हिंदू धर्म में महिलाओं को अंतिम संस्कार के समय पुरुषों के साथ श्मशान जाना वर्जित माना गया है. कोई भी लड़की या महिला श्मशान नहीं जाती है. लेकिन दिल्ली की एक लड़की इन सभी रूढ़ियों को तोड़कर हर रोज़ न सिर्फ श्मशान जाती है बल्कि बिना किसी डर और बिना किसी झिझक के हर दिन लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करती है. यह कहानी है पूजा शर्मा की जो अबतक लगभग 4 हज़ार लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर चुकी हैं. आज हम आपको बता रहे हैं कि आखिर कैसे शुरू हुआ पूजा का यह सफर.
भाई का अंतिम संस्कार किया
26 साल की पूजा ने अपने इस सफर के बारे में कहती हैं कि एक दिन उनकी आंखों के सामने छोटे से झगड़े की वजह से किसी ने उनके बड़े भाई को गोली मार दी थी. काफ़ी देर तक वह लोगों से मदद मांगती रहीं लेकिन किसी ने मदद नहीं की. जैसे-तैसे वह अपने भाई को अस्पताल लेकर पहुंची लेकिन तब तक उसकी मौत हो चुकी थी. इस घटना के कुछ समय पहले ही पूजा की मां का देहांत हो चुका था. और जैसे ही पूजा के पिता ने बेटे की मौत की ख़बर सुनी तो वह भी सदमा बर्दाश्त न कर सके और कोमा में चले गए.
यह सब इतनी जल्दी हुआ कि पूजा के भाई का अंतिम संस्कार करने के लिए घर में कोई पुरुष मौजूद नहीं था. पूजा बताती हैं कि उस वक़्त परिवार में बड़े भाई का अंतिम संस्कार करने वाला कोई नहीं था और यह समय इतना मुश्किल था कि पूजा भी भाई के शव को अस्पताल में ही छोड़कर भाग आयी थीं. लेकिन फिर आख़िर में उन्होंने हिम्मत जुटायी और पगड़ी बांधकर भाई का अंतिम संस्कार किया. इसके बाद, पूजा इतनी मजबूत हो गईं कि उन्होंने लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करने की ठानी.
बेहद ख़राब स्थिति में होती हैं लाशें
पूजा बताती हैं कि लावारिस लाशों को सम्मानपूर्वक विदाई देना इतना आसान नहीं होता है. पुलिस तुरंत पूजा को डेड बॉडी नहीं सौंपती है. पहले पुलिस पूरी कोशिश करती है कि जिनका शव है उनके परिवार वालों को ढूंढ सकें. इस पूरी प्रक्रिया में लगभग 2 महीने का वक़्त लग जाता है और जब कोई नहीं मिलता तब पूजा को शव दिया जाता है ताकि वह अंतिम संस्कार कर सकें.
पूजा बताती हैं कि ये शव बेहद ख़राब अवस्था में होते हैं. कई लाशें तो सड़ी गली अवस्था में होती हैं. ट्रेन से कटी लाशें तो कई बार पूरी भी नहीं होती हैं. किसी का सिर नहीं होता किसी का धड़ नहीं होता. पूजा कहती हैं कि वह लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार उनकी धार्मिक परंपरा के हिसाब से ही करती हैं.
तानों से लड़कर बढ़ रही हैं आगे
पूजा बताती हैं कि जब से उन्होंने लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार करना शुरू किया है तो रिश्तेदारों ने उनके परिवार से नाता तोड़ लिया है. न कोई उनके घर आता है और न ही उन्हें अपने घर बुलाता है. रिश्तेदार और मोहल्ले के लोग पूजा को पागल कहते हैं. वह कहते हैं कि पूजा से दूर रहो क्योंकि उसके साथ तो पिशाच और आत्माएं चलती हैं. पूजा बताती हैं कि उनके 20 साल पुराने दोस्तों ने भी उस से नाता तोड़ लिया है. लेकिन फिर भी वह इस काम को अपने जीवन का लक्ष्य बना चुकी हैं.
पूजा बताती हैं कि इस काम में आर्थिक ख़र्चे भी हैं. पैसों का इंतज़ाम भी करना होता है. पूजा ने सोशल वर्क में मास्टर डिग्री की हुई है और इस काम को करने से पहले वह बतौर HIV काउंसलर नौकरी करती थी. लेकिन इस काम को करने के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ी और पूरा वक़्त इसी काम में लग गईं. जब पैसों की कमी हुई तो अपना घर तक गिरवी रख दिया. पूजा की दादी की पेंशन आती है. दादी भी अपनी पेंशन का पूरा पैसा इस काम के लिए दे देती हैं.
पूजा कहती है कि एक लावारिस लाश के अंतिम संस्कार में 1000-1200 का ख़र्चा आता है. ऐसे में, उन्हें लोगों की मदद की ज़रूरत है. पूजा अब ‘Bright the Soul Foundation’ नाम की संस्था भी चलाती हैं जिसके ज़रिए लोग पूजा की मदद कर सकते हैं.
जब मिला नेक कर्म का फल..
पूजा कहती हैं कि इस काम को करने से लोग उनका साथ छोड़ते चले गए लेकिन फिर भी वह बिना किसी सपोर्ट के लोगों का अंतिम संस्कार करती हैं. क्योंकि कर्म का फल जरूर मिलता है और पूजा को भई अपने नेक कर्म का फल मिला है. वह बताती हैं कि उन्होंने एक 22 साल के लड़के का अंतिम संस्कार किया था. लेकिन कुछ दिन बाद लड़के का परिवार पुलिस तक पहुंचा. पुलिस ने उस परिवार को पूजा से मिलवाया और पूजा ने उन्हें उनके बेटे के अंतिम संस्कार का वीडियो दिखाया.
परिवार के लोगों ने उनका बहुत धन्यवाद दिया कि उन्होंने उनके बेटे को धर्म और परंपरा के हिसाब से अंतिम विदाई दी. वह परिवार उनके सामने फूट-फूट कर रोने लगा और उनके पैरों पर गिर गया. उस दिन उन्हें दिल से संतुष्टि महसूस हुई कि उन्होंने एक अनजान परिवार को कम से कम इस बात की तसल्ली तो दी कि उनके बेटे का अंतिम संस्कार ठीक तरीक़े से किया गया है.
अंत में, पूजा बस यही कहती हैं कि वह शादी भी ऐसे परिवार में करना चाहती हैं जहां उन्हें इस काम को करने से मना नहीं किया जाएगा और परिवार के लोग उनके काम में पूरा सहयोग भी करेंगे.