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उम्मीद की किरण: 9 साल के स्पेशल चाइल्ड ने मुंबई में रैंप वॉक किया, ऑटिस्टिक लोगों के लिए बने मिसाल

अहद एक स्पेशल चाइल्ड हैं, हमारे समाज में ऐसे बच्चों की स्वीकार्यता काफी कम है, भले ही सरकार की तरफ से इन बच्चों के लिए तमाम सुविधाओं का ऐलान हो लेकिन सच्चाई ये है कि इन्हें अपनी जंग खुद लड़नी पड़ती है.

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कौन कहता है कि आसमान में सुराख नहीं हो सकता. एक सिक्का तो तबीयत से उछालो यारों. इसी बात को चरितार्थ करती एक मां से आपको मिलवाते हैं, जिनकी मेहनत के बलबूते उनका ऑटिस्टिक बच्चा आज 9 साल की उम्र में मुम्बई में रैंप वॉक करता नजर आया. गुड न्यूज ये है कि तमाम दुश्वारियों के बावजूद बच्चे में इतना कॉन्फिडेंस आया कि वो दूसरे कई ऐसे बच्चों के लिए मिसाल कायम कर रहा है लेकिन ये तब्दीली कैसे आई, मां की ममता का जादू है या डॉक्टर की मेहनत ये सब जानते हैं उम्मीद जगाने वाली इस रिपोर्ट में. 

अपनी जंग खुद लड़नी पड़ती है
अहद एक स्पेशल चाइल्ड हैं, हमारे समाज में ऐसे बच्चों की स्वीकार्यता काफी कम है, भले ही सरकार की तरफ से इन बच्चों के लिए तमाम सुविधाओं का ऐलान हो लेकिन सच्चाई ये है कि इन्हें अपनी जंग खुद लड़नी पड़ती है. अहद के इस आत्मविश्वास के पीछे हैं उनकी मां शहनाज खान हैं, जिनकी मेहनत सदका वो आज दूसरों के लिए उम्मीद की किरण बने हैं.

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ऑटिस्टिक चाइल्ड हैं अहद
मां की दुआओं से पले बढ़े अहद एक ऑटिस्टिक चाइल्ड हैं लेकिन जब उनकी मां को इस बारे में पता चला तो उन्होंने हार मानने के बजाए इसी बात को कुबूलते हुए अपने बच्चे के लिए वो सब कुछ किया जिससे उसमें लगातार तबदीली आती चली गई. शहनाज झारखंड से हैं, उनके पति उड़ीसा में नौकरी करते हैं और वो अहद की परवरिश के लिए अकेली मुंबई में रहती हैं.

ऐसे बच्चों को अपने साथ लेकर चलें
अहद और उसके जैसे बच्चों के लिए उम्मीद की किरण डॉ आलोक भी हैं , जिनका मकसद ऑटिस्टिक बच्चों को समाज में एक खास मुकाम दिलाना है, ताकि समाज ऐसे बच्चों को अपने साथ लेकर चले. डॉक्टर बच्चों को गले लगाते हैं.. गेम्स खिलाते हैं.. क्योंकि उन्की जिंदगी का मकसद अब ये ही हैं.

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विश्व में हर 35वां बच्चा स्पेशल चाइल्ड
डॉ. आलोक कहते हैं, विश्व में हर 35वां बच्चा इस एक स्पेशल चाइल्ड है. ऑटिज्म का दायरा बहुत बड़ा है, जिसमें बच्चों में अटेंशन डेफिसिट, हाइपर एक्टिविटी, डिसआर्डर, डाउन सिंड्रोम, और मानसिक विकास संम्बधित जैसी दिक्कतें पैदा करता है लेकिन कहते हैं ना जहां चाह वहां राह...ऑटिस्टिक बच्चे भी दुनिया में अलग मुकाम हासिल कर सकते हैं. आइंस्टीन इसकी सबसे बड़ी मिसाल हैं.

भारत में भी ऑटिज्म से ग्रस्त मरीजों की संख्या बढ़ रही है. अगर समय रहते एक्शन ले लिया जाए तो हम अपने परिवार को सुरक्षित रख सकते हैं.
 

रिपोर्ट- धर्मेंद्र दुबे