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Women's day 2023: नौकरी की बजाय चुना कृषि क्षेत्र, भावना आज बन गई हैं हजारों किसानों की प्रेरणा  

Women's day 2023: नासिक जिले के मालेगांव तालुका के दाभाड़ी गाव की भावना आज हजारों किसानों की प्रेरणा बन चुकी हैं. भावना ने नौकरी की बजाय कृषि क्षेत्र चुना.

भावना आज बन गई हैं हजारों किसानों की प्रेरणा भावना आज बन गई हैं हजारों किसानों की प्रेरणा
हाइलाइट्स
  • कृषि के प्रति समर्पण से मिली सफलता

  • नौकरी की बजाय चुना कृषि क्षेत्र 

ज्यादातर लोग अब कृषि के बजाय नौकरी और व्यवसाय को अधिक तरजीह दे रहे हैं. लेकिन जब एक महिला समय के अनुरूप आधुनिक खेती करती है तो वह एक मिसाल कायम करती है. नासिक जिले के मालेगांव तालुका के दाभाड़ी गाव की एक प्रायोगिक महिला किसान ने भी उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद नोकरी के बजाय खेती को प्राथमिकता दी है/ दाभाड़ी गाव की निवासी भावना निकम उच्च शिक्षित और प्रगतिशील किसान हैं.

नौकरी की बजाय चुना कृषि क्षेत्र 

भावना ताई ने कला में स्नातक करने के बाद नौकरी की तलाश के बजाय कृषि क्षेत्र को चुना. उन्होंने खेती की कई उन्नत तकनीकों को अपनाया है. उन्होंने दाभाडी गांव में 2000 वर्ग फीट में पॉलीहाउस बनाया है. इसमें वह शिमला मिर्च, टमाटर जैसी कई तरह की सब्जियों की खेती करती हैं. साथ ही शेडनेट हाउस कई उन्नत कृषि तकनीकों और खेती के उपकरणों का उपयोग करता है जिसमें मल्चिंग, ग्रेडिंग, पैकिंग, ट्रैक्टर, रोटावेटर शामिल हैं. इससे उन्हें कृषि व्यवसाय से अपेक्षित उत्पादन प्राप्त हो रहा है.

खेत जैव विविधता मॉडल का केंद्र बन गया

भावना निकम का खेत जैव विविधता मॉडल का केंद्र बन गया है. सब्जियों और अन्य फसलों की नई और दुर्लभ किस्मों की खेती इनकी विशेषता है. कई किसान उन्नत बीज और पौधे प्राप्त करने के लिए उनके खेतों में आते हैं. वह जल संरक्षण पर भी काम कर रही हैं. पानी की उपलब्धता बनाए रखने के लिए उन्होंने अपने खेत में वर्षा जल संचयन प्रणाली तकनीक को अपनाया है. साथ ही खेत भी स्थापित कर लिए हैं. इन तालाबों में वे मछली पालन के साथ-साथ मुर्गी पालन भी करते हैं. यानी मुर्गियों को फार्म पर एक विशेष ढांचे में पाला जाता है.

कृषि के प्रति समर्पण से मिली सफलता

भावना का सफर आसान नहीं था, शादी से पहले उन्हे काला क्षेत्र से डीग्री के लिए गांव में या नजदीक कॉलेज ही नहीं था, तो उन्होने 40 किलोकितर दूर सटाना इस तालुका क्षेत्र के कॉलेज मे बाहारी छात्रा करके डीग्री हासिल की.  कयोंकि गाव से आना जाना और पूरा वक्त कॉलेज के लिए देना असंभव था. शादी के बाद उन्होने देखा की ससुर जी सरकारी नौकरी करते है, पति बीएससी है और सास पारंपरिक तरीके से खेती करती हैं, लेकिन सास अब बुढ़ापे की वजह से काम नहीं कर पा रही थीं. अचानक ससुर जी के देहांत के बाद पति ससुर जी की जगह सरकारी नौकरी करने लगे, लेकिन पति नीलकंठ को नौकरी रास नहीं आई. आखिरकार उन्होंने पत्नी भावना से बात कर के खेती नसीब आजमाने की बात रखी. भावना ने पति से कहा था, “अगर पिता किसान है तो पति किसान क्यों नहीं हो सकते.”

पति के साथ मिलकर की खेती शुरू 

भावना ने पति के साथ मिलकर खेती मे काम शुरू किया, लेकिन यह आसान नहीं था. खेती तो थी लेकिन पानी नहीं था. फरवरी में कुए का पानी खत्म हो जाता है. पारंपरिक तरीके से खेती करते समय काफी मेहनत करनी पड़ती थी. उन्हें दो बार मातृत्व के सुख से भी वंचित रहना पड़ा. कमजोरी की वजह से उन्हें बीमारियों का सामना करना पड़ा, लेकिन इन तमाम मुश्किलों के बावजूद उन्होंने खुद को कृषि के लिए समर्पित कर दिया और काली मां की निःस्वार्थ भाव से सेवा की. पारंपरिक तरीकों से आधुनिक तरीकों की ओर बढ़ते हुए, कृषि पर ध्यान केंद्रित किया गया. पती ने उन्हें अलग अलग कृषि सम्मेलन में भेजा. भावना का आधुनिक और तंत्रद्न्यान पर आधारित खेती के तरफ सफर शुरू हुआ.

भावना कहती हैं कि हमने बिना किसी अपेक्षा के समर्पित भाव से खेत में काम किया. हम अपने पति और परिवार के सहयोग के कारण ही यह सफलता हासिल कर पाएं हैं. शादी के दसवें दिन उसे खेत पर जाकर मेहनत करनी थी तो उसकी आंखों में आंसू थे. लेकिन आज वह सफल है, अब उन्होंने 15 महिलाओं को लेकर सिर्फ महिला वर्ग की फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी बनाई है, उसका अभी काम चल रहा है. आजकल ग्रेजुएट लड़कियां किसानों से शादी नहीं करती, लेकिन पिता को किसान पति नहीं चाहिए, इसलिए मैं कृषि से जुड़ गई.

(प्रवीण ठाकरे की रिपोर्ट)