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Inspiring Story: गरीब और जरूरतमंद बच्चों के लिए इस गृहिणी ने शुरू किया 'Diya Ghar' ताकि मिल सके शिक्षा और सुरक्षा

बंगलुरु की रहने वाली सरस्वती पद्मनाभन ने साल 2016 में कंस्ट्रक्शन के काम लगे मजदूरों के बच्चों को सामान्य बचपन देने के उद्देश्य से Diya Ghar की शुरुआत की थी. आज उनका काम लगातार बढ़ रहा है.

Diya Ghar helping needy kids Diya Ghar helping needy kids

Diya Ghar Story: बड़े शहरों में जगह-जगह आपको कंस्ट्रक्शन काम होता दिखता है. विडंबना यह है कि इन बड़ी-बड़ी इमारतों का निर्माण करने वाले मजदूर बहुत छोटे और गरीब होते हैं. बहुतों के पास तो ऐसा कोई ठिकाना भी नहीं होता है जहां वे अपने बीवी-बच्चों को सुरक्षित छोड़कर काम पर आ सकें. आलम यह होता है कि पति और पत्नी दोनों बिल्डिंग निर्माण में मजदूरी करते हैं और उनके छोटे-छोटे बच्चे उसी निर्माणस्थल पर उनके साथ होते हैं. 

कई बार इस तरह की जगहों पर बच्चों के साथ दुर्घटना होते देर नहीं लगती है. लेकिन फिर भी ये लोग अपने बच्चों को इन असुरक्षित जगहों पर लाने के लिए मजबूर होते हैं. इस परेशानी को समझते हुए ही बंगलुरु की एक गृहिणी ने कुछ ऐसी पहल की कि आज 1200 से ज्यादा दिहाड़ी-मजदूरों के बच्चे सुरक्षित वातावरण में पल और बढ़ रहे हैं. 

इस तरह मिली प्रेरणा 
यह कहानी है 47 साल की सरस्वती पद्मनाभन की जो एक गृहिणी हैं लेकिन उन्होंने अपने काम से खुद अपनी पहचान बनाई है. दरअसल, साल 2016 में उन्होंने एक निर्माणधीन स्थल पर देखा कि दो छोटे-छोटे बच्चे बिल्डिंग की पहली मंजिल के किनारे पर खेल रहे थे, उनकी निगरानी के लिए कोई बड़ा भी नहीं था. यह देखकर सरस्वती को बहुत बुरा लगा और उन्होंने सोचा कि आखिर क्यों ये बच्चे ऐसे असुरक्षित माहौल में पलने-बढ़ने को मजबूर हैं?

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लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह था कि जब बाकी सभी बच्चे स्कूल में हैं तो ये दोनों बच्चे स्कूल में क्यों नहीं हैं? उनका यह सवाल उनके खुद के लिए प्रेरणा बना और उन्होंने ऐसे वंचित बच्चों के लिए 'दीया घर' की शुरुआत की जिसके बैनर तले इन बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जाती है. आज वह दीया घर के 21 शिक्षण केंद्र स्थापित कर चुकी हैं. इन केंद्रों से एक से छह वर्ष की आयु के लगभग 1,250 बच्चों को मदद मिली है.  

सरस्वती और उनकी पहल, दीया घर को हाल ही में अखिल भारतीय सहयोगी परोपकार संगठन, सोशल वेंचर पार्टनर्स (एसवीपी इंडिया) के बेंगलुरु चैप्टर द्वारा आयोजित इंस्पायरएक्स में काफी सराहना मिली. सरस्वती का कहना है कि उनकी कोशिश इन बच्चों को दूसरे बच्चों की तरह एक सामान्य बचपन देना है.