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Home guard saving stray animals: बेसहारा जानवरों की भूख-प्यास मिटा रहा है यह होम-गार्ड, हर महीने अपने पैसों से खरीदते हैं चारा

बिहार में औरंगाबाद जिले में एक होम गार्ड इंसानियत की मिसाल पेश कर रहा है. दरअसल, यह होम गार्ड बेसहारा जानवरों, पक्षियों को भूख और प्यास से बचा रहा है.

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कई बार जीवन की घटनाएं लोगों को अपने परिवेश और वातावरण के प्रति जिम्मेदार और जागरूक बना देती है. बेसहारा जानवरों और पक्षियों की परवाह करने वाले जय राम पाठक की भी कुछ ऐसी ही कहानी है. बिहार के औरंगाबाद जिले में एक होम गार्ड, जय राम पाठक के जीवन की एक घटना के बाद उनका मन बेसहारा जानवरों के प्रति गहरी करुणा से भर गया.

पाठक ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “यह सब लगभग चार साल पहले शुरू हुआ जब मैं अपने घर के आंगन में बैठा था. मुझे एक गाय बुरी अवस्था में मिली. वह काफी प्यासी थी और लगभग गिरने की कगार पर थी." पाठक ने कहा कि उन्होंने सबसे पहले जानवर को पानी से भरा जग दिया, लेकिन यह पर्याप्त नहीं था. गाय इतनी प्यासी थी कि उसने दो बाल्टी पानी पी लिया. इस दृश्य ने उन्हें पूरी तरह प्रभावित कर दिया और उन्होंने आवारा जानवरों और पक्षियों को चारा और अन्य खाद्य पदार्थ और पानी देने का फैसला किया. 

हर दिन जानवरों को देते हैं पानी और चारा
तब से यह पाठक के लिए एक नियमित काम बन गया है. अब लगभग 10-15 जानवर, जिनमें बेसहारा गायें, बछड़े, बकरियां और कुत्ते शामिल हैं, उनके घर में दिन में तीन बार आते हैं क्योंकि वह उन्हें हर दिन चारा खिलाते हैं. बेसहारा जानवरों और पक्षियों को हर मौसम में चारे और पानी के लिए परेशानी का सामना करना पड़ता है. उनकी समस्या गर्मियों के दौरान और बढ़ जाती है जब तालाब और अन्य जल संसाधन सूख जाते हैं. 

पाठक इन बेसहारा जानवरों को खिलाने के लिए हर महीने अपने पैसे से लगभग 4-5 क्विंटल चारा खरीदते हैं. पाठक ने कहा, "जानवर और पक्षी खुद को बोलकर व्यक्त नहीं कर सकते हैं, इसलिए हमें उनकी समस्याओं और भावनाओं को समझना होगा और उसके अनुसार कार्य करना होगा." 

पक्षियों के लिए बनाए घोंसले
पक्षी भी भोजन और पानी के लिए आम तौर पर दिन में एक बार उनके घर आते हैं. उन्होंने पक्षियों के लिए अस्थायी घोंसले बनाए हैं. ज्यादातर बेसहारा जानवरों और पक्षियों के लिए पानी की कमी एक बड़ी समस्या है. गर्मी के दिनों में जलस्तर कम होने पर समस्या और बढ़ जाती है. पाठक ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा, "चूंकि राज्य इन दिनों भीषण गर्मी की चपेट में है, इसलिए आवारा जानवर और पक्षी सड़क के किनारे बेहोश होकर गिर रहे हैं."

शहरी इलाकों में स्थिति अधिक गंभीर है. पहले कस्बों और शहरों में भी तालाब और नाले हुआ करते थे. लेकिन बढ़ते शहरीकरण के साथ तालाब और नालियां गलियों और सड़कों में तब्दील हो गई हैं. पाठक ने कहा कि सरकार की ओर से बेसहारा पशुओं के लिए पीने के पानी और चारे की कोई व्यवस्था नहीं है. पाठक ने कहा कि शहरी कस्बों में गरीबों के लिए रैन बसेरे हैं और उसी तरह बेसहारा जानवरों के लिए भी जगह होनी चाहिए.