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एक साल की उम्र में हुआ था पोलियो फिर भी बनाई अपनी पहचान, अब लड़ रहे हैं दिव्यांगों के हक की लड़ाई

केरल के मोहम्मद शनील चल नहीं सकते हैं लेकिन इसे अपना कमजोरी बनाने की बजाय वह अपने अधिकारों का लड़ाई लड़ रहे हैं. पिछले कई सालों से मोहम्मद लगातार कोशिश कर रहे हैं कि केरल को दिव्यांगों के अनुकूल बनाया जाए.

Representational Image (Photo: Freepik) Representational Image (Photo: Freepik)
हाइलाइट्स
  • मोहम्मद को एक साल की उम्र में पोलियो हो गया था

  • हार मानने की बजाय मोहम्मद ने पढ़-लिख कर अपनी पहचान बनाई

अपने आस-पास किसी दिव्यांग को देखकर अक्सर हम असहज हो जाते हैं. समझ नहीं आता कि कैसे व्यवहार करें? कभी असंवेदनशील हो जाते हैं तो कभी-कभी उनपर बिल्कुल दया दिखाने लगते हैं. इसका सबसे बड़ा कारण है कि हमारे समाज में कभी भी दिव्यांगों को समान रूप से शामिल करने की कोशिश नहीं की गई. 

बहुत ही कम जगहें आपको दिव्यांगों के अनुकूल मिलेंगी. जैसे स्कूल-कॉलेज में बहुत कम ही दिव्यांगों के हिसाब से सीढ़ियों का साथ रैंप या फिर टॉयलेट आदि बनवाए जाते हैं. सार्वजनिक जगहों पर भी उनके लिए कोई सुविधाएं नहीं होती हैं. पर केरल के एक शख्स ने इस भेदभाव को खत्म करने की ठानी है. 

यह कहानी है मोहम्मद शनील की, जो खुद एक दिव्यांग हैं और अपने साथ-साथ दूसरों के हक की लड़ाई भी लड़ रहे हैं. 

पोलियो ने छीनी चलने की शक्ति 

द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, मोहम्मद सिर्फ एक साल के थे जब उन्हें पोलियो हो गया था. इस बीमारी ने उन्हें कमर से नीचे तक अपंग बना दिया. लेकिन उनके परिवार ने उनका साथ नहीं छोड़ा और मोहम्मद ने बचपन से ही मुश्किलों से लड़ने की ठान ली. 

अब बत्तीस साल की उम्र में वह अपनी एक पहचान बनाने के बाद केरल को दिव्यांगों के अनुकूल राज्य बनाने में जुटे हैं. उनका कहना है कि दिव्यांग भी स्वतंत्र रूप से रहना पसंद करते हैं. लेकिन सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रों में पर्याप्त दिव्यांग-अनुकूल सुविधाओं की कमी के कारण बहुत से लोग अपनी जिंदगी अच्छे से नहीं जी पाते हैं. 

खुद किया परेशानियों का सामना 

मलप्पुरम के रहने वाले मोहम्मद का कहना है कि कई बार वह खुद अपनी कार मे बैठकर खाना खाने के लिए मजबूर हुए हैं, क्योंकि होटल और रेस्तरां का बुनियादी ढांचा दिव्यांगों के अनुकूल नहीं है. इसलिए मोहम्मद एक एक्सेसिबिलिटी ऑडिटर बने ताकि वह अलग-अलग संगठनों को दिव्यांगों के अनुकूल इमारतें बनाने में मदद कर सकें. 

उन्होंने इस विषय पर एक ऑनलाइन कोर्स किया है और 2019 से राज्य में ऐसी कई इमारतों को बनाने में मदद की है. मोहम्मद ने एमबीए किया हुआ है पर उन्हें नौकरी मिलने में परेशानी हुई क्योंकि कंपनियां उनकी योग्यता से ज्यादा इस बात पर सोचती थीं कि उन्हें अपनी बिल्डिंग में बदलाव करने होंगे. 

...ताकि बराबरी से जी सकें दिव्यांग

मोहम्मद दिव्यांगों के लिए काम करने की तीव्र इच्छा के कारण वह कोयंबटूर में SAHAI ट्रस्ट में शामिल हो गए. उन्होंने केरल और तमिलनाडु में दिव्यांगों के लिए 12 शिविर आयोजित किए हैं. जहां तीन महीने के लिए दिव्यांगों को फिजियोथेरेपी दी जाती है. फिलहाल वह एक जन औषधि मेडिकल स्टोर चलाते हैं और जल्द ही एक क्लिनिक शुरू करने की योजना बना रहे हैं. 

मोहम्मद लगातार इसी कोशिश में हैं कि राज्य भर में इमारतों, सड़कों, और अन्य सुविधाओं को दिव्यांगों के अनुकूल बनाया जा सके. ताकि दिव्यांग लोग खुद को बोझ न समझें और बराबरी के साथ जी सकें.