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Miyawaki Forest: मियावाकी तकनीक से जंगलों को हरा भरा कर रहे हैं बच्चे, जानिए इस जापानी विधि के बारे में

कर्नाटक में दो आर्किटेक्ट्स ने बच्चों को पर्यावरण संरक्षण के बारे में जागरूक करके Miyawaki Technique से पेड़-पौधे लगवा रहे हैं ताकि कम समय में घने जंगल उगाए जा सकें.

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कर्नाटक के चिक्कमगलुरु से सिर्फ 5 किमी दूर होसल्ली पल्लाकिहारा में तीन परिवारों के बच्चों ने पर्यावरण के संऱक्षित करने की अनोखी पहल की है. हरियाली का करने के लिए इन बच्चों ने लिए अनूठी जापानी मियावाकी पद्धति को अपनाया है. गुरु निर्वाण स्वामी मठ से जुड़ी अपनी प्रोपर्टी पर नए प्रोजेक्ट में लगे दो आर्किटेक्ट, अश्विनी और अजय, यहां पर मियावाकी पद्धति का उपयोग करके 16 एकड़ के होसल्ली पल्लाकिहारा के एक चौथाई हिस्से में विभिन्न प्रजातियों के पौधे लगाकर एक मिनी जंगल विकसित करने की योजना पर काम कर रहे हैं. 

अश्विनी का कहना है कि इस क्षेत्र में 600 पौधे लगाए गए हैं और उनकी योजना तीन गुना ज्यादा जंगल विकसित करने की है. इस दौरान उन्हें पता चला कि हैदराबाद में कई बिल्डर आवासीय क्षेत्रों में मिनी वन विकसित करने के लिए मियावाकी पद्धति अपना रहे हैं. हैदराबाद से उन्होंने इस विधि के बारे में और ज्यादा सीखा. फिर उन्होंने अपने बच्चों में जागरूकता पैदा की और 14-18 वर्ष के बीच के और दूसरे बच्चों को भी वनों के महत्व के बारे में समझाया. उनका प्रयोग सफल रहा और आज इनके परिवारों के बच्चे इस नेक काम में जुटे हैं. 

निर्वाणा स्वामी मतदामने की अंदिता, अरलागुप्पे परिवार के एएन ध्रुव और तोगारिहंकल परिवार की वेदांती ने पहले चरण में 4,000 वर्ग फुट के क्षेत्र में 600 पौधे उगाने की इस सामाजिक परियोजना को शुरू किया. उन्होंने आम, कटहल, पन्नारेल, इमली, नेली, अमरूद, संपिगे, मैटी और अत्ति जैसी स्थानीय प्रजातियों के पौधे लगाए. 

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क्या है Miyawaki Technique
1980 के दशक में अकीरा मियावाकी ने मियावाकी विधि को विकसित किया था. इसमें नेचुरल फॉरेस्ट कवर को बढ़ाने के लिए पेड़-पौधों की देशी प्रजातियों को इस तरीके से लगाते हैं कि इससे घने, तेजी से बढ़ने वाले जंगलों का निर्माण होता है. इसकी मुख्य विशेषताओं में देशी प्रजातियों का उपयोग, घनी मल्टी-लेवल प्लांटिंग, न्यूट्रिशन से भरपूर मिट्टी और थोड़ा-बहुत रखरखाव शामिल हैं. यह विधि तेजी से पौधे के विकास को बढ़ावा देती है और 20-30 सालों में जंगल लहलहाने लगता है. इस जंगल का विकास प्राकृतिक जंगल की तुलना में दस गुना तेजी से होता है. इसे विश्व स्तर पर सफलतापूर्वक लागू किया जा रहा है और यह ख़राब भूमि को हरे-भरे स्थानों में बदल देता है, खासकर शहरी क्षेत्रों में.

डंपयार्ड से ग्रीनस्पेस तक
पल्लाकिहारा कभी एक खुली जगह थी जिसका उपयोग कूड़े-कचरे के डंपयार्ड के रूप में किया जाता था. लेकिन आज, मियावाकी पद्धति का उपयोग करके बनाए गए एक छोटे जंगल की सुरक्षा के लिए 4,000 वर्ग फुट क्षेत्र को 5 किमी की बाड़ से सुरक्षित किया गया है. भूमि को होबैक मशीनों का उपयोग करके समतल किया गया और तीन ब्लॉकों में विभाजित किया गया. तीन फुट का गड्ढा खोदा गया, जिसके ऊपर गोबर, गन्ने के डंठल और नई मिट्टी बिछाई गई. इसके अलावा, गड्ढे खोदने के लिए उन्नत मशीनों का इस्तेमाल किया गया, जिससे प्रत्येक पौधे के बीच तीन फीट का अंतर रखा गया. यहां विभिन्न प्रजातियों के पौधे लगाए गए हैं. 

चिक्कमगलुरु गोल्फ क्लब के अध्यक्ष एबी सुदर्शन ने इस नई परियोजना को शुरू करने के लिए बच्चों की सराहना की है. मियावाकी-प्रकार का जंगल पक्षियों, छोटे जानवरों, तितलियों और मधुमक्खियों को आश्रय प्रदान करता है. यह मियावाकी पद्धति शहरों और कस्बों में छोटे क्षेत्रों में जंगल उगाने का एक तरीका रही है. सरकारी संगठनों को इस संबंध में रुचि दिखानी चाहिए.