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Janki Bai Ilahabadi: जानिए कौन थीं जानकी बाई इलाहाबादी जिन्हें कहते थे छप्पन छुरी, इन पर लिखी किताब को मिला साहित्य अकादमी अवार्ड

इलाहाबाद की जानकी बाई सबसे प्रमुख हिंदुस्तानी वोकलिस्ट और ग्रामोफोन पर रिकॉर्ड करने वाली सबसे लोकप्रिय गायिकाओं में से एक थीं. वह एक प्रतिभाशाली कवयित्री भी थीं और उन्होंने 'दीवान-ए-जानकी' नामक उर्दू कविताओं की एक पुस्तक भी लिखी थी.

Book on Hindustani Vocalist Janki Bai Book on Hindustani Vocalist Janki Bai
हाइलाइट्स
  • जानकी बाई को छप्पन छुरी कहा जाता था

  • किताब को मिला साहित्य अकादमी अवार्ड

लेखिका नीलम सरन गौर को साल 2023 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया. उन्हें यह अवॉर्ड अंग्रेजी केटेगरी में उनकी किताब, Requiem in Raga Janki के लिए मिला. उत्तर भारत की मशहूर तवायफ-गायिका जानकी बाई इलाहबादी उर्फ ​​छप्पन छुरी (56 कट्स वाली महिला) की वास्तविक जीवन की कहानी से प्रेरित होकर, नीलम सरन गौर ने यह कहानी गढ़ी. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में साहित्य की प्रोफेसर नीलम सरन गौर ने 30 साल पहले कोलकाता की आईटीसी संगीत रिसर्च अकादमी का दौरा किया था, जहां से उन्हें जानकी बाई इलाहबादी नाम मिला. गौर इस हिंदुस्तानी गायिका के बारे में ज्यादा नहीं जानती थीं जो एक सदी पहले उन्हीं के शहर में रहते थी और 1936 में उनकी मृत्यु हो गई थी. 

कैसे आया लेखन का विचार 
गौर ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि साल 2008 में एक किताब के लिए इलाहाबाद की विरासत पर शोध करते समय यह नाम फिर से सामने आया. उन्हें जानकी बाई की एक संक्षिप्त जीवनी मिली और वह इस आइकन के पीछे मौजूद व्यक्तित्व से प्रभावित हो गईं. गौर कहती हैं, ''मुझे यह भी आश्चर्य हुआ कि उनके बारे में इतना कुछ क्यों नहीं लिखा गया और वह इलाहाबाद में भी इतनी प्रसिद्ध क्यों नहीं थीं.'' गौर को कुछ रिकॉर्ड कलेक्टर्स के पास उनके कुछ रिकॉर्ड मिले और उन्हें पता चला कि जानकी का ज्यादातर म्यूजिक खो गया.

जानकी अपने समय में, इलाहाबाद के अमिताभ बच्चन जितनी बड़ी स्टार थीं. गौर संगीत में प्रशिक्षित नहीं हैं, लेकिन अपने संगीतकार पिता से बहुत कुछ सुनकर बड़ी हुईं और उन्होंने हमेशा इसी पर और इलाहबाद पर आधारित कहानियां लिखी हैं. उनकी अन्य पुस्तकों में ग्रे पिजन एंड अदर स्टोरीज, सिकंदर चौक पार्क, सॉन्ग विदाउट एंड अदर स्टोरीज शामिल हैं.

कौन थीं जानकी बाई 
1880 में वाराणसी में जन्मी जानकी बाई और उनकी मां मानकी को उनके पहलवान पिता ने छोड़ दिया था. मानकी और जानकी को एक कोठे के मालिक को बेच दिया गया और वे दोनों इलाहाबाद आ गईं. मालिक की मृत्यु के बाद मानकी ने कोठे का कामकाज संभालना शुरू किया और अपनी बेटी को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित करने का फैसला किया. लखनऊ के हस्सू खान से जामकी ने शिक्षा ली. जानकी बड़ी होकर एक लोकप्रिय तवायफ हुईं और कलकत्ता की गौहर जान से उनकी घनिष्ठ मित्रता हो गई. साल 1911 में जब किंग जॉर्ज पंचम ने इलाहाबाद का दौरा किया था, तब अतरसुइया थाने में दोनों ने एक साथ गाना गाया. 

कहानी के अनुसार, वह उनके प्रदर्शन से मंत्रमुग्ध हो गया और दोनों को 100 गिन्नियां दीं. उन्होंने अपने करियर में 22 शेलैक डिस्क रिकॉर्ड कीं. लेकिन उनका नाम फेमस न हो सका. जानकी बाई की खोज ने गौर को इलाहाबाद के आदर्श नगर में कालाडांडा कब्रिस्तान में एक ढहते स्मारक तक भी पहुंचाया, जिसे छप्पन छुरी की मजार कहा जाता है. 

कैसे पड़ा छप्पन छुरी नाम 
जानकी बाई को छप्पन छुरी कहा जाता था. जानकी बाई को यह नाम तब मिला, जब उन पर एक पुलिस कांस्टेबल रघुनंदन ने हमला किया था. जानकी बाई 12 साल की थी और उन्होंने उस कॉन्सटेबल से यौन संबंध बनाने से मना कर दिया था. इस बात से गुस्सा उस कॉन्सटेबल ने जानकी के चेहरे पर चाकू से 56 वार किए. जानकी बाई अक्सर पर्दे के पीछे से गाती थीं. वह सिर्फ सभी अपना चेहरा दिखाती थीं जब लोगों को उनकी आवाज़ से प्यार हो जाता था. लेकिन विडंबना की बात यह है कि एक जमाने में जिसकी आवाज पर मीलों दूर से लोग इलाहाबाद खिंचे चले आते थे, आज उस जानकी बाई को इलाबाद में ज्यादा लोग नहीं जानते हैं. 

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