थेरेपी का खर्चा वहन नहीं कर सकता है हम उसके लिए उसे पे कर देते हैं. इसके लिए हम सिर्फ 20 रुपये चार्ज करते हैं जोकि हर कोई आसानी से दे सके. रही बात सेपाथॉन (Stepathon Project) की यानि कृत्रिम पैर देने की तो इसके लिए हमने पहले हॉस्पिटल्स से कनेक्ट कर रखा था लेकिन अब कई लोगों तक ये बात फैल चुकी है तो वो खुद आगे आकर मदद मांगते हैं.

किसे पहले मदद करनी है ये कैसे तय करती हैं?
श्रद्धा ने हमें बताया,''मेरी इच्छा है कि मैं हर एक व्यक्ति की मदद कर सकूं जो हमसे संपर्क करता है लेकिन यह संभव नहीं है, कम से कम वर्तमान में. हमारे पास लाभार्थियों को प्राथमिकता देने की प्रणाली है. युवा हमारी पहली प्राथमिकता हैं क्योंकि उनके आगे लंबा जीवन है और कईयों के परिवार भी हैं. हमारी अगली प्राथमिकता छोटे बच्चे हैं क्योंकि कम उम्र में उनकी सहायता करने से उन्हें पढ़ने और अपने सपनों को पूरा करने में मदद मिल सकती है. वृद्ध लोग या वरिष्ठ नागरिक हमारी प्राथमिकता सूची में अगले स्थान पर हैं. यह एक कठिन विकल्प है लेकिन हमें इसे बनाना है. हम प्रत्येक व्यक्तिगत मामले को देखते हैं और तय करते हैं कि कौन सबसे ज्यादा जरूरतमंद या योग्य है और उसी के अनुसार उनकी मदद करता हैं.''

ऐसी कोई घटना जिसने आपको टच किया
वैसे तो हर एक व्यक्ति की मदद करके मुझे उतनी ही खुशी मिलती है. लेकिन उनमें से कुछ एक जो सबसे स्पेशल होते हैं उनमें से एक हैं चंद्रकांत काका. चंद्रकांत काका एक टी स्टॉल पर काम करते थे और उनके एक पैर नहीं था. उनके हाथों में जादू था और वो बेहतरीन चाय बनाते हैं. लोग लाइन लगाकर उनके हाथ की चाय पीने आते थे. वहां पर उन्हें हर महीने 4 से 5 हजार रुपये मिलते थे. उनके परिवार में कोई नहीं है और वो टिन के घर में रहते हैं और बेहद गरीब हैं. उनके जो आर्टिफिशियल पैर लगाया गया उसकी कीमत 1 लाख 60 हजार आई क्योंकि वो घुटने के ऊपर से लेकर नीचे तक का हिस्सा था. चंद्रकांत काका इतने गरीब हैं कि वो उस समय डिपॉजिट के पैसे भी नहीं दे पाए थे. फिजियोथेरेपी के तौर पर हम लोगों को साइकिल चलाना भी सिखाते हैं. काका कहीं से साइकिल मांगकर ले आए और उन्होंने वो भी सीखा. इसके बाद काका ने साइकिल से पेपर बांटने का काम भी शुरू कर दिया. सुबह में वो पेपर बांटते थे और फिर चाय की दुकान पर काम करते थे. इससे उनकी इनकम 12 हजार के पास हो गई. इसके बाद सबसे चौंकाने वाली बात ये हुई कि काका ने मधुरम ट्रस्ट को 30 हजार का डोनेशन दिया.

आगे क्या लक्ष्य है?
स्टेपथॉन हमारा मेन प्रोजेक्ट है, जिसके तहत हम विशेष रूप से सक्षम लोगों को कृत्रिम पैर प्रदान करते हैं. हम विशेष रूप से सक्षम बच्चों के लिए कई उपचार और सर्जरी का भी समर्थन करते हैं जिसके तहत हम अब तक 900 से ज्यादा लोगों की मदद कर चुके हैं.  साथ ही हम एक एक्वा थैरेपी सेंटर (Aqua Therapy Centre) भी शुरू कर रहे हैं. एक्वा-थेरेपी चमत्कार करती है. फिजियोथेरेपी की तुलना में एक्वा-थेरेपी के साथ विशेष जरूरतों वाले लोगों के लिए सामान्य स्थिति को सक्षम करने की गति तेज है. इसलिए, हम विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के सामान्य जीवन में तेजी लाने के लिए दोनों उपचारों को मिलाएंगे. मधुरम चैरिटेबल ट्रस्ट अहमदाबाद नगर निगम से अहमदाबाद शहर में एक केंद्रीय स्थान पर भूमि प्राप्त करने में कामयाब रहा है, जो सभी के लिए आसानी से सुलभ है. हम वहां एक विश्व स्तरीय स्विमिंग पूल बनाने की योजना बना रहे हैं और शारीरिक चुनौतियों या अन्य विशेष जरूरतों का सामना करने वाले लोगों को नि: शुल्क एक्वा-थेरेपी प्रदान करते हैं.