कोणार्क, ओडिशा का एक छोटा सा शहर है. यह शहर अपने सूर्य मंदिर के लिए विश्व प्रसिद्ध है. यह वर्ल्ड हेरिटेज साइट है. कोणार्क शब्द- कोण और अर्क से मिलकर बना है. कोण यानी कोना या किनारा और अर्क का अर्थ है सूर्य. इसका मतलब हुआ सूर्य का किनारा.
कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण 1250 ईस्वी में गंगवंश के राजा नरसिंह देव प्रथम ने कराया था. इस मंदिर की पूरी संरचना रथ आकार की है. कोणार्क मंदिर को लोग इसके गहरे रंग के कारण 'काला पगोडा' भी कहते हैं. इस मंदिर की विशेषता है कि यहां बिना किसी घड़ी के भी दिन के समय को इंगित किया जा सकता है.
रथ के पहिए बताते हैं समय
कलिंग वास्तूशैली में बना कोणार्क सूर्य मंदिर को रथ आकार में बनाया गया है जिसमें 12 जोड़ी पहिए हैं, जो साल के 12 महीनों का प्रतीक हैं. और इस रथ को सात घोड़े खींच रहे हैं. ये सात घोड़े सात दिनों को दर्शाते हैं. वहीं, इन पहियों में से 4 पहिए इस तरह बनें हैं कि ये दिन में आपको समय बता सकते हैं.
पहिए में कुल 8 तीलियां हैं. हर एक तीली एक पहर (3 घंटे) का प्रतिनिधित्व करती है. आठ तीलियां 24 घंटे का प्रतिनिधित्व करती हैं. तीलियों पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं तो उनकी छाया को देखकर समय बताया जाता है. इसलिए इन पहियों को धूपघड़ी भी कहा जाता है.
देश के बाहर से आए थे पत्थर
इतिहासकार कहते हैं कि इस मंदिर को बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए पत्थरों को भारत के बाहर से लाया गया था. इससे पता चलता है कि भारत उस समय भी अन्य देशों के साथ व्यापार करता था. कोणार्क सूर्य मंदिर तीन प्रकार के पत्थरों अर्थात् क्लोराइट, लेटराइट और खोंडालाइट का उपयोग करके बनाया गया था.
संभवत: दूसरे देशों से पत्थर लाने के लिए समुद्री मार्ग का प्रयोग किया जाता था. पहले यह मंदिर बंगाल की खाड़ी के तट पर हुआ करता था, लेकिन समय के साथ समुद्र का पानी मंदिर से दूर हो गया.
12 साल में बना था मंदिर
बताया जाता है कि 1243-1255 ईस्वी से लेकर सात घोड़ों के साथ मंदिर और इसके अद्वितीय बारह जोड़े पहियों को बनाने में लगभग 12 साल लगे. और लगभग 1200 शिल्पकारों ने इस मंदिर का निर्माण किया.
मंदिर की दीवारों पर कमल के फूल, नीले समुद्री जीव, पक्षी और जानवर अंकित हैं, जिनमें से प्रत्येक एक या दूसरी कहानी कहता है. राजा नरसिंहदेव ने रचनात्मकता के साथ-साथ उनके जीवन के तरीके को दर्शाने वाली एक महान कृति देश को दी.
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