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Exclusive: किसानों के लिए किए 50+ इनोवेशन, जरूरतमंद बच्चों के लिए शुरू किया अपना Innovation School, राष्ट्रपति से मिला है सम्मान

यह कहानी है अंडमान और निकोबार द्वीप के एक गांव में रहने वाले दीपांकर दास की जिन्हें लोग सीरियल इनोवेटर के रूप में जानते हैं. अपने इनोवेशन्स के लिए राष्ट्रपति से सम्मान पा चुके दीपांकर ने अब बच्चों के लिए इनोवेशन स्कूल की शुरुआत की है.

Dipankar Das Dipankar Das
हाइलाइट्स
  • किसानों के लिए किए छोटे-बड़े इनोवेशन 

  • ग्रामीण बच्चों के लिए शुरू किया इनोवेशन स्कूल 

अगर आप गांव-देहात से ताल्लुक रखते हैं तो आपने अक्सर ज्यादातर लोगों को खेतों में हाथ से काम करते हुए देखा होगा और उस समय आपके मन में यह ख्याल भी आया होगा कि काश! उनके पास काम को आसान करने के लिए मशीन होती. आज भी भारत के ज्यादातर किसान और खेतिहर मजदूर सही मशीनरी के अभाव में हाथों से ही सभी काम करते हैं. इससे न सिर्फ उन्हें शारीरिक परेशानी होती है बल्कि मिनटों के काम में घंटे लग जाते हैं. 

अंडमान-निकोबार में मधूपुर गांव के रहने वाले बबूल दास और उनकी पत्नी की भी यही समस्या थी. खेतों में खोदी लगाने हो तो उन्हें घंटो फावड़ा चलाना पड़ता था और उनकी पत्नी मीलों दूर जाकर पानी लेकर आती थीं और वह भी सिर पर रखकर. यह उनकी ही नहीं उनके गांव के लगभग हर घर की कहानी थी. लेकिन इस कहानी को बदला उनके बेटे दीपांकर दास ने. 

दीपांकर ने छोटी उम्र से ही किसानों की जिंदगी को आसान बनाने के लिए तरह-तरह के इनोवेशन किए और अपने काम के लिए बहुत से अवॉर्ड्स भी जीते. अब वह अपनी स्किल्स को गांव के और बच्चों को सिखाना चाहते हैं और इसलिए उन्होंने अपने भाई के साथ मिलकर शुरुआत की अंडमान के पहले इनोवेशन स्कूल- Andaman First Brothers Innovative School की. 

GNT Digital के साथ बात करते हुए दीपांकर ने अपनी इनोवेशन यात्रा और अपने स्कूल के बारे में विस्तार से बताया.

किसानों के लिए किए छोटे-बड़े इनोवेशन 
दीपांकर बताते हैं, "मैंने ग्रामीण भारत के किसानों की मदद के लिए 50 से ज्यादा इनोवेशन किए हैं. मेरी बनाई ये छोटी-बड़ी मशीनें उन किसानों के लिए मददगार हैं जो बड़ी-बड़ी मशीनरी नहीं ले सकते हैं. इसलिए मैंने किसानों की परेशानी को समझते हुए उन्हीं के अनुरूप समाधान बनाए हैं." जैसे अपने पिता की मदद के लिए उन्होंने साइकिल बेस्ड फावड़ा बनाया जिससे खुदाई करना बहुत आसान है. इसी तरह, अपनी मां के लिए उन्होंने ट्रॉली बनाई जिसमें आसानी से पानी लाया जा सकता है. 

उनके दूसरे इनोवेशन्स में सोलर पल्स थ्रेसर काफी पॉपुलर है. इससे दाल की प्रोसेसिंग काफी आसानी से हो जाती है. जिस काम को हाथ से करने में कई दिन लगते थे, वह काम इस मशीन की मदद से घंटों में हो जाता है. इसी तरह उन्होंने मछलियों के स्टोरेज के लिए डीप फ्रिजर बनाया और फिर धान के लिए सोलर ड्रायर भी तैयार किया. उनके इन इनोवेशन्स के लिए उन्हें National Innovation Foundation के जरिए राष्ट्रपति से भी सम्मान मिल चुका है. 

दीपांकर कहते हैं कि उनके जीवन में यह सब संभव हो पाया हनी बी नेटवर्क के फाउंडर, प्रोफेसर अनिल गुप्ता के मार्गदर्शन के कारण, जिन्होंने उनके हुनर को दिशा दी. दीपांकर प्रोफेसर गुप्ता को अपना गुरु मानते हैं और उनकी मदद के कारण ही वह अहमदाबाद से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कर सके. और अब अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद नए-नए इनोवेशन्स पर काम करते हुए दीपांकर ने एक और बड़ी पहल की है. 

