भावेश भाटिया की सफलता की कहानी एक प्रेरणा, जुनून और दृढ़ता की निशानी है. एक छोटे शहर में जन्मे भावेश को छोटी उम्र से ही टेक्नोलॉजी और इंटरप्रेन्योरशिप में गहरी रुचि थी. अपनी क्षमताओं में दृढ़ विश्वास के साथ, वह एक ऐसी यात्रा पर निकले जो अंततः उन्हें उल्लेखनीय उपलब्धियों तक ले गई.
भावेश भाटिया को 23 साल की उम्र में एक चुनौती का सामना करना पड़ा जब एक आंतरिक आंख से संबंधित समस्या के कारण उन्होंने अपनी दृष्टि खो दी. इस असफलता के बावजूद, उन्होंने अपनी मां के कैंसर के इलाज में सहायता करने की ठानी और एक होटल प्रबंधक के रूप में काम किया. दुख की बात है कि उन्हें अपने स्कूल के दिनों में कई तानों का सामना करना पड़ा और लोग उन्हें 'ब्लाइंड बॉय' जैसे नामों से बुलाते थे.
नौकरी से निकाल दिया था
भावेश एक होटल में टेलीफोन ऑपरेटर के रूप में काम करते थे लेकिन अपनी आंखों की रोशनी खोने के बाद उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया था. चूंकि वह एक गरीब परिवार से थे, इसलिए उनके पास गुजारा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. साल 1999 में, भावेश ने मुंबई में नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड में प्रशिक्षण के लिए नामांकन करके एक परिवर्तनकारी कदम उठाया. वहां उन्होंने सादी मोमबत्तियां बनाने की कला सीखी. हर रात, वह लगन से मोमबत्तियां बनाते थे, जिन्हें वे महाबलेश्वर के एक स्थानीय बाजार में जाकर बेचते थे. प्रति दिन 50 रुपये के हिसाब से गाड़ी किराए पर लेकर उन्होंने अगले दिन के प्रोडक्शन के लिए कच्चा माल खरीदने के लिए सावधानीपूर्वक प्रतिदिन 25 रुपये बचाए. उन्होंने ठेले पर मोमबत्तियां बेचना शुरू किया और बाद में अंधे लोगों के लिए एक विशेष योजना के तहत 15,000 रुपये का कर्ज लिया.
दूसरों को दे रहे रोजगार
इसके साथ, उन्होंने सनराइज़ कैंडल्स नाम से खुद का बिजनेस शुरू किया, जहां वे न केवल मोमबत्तियां बेचते हैं बल्कि दृष्टिबाधित लोगों की भर्ती करते हैं और उन्हें ट्रेनिंग भी देते हैं. एक छोटे व्यवसाय के रूप में शुरू हुआ बिजनेस अब एक बड़े बिजनेस में बदल गया है जो 9,500 से अधिक दृष्टिबाधित लोगों को रोजगार प्रदान करता है. सनराइज कैंडल्स (Sunrise Candles) की 14 राज्यों में लगभग 71 मैनुफैक्चरिंग यूनिट्स हैं और यह दुनिया भर के लगभग 67 देशों में अपनी मोमबत्तियां निर्यात करता है.
मिल चुके हैं कई पदक
भावेश सिर्फ एक व्यवसायी नहीं हैं, बल्कि एक खिलाड़ी भी हैं, जिन्हें भारत के राष्ट्रपति से तीन राष्ट्रीय पुरस्कार और 100 से अधिक पैरालंपिक खेल पदक मिल चुके हैं. 350 करोड़ रुपये से अधिक के वार्षिक कारोबार के साथ, भावेश भाटिया के दृढ़ संकल्प और समर्पण ने न केवल उनके जीवन को बदल दिया है, बल्कि दृष्टिबाधित समुदाय के अनगिनत अन्य लोगों के जीवन पर भी सकारात्मक प्रभाव डाला है. उनकी कहानी आशा और प्रेरणा की किरण के रूप में खड़ी है, यह साबित करती है कि दृढ़ता और लचीलापन जीवन में हमारे सामने आने वाली सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों को भी दूर कर सकता है.