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Handmade Organic Soap Business: बकरी के दूध, नीम और हल्दी जैसी चीजों से बना रहीं स्वदेशी साबुन, 200 महिलाओं को मिला रोजगार

आदिवासी महिलाओं को रोजगार से जोड़ने के लिए कई तरह की पहलें की जा रही हैं. बिहार के बगहा में आदिवासी महिलाओं ने बकरी के दूध और ग्लिसरीन से ऑर्गनिक साबुन बना रही हैं.

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बिहार के बगहा में आदिवासी महिलाएं लघु उद्योग लगाकर रोजगार सृजन कर रहीं हैं. दरअसल, वाल्मीकि टाइगर रिजर्व क्षेत्र से लगे जंगल के निर्भरता को खत्म करने के लिए रोजगार सृजन किया जा रहा है. इसी के क्रम में तकरीबन 200 आदिवासी महिलाएं साबुन बनाने के रोजगार से जुड़ी हैं. बकरी के दूध और ग्लीसरीन में घरेलू सामग्री और अपने आसपास के वनस्पतियों का उपयोग कर महिलाएं साबुन बना रहीं हैं. जिसका उपयोग करने से लोगों की स्किन को कोई नुकसान नहीं होगा. इसके लिए  महिलाएं दिन-रात मेहनत कर रहीं हैं. 

200 आदिवासी महिलाओं को रोजगार 
यहां पर महिलाओं के समूह का नेतृत्व कर रहीं सुमन देवी बताती हैं कि साबुन बनाने के कार्य में उनके साथ 200 आदिवासी महिलाएं जुड़ी हैं और ईको फ्रेंडली साबुन बना रहीं हैं. जिससे न तो पर्यावरण को नुकसान पहुंचेगा और न हीं इसका उपयोग करने वाले लोगों के शरीर पर कोई बुरा असर डालेगा.

साबुन बनाने के लिए नीम, मसूर, एलोवेरा, कोयला, हल्दी-चन्दन जैसी सामग्रियों का उपयोग महिलाएं करती हैं. इस पहल का उद्देश्य ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को रोजगार देना है. फिलहाल, वे साबुन की मार्केटिंग पर ध्यान दे रही हैं, क्योंकि महिलाओं ने बताया कि साबुन बनाने के बाद उसकी ब्रांडिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग सही ढंग से नहीं होने के कारण बिक्री प्रभावित हो रही है. 

सरकार से मदद की उम्मीद
अब ये महिलाएं सरकार से मदद की आस लगाए बैठी हैं. साबुन बनाने के काम से जुड़ी सुनीता देवी बताती हैं कि वे लोग साबुन बना तो रहे हैं लेकिन उसकी पैकेजिंग और मार्केटिंग सही से नहीं हो पा रही है. सरकार या प्रशासन अगर आर्थिक या किसी भी तरह से मदद पहुंचाता तो उनके उत्पाद को भी बाजार में जगह मिल सकती है और बड़े पैमाने पर इस रोजगार को बढ़ावा मिलता. संगीता देवी बतातीं हैं कि आसपास के गांव के जिन लोगों ने साबुन का उपयोग किया है वे दोबारा साबुन लेने जरूर आ रहे हैं. 

नए ग्राहकों के बीच इसका प्रचार-प्रसार नहीं हो पा रहा है. सरकार इसके पैकेजिंग और मार्केटिंग या ब्रांडिंग में सहायता करती तो रोजगार का बड़े पैमाने पर सृजन होता.

(अभिषेक पांडे की रिपोर्ट)