हमारे देश में कई मीनार हैं जैसे दिल्ली का कुतुब मीनार, हैदराबाद का चार मीनार, दौलताबाद की चांद मीनार, और कोलकाता का शहीद मीनार आदि. ये सभी मीनार अपनी बेजोड़ वास्तुकला और कारगरी के लिए प्रसिद्ध हैं. लेकिन आज हम आपको बता रहे हैं एक ऐसी मीनार को बारे में जो वास्तु और विज्ञान का अद्भुत उदाहरण है.
आज हम आपको बता रहे हैं अहमदाबाद के प्रसिद्ध झूलता मीनार के बारे में. जी हां, आपने ठीक पढ़ा- झूलता मीनार, जिसे सीदी बशीर मस्जिद के नाम से भी जाना जाता है. हालांकि, दुनियाभर में यह जगह झुलता मीनार या हिलती हुई मीनार के नाम से प्रसिद्ध है. गुजरात में आए भुकंप के झटकों को भी यह मस्जिद झेल चुकी है.
इस कारण पड़ा नाम
अब सवाल है कि इस मीनार को यह नाम कैसे मिला. दरअसल, मस्जिद के अगले हिस्से में दो मीनारें खड़ी हैं और ये मीनारें तीन मंजिला है. इन मीनारों के अंदर सीढ़ियों से ऊपर एक माले तक जाया जाता है. और बताया जाता है कि अगर कोई एक मीनार में जाकर इसे अंदर से हिलाता है तो थोड़ी देर बाद दूसरी मीनार भी अपने आप वाइब्रेट करने या कहें कि हिलने लगती है.
हैरत की बात यह है कि इन दोनों मीनारों का जोड़ने वाला बीच का हिस्सा, जिसे मेहराब कहते हैं, वह बिल्कुल भी नहीं हिलता है. यह अपने आप में अजूबा है. अंग्रेजों ने भी इस रहस्य को जानने की कोशिश की लेकिन वे भी असफल रहे और आज भी यह बात एक रहस्य है कि मेहराब में वाइब्रेशन के बिना दूसरी मीनार अपने आप कैसे हिलने लगती है.
झूलता मीनार का इतिहास
झूलता मीनार अहमदाबाद की सबसे बड़ी मीनार है. ऐसा माना जाता है कि सारंगपुर दरवाजे के पास सीदी बशीर मस्जिद को 1452 ईस्वी में सुल्तान अहमद शाह के गुलाम सीदी बशीर ने बनवाया था. 1753 में अहमदाबाद में मराठा और गुजरात सल्तनत खान के बीच युद्ध हुआ था. इस युद्ध के दौरान झूलती मीनार का पिछला हिस्सा टूट गया था, अब इसकी 2 मीनारें और बीच का मेहराब यहीं रह गया है.
हालांकि, यह संरचना अब बहुत पुरानी हो चुकी है इसलिए कुछ सालों से इस मस्जिद में पर्यटकों की एंट्री पर रोक लगा दी गई है. पिछले कई सालों से इस मीनार में कोई नहीं गया है. लेकिन आर्किटेक्चर पढ़ने वाले छात्र और एक्सपर्ट्स आज भी इसी खोज में लगे हैं कि इन मीनारों के हिलने का आखिर कारण क्या है. हर किसी की अपना थ्योरी है लेकिन प्रमाण किसी के पास नहीं.