ग्रामीण बच्चों के लिए शुरू किया इनोवेशन स्कूल 
दीपांकर बताते हैं कि उन्होंने अपने भाई प्रदीप दास के साथ मिलकर अंडमान और निकोबार द्वीप में पहली बार इनोवेटिव स्कूल की शुरुआत की है. उनके भाई ने ITI से डिप्लोमा किया हुआ है और फिलहाल, कॉन्ट्रेक्ट के तहत, इंडियन एयरफोर्स की दिगलीपुर यूनिट में क्लीनर की नौकरी करता है. साथ ही, प्रदीप ने परिवार को सपोर्ट करने के लिए क्राफ्ट बिजनेस भी शुरू किया. लेकिन जब दोनों भाइयों ने देखा कि उनके गांव और आसपास के इलाकों में बहुत से बच्चे हैं जिनकी वे उनका भविष्य सुधारने में मदद कर सकते हैं तो उन्होंने यह स्कूल खोलने का फैसला किया. 

यह स्कूल उत्तरी अंडमान के ग्रामीण क्षेत्र मधुपुर गांव में स्थित है. उनका पूरा फोकस इस स्कूल को चलाने पर है क्योंकि उनका कहना है कि द्वीप में छात्रों को उनके तकनीकी और नवीन विचारों के लिए सही अवसर और समर्थन नहीं मिल रहा था. साथ ही, सही कौशल विकास भी नहीं मिल रहा था. इसलिए उन्होंने खासतौर पर, स्कूली छात्रों और ड्रॉप आउट छात्रों के लिए यह पहल की. उनका लक्ष्य छात्रों को उनके ज्ञान को बढ़ाने और उनके इनोवेशन को सपोर्ट करने के लिए एक मंच प्रदान करना है. 

दीपांकर ने बताया कि साल 2023 में शुरू हुए उनके स्कूल में फिलहाल 18 छात्रों ने दाखिला लिया है. ये छात्र हर रोज उनके साथ मिलकर किसी न किसी प्रोजेक्ट पर काम करते हैं. दीपांकर कहते हैं कि इन छात्रों के पास बहुत से आइडियाज हैं जिनपर काम करके गांव के लोगों की मदद की जा सकती है. वह बच्चों को समस्या ढूंढने के बाद उसके समाधान पर काम करने की तकनीक सिखाते हैं. बच्चों को क्राफ्ट्स के साथ-साथ ऑर्गनिक फार्मिंग, बर्ड स्काउटिंग जैसी स्किल्स भी सिखाई जा रही हैं ताकि यह सब उनके करियर में काम आ सके. 

मदद की है जरूरत 
दीपांकर कहते हैं कि कोरोना का समय किसी के लिए भी अच्छा नहीं था. लेकिन उनके गांव और समुदाय के लिए यह और भी मुश्किल था. हालांकि, कोरोना के समय में उन्होंने अपनी इनोवेशन स्किल्स का इस्तेमाल करके लोगों की मदद करने की कोशिश की. उन्होंने सामाजिक संस्थानों के साथ मिलकर 5000 से ज्यादा लोगों तक खाने और राशन की किट पहंचाई. उन्होंने कोविड योद्धाओं के लिए एक मास्क-बेस्ड फिल्टर एयर इनहेलर का भी प्रोटोटाइप बनाया था. और जैसे ही कोरोना का कहर कम हुआ उन्होंने अपने स्कूल की अवधारणा पर काम करना शुरू किया. 

लेकिन स्कूल चलाना इतना आसान नहीं है. दीपांकर ने बताया कि वह बच्चों को बिना किसी फीस के पढ़ाते और सिखाते हैं. उन्होंने अभी तक इस काम में अपनी निजी सेविंग्स का इस्तेमाल किया है. लेकिन अब उन्हें फंड्स की जरूरत है जिसके लिए वह अलग-अलग लोगों और संस्थानों को अपने स्कूल का प्रपोजल भेज रहे हैं ताकि वे और ज्यादा से ज्यादा बच्चों को स्कूल में दाखिल कर सकें. अंत में वह सिर्फ यही कहते हैं कि अगर कोई भी उनकी इस काम में मदद कर सकता है तो उनसे जरूर संपर्क करें. क्योंकि उनका मानना है कि लोगों के साथ से ही वह बच्चों को इनोवेटर बना सकते हैं और यही ग्रासरूट्स इनोवेटर भारत को आगे बढ़ाएंगे. 

अगर आप दीपांकर दास के स्कूल के बारे में ज्यादा जानना चाहते हैं तो उनसे innovatvschool@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं.