पतला बीज, ज्यादा गूदा, पतला छिलका और स्वाद ऐसा कि आप दीवाने हो जायेंगे... यही है पटना के दूधिया मालदा की पहचान. आम के मौसम में पटना के दीघा इलाके के विश्व प्रसिद्ध दूधिया मालदा के स्वाद की कहानी सात समंदर पार तक गूंजती है. फलों के राजा आम की सभी किस्मों में दूधिया मालदा सबसे खास है. राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक इस आम की खेप विदेशों में भेजते हैं.
पटना के बिहार विद्यापीठ स्थित आम बगान के प्रबंधक प्रमोद कुमार ने बताया कि एक समय था जब यह आम बगान पूरे दीघा क्षेत्र में था. हालांकि, कंक्रीट के जंगलों के निर्माण के कारण, बाग सिकुड़ गए हैं और सिर्फ कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रह गए हैं.
दूध से सींचा
प्रमोद कुमार ने बताया कि लखनऊ के नवाब फिदा हुसैन इस आम के पौधे को पाकिस्तान के इस्लामाबाद की शाह फैसल मस्जिद के इलाके से लाए और इसे पटना के दीघा में लगाया. ऐसा माना जाता है कि नवाब साहब के पास बहुत सारी गायें हुआ करती थीं, वे बचे हुए दूध से पौधों की सिंचाई करते थे, एक दिन जब पेड़ बड़ा हुआ और फल निकले तो दूध जैसा पदार्थ निकला। जिसके बाद इसका नाम दूधिया मालदा रखा गया.
33 देशों को आपूर्ति की गई
प्रमोद कुमार के मुताबिक, पिछले सीजन में 33 देशों में आम की खेप भेजी गई थी. यहां से देश के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति समेत तमाम नेताओं को आम भेजे जाते हैं. इसके अलावा अमेरिका, इंग्लैंड, जापान और दुबई समेत तमाम देश इस आम के दीवाने हैं और हर साल इसके ऑर्डर आते हैं. यह आम जून में पककर तैयार हो जाता है. आम लगभग ₹100 प्रति किलो की दर से बिकता है.
निजाम के समय के पेड़
बतातें हैं कि पहले राजधानी के बोरिंग कैनाल रोड से लेकर दीघा जंगल तक आम का जंगल हुआ करता था, लेकिन अब इस इलाके में इमारतें बन गईं. इस वजह से जंगल सिकुड़ गया है और अब केवल कुछ ही स्थानों पर मौजूद है. दूधिया मालदा आम राजभवन, बिहार विद्यापीठ, संत जेवियर्स कॉलेज और कुर्जी फैमिली हॉस्पिटल में पाया जाता है. बिहार विद्यापीठ में लगभग 50 दूधिया मालदा के पेड़ हैं, जबकि पटना में लगभग 1,000 पेड़ अभी भी बचे हैं.
यह आम सफेद दिखता है. अगर आप सभी आमों को एक जगह रख दें तो जो सबसे सफेद होता है वो दूधिया मालदा होता है. फिलहाल बिहार विद्यापीठ के पास 33 एकड़ का आम का बगीचा है. इस परिसर में दूधिया मालदा के अलावा कई तरह के आम के पेड़ हैं. लेकिन हर साल इसमें कमी आ रही है. हर साल दस पेड़ सूख रहे हैं. बिहार विद्यापीठ में लगभग 40 ऐसे आम के पेड़ हैं जो निज़ाम के समय के हैं.