scorecardresearch

सोने-चांदी में जड़ने के बाद बांदा का ये पत्थर बन जाता है बेशकीमती, इन पत्थरों से बन रहा अयोध्या जैसा भव्य राम मंदिर

बांदा के हस्तशिल्पी द्वारका प्रसाद सोनी शजर पत्थरों से अयोध्या जैसा भव्य राम मंदिर बना रहे है. कहा जाता है कि ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में ब्रिटेन की महारानी क्वीन विक्टोरिया को यह पत्थर इतना पसंद आया था कि वह इसे अपने साथ ब्रिटेन ले गई थी. इस पत्थरों को सोने चांदी में जड़ने के बाद कीमत और भी बढ़ जाती है.

Handicraftsmen Dwarka Prasad Soni Handicraftsmen Dwarka Prasad Soni
हाइलाइट्स
  • शज़र पत्थर जिसपर कुदरत खुद करती है चित्रकारी

  • हस्तशिल्पी द्वारका प्रसाद सोनी अयोध्या की तर्ज पर बना रहे राम मंदिर

बुंदेलखंड के बांदा जिले की केन नदी उत्तर प्रदेश की इकलौती और देश की दूसरी नदी है जो पत्थरों में रंगीन चित्रकारी करती है. इस नदी में मिलने वाले दुर्लभ पत्थर बेहद खूबसूरत होते हैं जो अपने भीतर दिखने वाली खूबसूरती के लिए मशहूर हैं. इन पत्थरों को 'शजर'  कहा जाता है. जानकार कहते हैं कि कोई भी दो शजर पत्थर एक जैसे नहीं होते, मतलब हर एक पत्थर में अलग-अलग चित्रकारी. दुनिया भर में शजर पत्थर सिर्फ भारत की दो नदियों केन और नर्मदा में ही पाये जाते हैं. इन दिनों यूपी सरकार के वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट के तहत यह खरीदे और बेचे जा रहे हैं.

कैसे बनते हैं यह पत्थर
ये पत्थर देखने में जितने ही अच्छे लगते हैं उनसे कहीं ज्यादा कठिन इनको बेचने योग्य बनाना होता है. इसमें कठिन परिश्रम लगता है. राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हस्तशिल्पी द्वारका प्रसाद सोनी बताते हैं की जब शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में शजर पत्थरों पर पड़ती हैं तो इन पर आकृतियां उभरती हैं. उनका कहना है कि चांदनी की किरण जब पत्थर पर पड़ती हैं तो उनके बीच में जो भी आकृति आती है. वह इन पत्थरों पर उभर आती है. वहीं, वैज्ञानिकों का मानना है कि शजर पत्थर पर उभरने वाली आकृति फंगस ग्रोथ है.

केन नदीं से निकाला जाता है शजर पत्थर
सबसे पहले इन पत्थरों को केन नदी से निकला जाता है. उसके बाद इसे तराशने का काम शुरू होता है. रॉ मटेरियल में जो वेस्ट होता है उसे हटा दिया जाता है और जो काम के लायक होता है उसे आगे दुकानों तक ले जाया जाता है. जहां इसे मशीनों से तराशा जाता है. मशीन से तराशने के बाद शजर पत्थर में झाडियां, पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, मानव और नदी की जलधारा के चमकदार रंगीन चित्र उभरते हैं. कई पत्थरों में धार्मिक चित्र जैसे गणेश, अल्लाह लिखा हुआ भी देखें गए है. जो अच्छी कीमत पर बिकते हैं.

अंगूठी में नग के तौर पर भी पहनते हैं लोग
राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हस्तशिल्पी द्वारका प्रसाद सोनी ने बताया कि शजर पत्थरों का इस्तेमाल आभूषणों, कलाकृति जैसे ताजमहल, सजावटी सामान व अन्य वस्तुएं जैसे वाल हैंगिंग में लगाने के काम में प्रयोग होता है. मुगलकाल में शजर पत्थरों के इस्तेमाल से बेजोड़ कलाकृतियां बनाई गईं. बांदा और लखनऊ में शजर पत्थर से बने आभूषणों का बड़ा कारोबार होता है. शौकीन लोग इसे अंगूठी में नग के तौर पर भी जड़वाते हैं. शजर पत्थर की पहले कटाई और घिसाई होती हैं. जिसके बाद इसे मनचाहे आकर में ढाला जाता है. सोने चांदी में जड़ने के बाद शजर की कीमत और बढ़ जाती है.

बांदा में शजर पत्थर का बन रहा भव्य राम मंदिर
राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हस्तशिल्पी द्वारका प्रसाद सोनी द्वारा बांदा में इसी पत्थर का भव्य राम मंदिर बनता जा रहा है. वह बताते हैं कि हम चाहते हैं अयोध्या में मंदिर बनने से पहले वह इस पत्थर का राम मंदिर बना दें. इसका डिजाइन हुबहु राम मंदिर का दिया गया है. वह इससे पहले इसी पत्थर का ताज महल बनाकर तैयार कर चुके हैं.

शजर पत्थर को ब्रिटेन ले गई थीं महारानी विक्टोरिया
ईस्ट इंडिया कंपनी के शासनकाल में ब्रिटेन की महारानी क्वीन विक्टोरिया के लिए दिल्ली दरबार में नुमाइश लगाई गई थी. इसमें रानी विक्टोरिया को शजर पत्थर इतना पंसद आया था कि वह इसे अपने साथ ब्रिटेन भी ले गई थीं.