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90% से ज्यादा मुस्लिम कारीगर करते हैं मंदिरों में बज रही ढोलकें तैयार, विदेशों में भी की जा रहीं हैं एक्सपोर्ट

रामचरण प्रजापति की फैक्ट्री में बनने वाली ढोलकों की बात और उनका अंदाज बड़ा निराला है. यहां पर कुछ ऐसी ढोलक बनाई जाती हैं जो पूरे देशभर में कहीं नहीं मिलती. यहां पर बनने वाली ढोलक के साथ-साथ इस फैक्ट्री के मालिक की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. पढ़िए पूरी खबर.

अमरोहा में बनती हैं ढोलक अमरोहा में बनती हैं ढोलक
हाइलाइट्स
  • अमरोहा में हैं 350 ढोलक बनाने वाली फैक्ट्री

  • विदेशों को एक्सपोर्ट करते हैं ढोलक

उत्तर प्रदेश के अमरोहा में बनने वाली ढोलक की ताल भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में मशहूर है. यहां पर छोटी-बड़ी मिलाकर कुल 350 ढोलक बनाने वाली फैक्ट्री हैं. इन फैक्ट्री में काम करने वाले कारीगर और मजदूर बचपन से ही इस काम में लगे हैं. खास बात यह है कि मंदिरों में बजने वाले ढोलक को गढ़ने वाले कारीगर 90% मुस्लिम समुदाय के हैं.
 
लेकिन रामचरण प्रजापति की फैक्ट्री में बनने वाली ढोलकों की बात और उनका अंदाज बड़ा निराला है. यहां पर कुछ ऐसी ढोलक बनाई जाती हैं जो पूरे देशभर में कहीं नहीं मिलती. यहां पर बनने वाली ढोलक के साथ-साथ इस फैक्ट्री के मालिक की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. 
 
मजदुर से बने फैक्ट्री के मालिक:

पांच से छह दिन में तैयार होती है एक ढोलक


 
दरअसल इस फैक्ट्री के मालिक राम प्रजापति पहले मजदूरी का काम किया करते थे. वह लकड़ियों का ठेला चलाते थे. लेकिन उन्होंने बाद में धीरे-धीरे अपनी एक छोटी सी दुकान खोली और दिन-रात मेहनत की. उस मेहनत का नतीजा यह रहा कि आज वह एक भव्य ढोलक फैक्ट्री के मालिक हैं. 
 
राम चरण प्रजापति ने गुड न्यूज़ टुडे को बताया कि एक ढोलक को बनाने में 5 से 6 दिन का समय लगता है. इसकी शुरुआत लकड़ी की कटाई से होती है. कटाई के बाद उसकी छिलाई की जाती है. छिलाई के बाद उसे मशीन में डालकर सतह को समतल किया जाता है. इसके बाद ढोलक को पोला करके उसको संपूर्ण ढांचे का रुप दिया जाता है.
 
ढांचे में डालने के बाद इसके रंगाई-पुताई से लेकर सुर-ताल के लिए फाइनल टच दिया जाता है. इस फैक्ट्री में छोटे से छोटे ढोलक और सबसे महंगा ढोलक भी उपलब्ध है. 
 
विदेशों को एक्सपोर्ट करते हैं ढोलक: 
 
रामचरण प्रजापति के बेटे राजीव प्रजापति बताते हैं कि अब से लगभग 30 साल पहले DJEMBE नाम का ढोलक दूसरे देशों से इंपोर्ट हुआ करता था. भारत में इतनी सुविधाएं नहीं थी कि यहां पर ढोलक बनाया जा सके. लेकिन फिर किसी फैक्ट्री में ढोलक बनाने का काम शुरू हुआ. 
 
और तब से लेकर अब अमरोहा से दूसरे देशों में ढोलक एक्सपोर्ट किए जाते हैं. दरअसल इन ढोलको की डिमांड विदेशों में खूब रहती है. राजीव बताते हैं कि वह अमेजॉन से लेकर इंटरनेशनल वेबसाइट तक पर अपने प्रोडक्ट्स को बेच रहे हैं.