बेंगलुरू को अक्सर कार्टूनिंग की राजधानी कहा जाता है. शहर में लगभग 400 कार्टूनिस्ट हैं. उनमें से कई देश के बड़े अखबारों और दूसरे प्रकाशनों के लिए काम करते हैं. डेक्कन हेराल्ड के कार्टूनिस्ट, गुज्जरप्पा ने पीटीआई से कहा कि कार्टून के लिए बहुत गुंजाइश है. लोग उदाहरण के लिए कॉमिक्स में जा सकते हैं, वे ग्राफिक उपन्यासों में जा सकते हैं. कार्टूनिस्टों के लिए कई मौके हैं, जो पहले नहीं थे. यही इसकी खूबसूरती है.
गार्डन सिटी में कार्टूनिस्टों की संख्या भले ही बहुत ज्यादा लग रही हो, लेकिन पुराने लोगों का कहना है कि डिजिटल कार्टूनिंग टूल बढ़ने से ये कला सिमटती जा रही है. इसलिए कर्नाटक कार्टूनिस्ट एसोसिएशन बेंगलुरू में कार्टून कला को बरकरार रखने की कोशिश कर रही है.
डिजिटल कार्टून का बढ़ा चलन
सेवानिवृत्त प्रोफेसर और 'कार्टूनों का इतिहास' पत्रिका के लेखक, बालकृष्ण ने कहा कि कार्टूनिंग की तकनीक भी बहुत बदल गई है. पहले वे पेन, पेंसिल से तस्वीरें बनाते थे. अब ज्यादातर कार्टूनिस्ट आईपैड और दूसरे टूल का इस्तेमाल कर डिजिटल कार्टून बनाने में बहुत कुशल हैं.
शहर में 'इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ कार्टूनिस्ट' भी है. यहां नवोदित कार्टूनिस्ट अपने काम की नुमाइश लगाते हैं. एक चार्टर्ड एकाउंटेंट और कार्टूनिस्ट, विनायक पाई का कहना है, "किसी भी क्षेत्र की तरह अगर आप कार्टून बनाने या प्रसारित करने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं, तो आप पीछे रह जाएंगे.
अनुभवी कार्टूनिस्ट अक्सर युवाओं को बढ़ावा देने के लिए उनसे मिलते हैं. कुछ लोगों का मानना है कि टेक्नोलॉजी कला में घुसपैठ कर रही है. दूसरों की दलील है कि टेक्नोलॉजी कार्टूनों को तेजी से लोगों तक पहुंचाती है. इसका स्वागत होना चाहिए.