पंजाब के गुजरानवाला में 31 अगस्त 1919 को जन्मीं अमृता प्रीतम भारत की एक जानी-मानी उपन्यासकार, निबंधकार और कवयित्री थीं. लेकिन इस सब के अलावा उनकी पहचान का एक हिस्सा प्रेम भी है जो उनकी कहानियों और कविताओं के जरिए पॉपुलर कल्चर में शामिल हुआ है. अमृता की आत्मकथा 'रसीदी टिकट' में उनके दो प्रेम संबंधों का जिक्र है. पहला, जो उनके और शायर साहिर लुधियानवी के बीच रहा. दूसरा, जो उनके और पेंटर इंद्रजीत सिंह उर्फ इमरोज़ के बीच रहा.
अमृता-इमरोज़ के रिश्ते को जमाने के बंधन परिभाषित नहीं कर सकते थे. अमृता के इस दुनिया से जाने से पहले दोनों करीब 45 साल तक साथ रहे लेकिन कभी शादी नहीं की. शायद यही वजह है कि दोनों के रिश्ता आज भी कई कविताओं और कहानियों का हिस्सा है.
कैसे हुए पहली मुलाकात?
अमृता और इमरोज़ जब पहली बार मिले थे तब अमृता शादी के बंधन में बंधी हुई थीं. अमृता को उनकी कविता सुनेहड़े के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था. इमरोज़ को उनकी कविता का कवर बनाने के लिए तलब किया गया. इमरोज़ पहली ही नज़र में उनके प्यार में पड़ गए. हालांकि उस वक्त अमृता के जीवन में प्यार के लिए कोई जगह नहीं थी. खुद से 10 साल छोटे आदमी के लिए तो बिलकुल नहीं.
इस समय तक अमृता के दो बच्चे थे लेकिन वह पंजाब के व्यवसायी प्रीतम सिंह के साथ शादी के बंधन में खुश नहीं थीं. आखिरकार 1960 में अमृता और प्रीतम के बीच तलाक भी हो गया. बहरहाल, इमरोज़ ने कभी भी अमृता के लिए अपना प्यार नहीं छुपाया. साथ काम करते हुए अमृता और इमरोज़ के बीच की नज़दीकियां बढ़ीं. अमृता अपनी शुरू की हुई नागमनी मैगज़ीन के लिए लिखती थीं और इमरोज़ उसके कवर डिज़ाइन करते थे. दोनों ने 50 के दशक के अंत तक दिल्ली के हौज़ ख़ास में साथ रहना शुरू कर दिया.
क्यों नहीं की शादी?
दोनों 40 साल तक साथ रहे लेकिन कभी शादी नहीं की. इसकी एक वजह यह थी कि अमृता साहिर लुधियानवी से बेहद प्यार करती थीं. उमा त्रिलोक अपनी किताब 'अमृता-इमरोज़: अ लव स्टोरी' में बताती हैं कि अमृता जब ऑल इंडिया रेडियो में काम करती थीं तब इमरोज़ उन्हें अपने स्कूटर पर दफ्तर छोड़ने जाया करते थे. अमृता अकसर इमरोज़ की पीठ पर कुछ शब्द उकेरा करती थीं. एक बार जब इमरोज़ ने ग़ौर किया तो पाया कि अमृता उनकी पीठ पर 'साहिर' लिख रही हैं.
कई लोग आज भी हैरत करते हैं कि साहिर के लिए अमृता के प्रेम को लेकर इमरोज़ हमेशा इतना सहज क्यों रहे? उमा त्रिलोक 'अमृता-इमरोज़: अ लव स्टोरी' में बताती हैं, "इमरोज़ कहते थे कि जब आप किसी से प्यार करते हैं और आपको अपने प्यार पर यकीन होता है, तो आप रास्ते में आने वाली अड़चनों को नहीं गिनते."
अमृता को कई नामों से पुकारते थे इमरोज़
इमरोज़ अपने प्यार को ज़ाहिर करने के लिए अमृता को कई नामों से पुकारते थे. उमा त्रिलोक की किताब "अमृता प्रीतम और इमरोज़ के ख़तों का सफरनामा" बताती है, "इमरोज़ अमृता को बहुत से नामों से पुकारते बुलाते रहे हैं. 'आशी' से लेकर 'बरकते' तक, कितने ही नामों से. उन्हें जो भी सुन्दर लगता, वह उन्हें उसी नाम से पुकारने लगते. जो भी पसन्द आता, वही नाम रख देते. जब उन्होंने 'जोरबा-द-ग्रीक' नॉवल पढ़ा तब वह उन्हें 'ज़ोरबी' पुकारने लगे. स्पेनिश आर्टिस्ट गोया पर लिखे नॉवल 'द नेकिड माजा' को पढ़ने के बाद कितने ही समय तक इमरोज़ अमृता को 'माजा' कहकर पुकारते रहे."
आख़िरी वक़्त तक रहे 'मैडम' के साथ
इमरोज़ न सिर्फ अमृता से प्यार करते थे. बल्कि उनका बेहद सम्मान भी करते थे. इंडियन एक्सप्रेस का एक आर्टिकल गीतकार गुलज़ार के हवाले से बताता है कि इमरोज़ लगभग हमेशा की अमृता को 'मैडम' कहते थे. चाहे वह सामने हों या नहीं. अमृता का निधन 86 साल की उम्र में 2005 में दिल्ली में हुआ. इमरोज़ उनके बिना करीब 18 साल जिन्दा रहे और कई कविताएं लिखकर उन्हें याद किया.
साल 2023 में 97 साल की उम्र में इमरोज़ ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया. जो लोग अमृता के लिए इमरोज़ के प्यार पर सवाल उठाते हैं वे ये भी पूछते हैं कि अमृता ने इमरोज़ के साथ रहना क्यों चुना? उमा त्रिलोक 'अमृता प्रीतम और इमरोज़ के ख़तों का सफरनामा' में लिखती हैं, "अमृता को जीने के लिए अपने पाठकों, आलोचकों या प्रशंसकों की वाह-वाह काफी नहीं थी. उन्हें प्यार चाहिए था. उस शख्स का, जिसे वह अपना रांझा या मिर्जा बना सकती थीं."