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बनारसी पान और बनारसी लंगड़ा आम को मिला GI Tag, चंदौली के आदमचीनी चावल और रामनगर का भंटा को भी मिली पहचान

काशी ने एक बार फिर जीआई टैग के क्षेत्र में अपना परचम लहराया है. एक साथ इस क्षेत्र के चार नए प्रॉडक्ट शामिल हुए हैं. इसमें बनारसी पान, बनारसी लंगड़ा आम, रामनगर भंटा(बैंगन) और चंदौली का आदमचीनी चावल शामिल हैं.

Banarasi Langda and Paan Banarasi Langda and Paan

बॉलीवुड के गीत से लेकर बनारस की गलियों तक राज करने वाले बनारसी पान को GI टैग (geographical index Tag) मिल गया है. अपनी मिठास और रसीलेपन के लिए पान का सरताज बने बनारसी पान के सिर पर ये ताज सजा है. इसके अलावा बनारसी लंगड़ा आम को भी भौगोलिक पहचान से जोड़ते हुए जीआई टैग दिया गया है. ये उपलब्धि हासिल करने के बाद जहां इसके कारोबार से जुड़े लोगों में उत्साह है वहीं वाराणसी देश भर में GI टैग उत्पादों का सिरमौर भी बना हुआ है. 31 मार्च को इन उत्पादों को GI टैग मिला.

काशी का लहराया परचम

काशी ने एक बार फिर जीआई टैग के क्षेत्र में अपना परचम लहराया है. एक साथ इस क्षेत्र के चार नए प्रॉडक्ट शामिल हुए हैं. इसमें बनारसी पान, बनारसी लंगड़ा आम, रामनगर भंटा(बैंगन) और चंदौली का आदमचीनी चावल शामिल हैं. ये भी बड़ी उपलब्धि है कि एक साथ जीआई टैग हासिल करने वाले सभी चार उत्पाद किसानों से जुड़े हुए हैं. जीआई विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ रजनीकान्त लंबे समय से इसको लेकर काम कर रहे थे. उन्होंने बताया कि 'चारों उत्पाद कृषि और उद्यान से सम्बंधित हैं. नाबार्ड (NABARD) और उत्तर प्रदेश सरकार ने इसके लिए प्रक्रिया शुरू की थी. लंगड़ा आम भी काशी की विशिष्ट पहचान है. लंगड़ा आम इस बार अपनी विशिष्ट पहचान GI टैग के साथ बाज़ार में आएगा.' इसके अलावा यूपी के 7 अन्य ओडीओपी (odop) प्रॉडक्ट ने भी जीआई टैग हासिल किया है, जिसमें अलीगढ़ का ताला, हाथरस की हींग, नगीना का वुड कटिंग, मुजफ्फर नगर का गुड़, बखीरा ब्रासवेयर, बांदा का शजर पत्थर क्राफ्ट, प्रतापगढ़ आँवले को भी GI टैग प्राप्त हो गया है.

एक साथ GI टैग पाए बनारस के चारों उत्पाद कृषि और बाग़वानी से सम्बंधित हैं. नाबार्ड के एजीएम अनुज कुमार सिंह ने बताया कि ‘आगे आने वाले समय में इन उत्पादों के लिए वित्तीय संस्थाएं भी उत्पादन और मार्केटिंग में सहयोग करेंगी. बनारसी लंगड़ा आम के लिए जया सीड्ज़ कम्पनी लिमिटेड, रामनगर भंटा के लिए काशी विश्वनाथ फ़ार्म्स कम्पनी, आदमचीनी चावल के लिए ईशानी एग्रो प्रोड्यूसर कम्पनी लिमिटेड, चन्दौली के राज्य सरकार और नाबार्ड के सहयोग से आवेदन किया था. वहीं बनारस पान (पत्ता) के लिए  नमामि गंगे फामर्स प्रोड्यूसर कम्पनी लिमिटेड और उद्यान विभाग वाराणसी ने नाबार्ड और राज्य सरकार के सहयोग से आवेदन किया था. अनुज कुमार सिंह ने जानकारी दी कि ‘आने वाले समय में 1000 से ज़्यादा किसानों का जीआई औथराइज्ड पंजीकरण कराया जाएगा जिससे किसान जीआई टैग का प्रयोग कानूनी रूप से कर सकें. ऐसा करने से बाजार में इन उत्पादों की नकल को भी रोका जा सकेगा.’

डॉ रजनीकांत ने जानकारी दी कि बनारस और पूर्वांचल के GI उत्पादों के कारोबार में 20 लाख से ज़्यादा लोग शामिल हैं और लगभग 25,500 करोड़ का सालाना कारोबार इन उत्पादों का होता है. उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय कृषि और ग्रामीण विकास बैंक (nabard) के सहयोग से कोविड के समय में भी यूपी के 20 उत्पादों का जीआई के लिए आवेदन किया गया था जिसमें प्रक्रिया पूरी करके 11 जीआई टैग प्राप्त हो गए हैं. उन्होंने उम्मीद जतायी कि बनारसी ठंडई, बनारस का लाल पेड़ा, तिरंगी बर्फी, बनारस का लाल भरवाँ लाल मिर्च और चिरईगाँव के करौंदे का भी जीआई टैग के लिए आवेदन किया गया है.

यूपी सरकार की ‘एक ज़िला एक उत्पाद’ योजना से इन उत्पादों को मिला है लाभ 

इन चार उत्पादों के बाद अब काशी क्षेत्र में 22 जीआई टैग उत्पाद हो गए हैं. वहीं यूपी में 45 जीआई उत्पाद दर्ज़ हो चुके हैं. योगी सरकार के एक ज़िला एक उत्पाद (ODOP) के तहत क्षेत्र विशेष के ख़ास उत्पादों को बढ़ावा देने और उनको GI टैग दिलाने के लिए कोशिश की जा रहो है. वाराणसी और पूर्वांचल के अन्य जीआई उत्पादों में बनारस की ब्रोकेड और साड़ी, बनारस मेटल रिपोजी क्राफ्ट, काशी की गुलाबी मीनाकारी, वाराणसी वूडेन लेकरवेयर (खिलौने),बनारस ग्लास बीड्स,वाराणसी साफ्टस्टोन जाली वर्क, बनारस की जरदोज़ी, बनारस के हैण्ड ब्लॉक प्रिंट, बनारस वुड कारविंग, भदोही की हाथ से बुनी क़ालीन, मिर्ज़ापुर की दरी,मिर्जापुर के पीतल के बर्तन, मउ की साड़ी, चुनार की ब्लैक पॉटरी, ग़ाजीपुर की वॉल हैंगिंग, चुनार के बलुआ पत्थर, चुनार ग्लेज़ पॉटरी, गोरखपुर के टेराकोटा क्राफ्ट पहले से ही शामिल हैं.