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लड़के के लिए वधु नहीं ढूंढ पाई मैट्रिमोनी तो अदालत ने लगाया 60,000 का जुर्माना, जानिए क्या है पूरा मामला

शादियां करवाने के लिए मैट्रिमोनी भारत में एक प्रचलित माध्यम है. कई लोगों को इसके जरिए अपना जीवनसाथी मिल जाता है. बेंगलुरु के विजय कुमार को भी अपने बेटे के लिए ऐसी ही उम्मीद थी लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

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बेंगलुरु की एक कंज्यूमर कोर्ट ने एक व्यक्ति के लिए योग्य दुल्हन नहीं ढूंढ पाने पर मैट्रिमोनी पोर्टल पर 60,000 रुपये का जुर्माना लगाया है. दरअसल बेंगलुरु के एम एस नगर के निवासी विजय कुमार के एस अपने बेटे बालाजी के लिए दुल्हन की तलाश कर रहे थे. यह तलाश उन्हें एक मैट्रिमोनी तक ले गई. हालांकि यहां से उन्हें दुल्हन नहीं, सिर्फ सिरदर्द मिला. 

जब दुल्हन के लिए दिलमिल मैट्रिमोनी गए विजय
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, जब विजय अपने बेटे के लिए दुल्हन ढूंढ रहे थे तब उनकी नजर कल्याण नगर के दिलमिल मैट्रिमोनी पोर्टल पर पड़ी. विजय कुमार ने 17 मार्च को अपने बेटे के जरूरी दस्तावेजों और तस्वीरों के साथ दिलमिल मैट्रिमोनी से संपर्क किया. दिलमिल मैट्रिमोनी ने उनसे संभावित दुल्हन ढूंढने के लिए 30,000 रुपये शुल्क के तौर पर देने को कहा. 

विजय ने उसी दिन इस रकम का भुगतान कर दिया. दिलमिल मैट्रिमोनी ने मौखिक रूप से उन्हें 45 दिनों के अंदर बालाजी के लिए संभावित दुल्हन ढूंढने का आश्वासन भी दिया. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. दिलमिल मैट्रिमोनी बालाजी के लिए योग्य दुल्हन नहीं ढूंढ पाई. विजय को कई बार उनके दफ्तर के चक्कर लगाने पड़े. 

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कई मौकों पर उन्हें इंतजार करने के लिए भी कहा गया. आखिरकार 30 अप्रैल को विजय दिलमिल मैट्रिमोनी के ऑफिस गए और अपने पैसे वापस करने का अनुरोध किया. हालांकि स्टाफ ने कथित तौर पर उन्हें पैसे देने से मना कर दिया. इस दौरान कथित तौर पर उनके साथ आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल भी किया गया. 

झगड़े के बाद किया कोर्ट का रुख
इस घटना के जवाब में विजय कुमार ने 9 मई को दिलमिल मैट्रिमोनी को कानूनी नोटिस जारी किया. लेकिन दिलमिल ने जवाब नहीं दिया. मामले की सुनवाई के बाद अदालत ने 28 अक्टूबर को एक आदेश में कहा, “शिकायतकर्ता को अपने बेटे के लिए उपयुक्त जीवनसाथी चुनने के लिए एक भी प्रोफ़ाइल नहीं मिली. और यहां तक ​​​​कि जब शिकायतकर्ता विपक्ष (दिलमिल) के कार्यालय में गया, तो वह उन्हें संतुष्ट नहीं कर सका या शिकायतकर्ता को राशि वापस नहीं लौटा सका." 

आयोग के अध्यक्ष रामचंद्र एम एस ने आदेश में कहा, "आयोग को यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि शिकायतकर्ता को दी गई सेवा में साफ कमी है. विपक्ष अनुचित व्यापार प्रथाओं में शामिल है. इसके लिए उसको शिकायत में दी गई अन्य राहतों के साथ-साथ राशि वापस करने के लिए उत्तरदायी ठहराया गया है." 

अदालत ने शुल्क के रूप में एकत्र किए गए 30,000 रुपये, सेवाओं में कमी के लिए 20,000 रुपये, मानसिक पीड़ा के लिए 5,000 रुपये और मुकदमेबाजी के लिए 5,000 रुपये वापस करने का आदेश दिया.