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"बस मौत की चौखट से वापस हैं".... कश्मीर के आतंकवादी हमले से बाल-बाल बचे नादिया के दो बुजुर्ग जोड़े, एक लैंडस्लाइड ने बदल दी जिंदगी 

घंटों तक दोनों परिवारों ने बार-बार कॉल किए, लेकिन फोन नेटवर्क पूरी तरह गायब हो चुका था. कोई जवाब नहीं मिल रहा था. एक-एक पल एक युग जैसा लग रहा था. सभी के मन में एक ही सवाल- क्या वे जिंदा हैं?

Pahalgam tourist attack (Representative Image/Getty Images) Pahalgam tourist attack (Representative Image/Getty Images)

कश्मीर की वादियों की खूबसूरती देखने गए थे… लेकिन एक दर्दनाक आतंकी हमले ने ऐसा तूफान ला दिया कि सारा सपना एक खौफनाक सच्चाई में तब्दील हो गया. जहां 26 लोगों की जान चली गई, वहीं बंगाल के नादिया जिले के शांतिपुर से गए दो बुजुर्ग दंपत्ति महज कुछ मिनटों की देरी के चलते मौत के मुंह से बाहर निकल आए.

"अगर वो लैंडस्लाइड न होती… तो आज शायद हम अपनों की चीखें सुन रहे होते!"
जी हां, हम बात कर रहे हैं शांतिपुर के लक्ष्मण कुंडू-हासी कुंडू और तपस दास-सविता दास की. ये चारों 16 अप्रैल को कश्मीर घूमने गए थे, जहां पहलगाम के पास उनके जीवन की सबसे भयावह घटना उनका इंतजार कर रही थी.

पर किस्मत को कुछ और ही मंज़ूर था. पहलगाम जाते समय रास्ते में एक भारी लैंडस्लाइड हो गई, जिससे इन दोनों दंपत्तियों की गाड़ी रास्ते में ही रुक गई. गाड़ी रुकी, और कुछ देर बाद आतंक का तांडव शुरू हो गया.

जिस जगह पर उन्हें पहुंचना था, वहां कुछ ही पलों बाद आतंकियों ने हमला बोला और देखते ही देखते 26 निर्दोष पर्यटकों की जान चली गई- इनमें तीन बंगाल के भी थे.

परिवार वाले उस वक्त नादिया में थे और टीवी पर खबरें देख रहे थे.
लक्ष्मण कुंडू के बेटे ब्रिंदाबन कुंडू याद करते हुए कहते हैं, "जब हमने पहलगाम में हमले की खबर देखी और उनका फोन लगातार बंद आ रहा था, तो ऐसा लगा जैसे शरीर सुन्न हो गया हो," 

घंटों तक दोनों परिवारों ने बार-बार कॉल किए, लेकिन फोन नेटवर्क पूरी तरह गायब हो चुका था. कोई जवाब नहीं मिल रहा था. एक-एक पल एक युग जैसा लग रहा था. सभी के मन में एक ही सवाल- क्या वे जिंदा हैं?

लेकिन फिर चमत्कार हुआ. लक्ष्मण कुंडू ने नई सिम खरीदकर किसी तरह दिल्ली से परिवार से संपर्क किया. उनकी आवाज सुनकर परिवार वाले फूट-फूट कर रो पड़े.

लक्ष्मण की बहू रिमी कुंडू दास बताती हैं, "मेरे माता-पिता और सास-ससुर दोनों साथ में गए थे. जब हमला हुआ, हमने जैसे-तैसे खबरें पाई और कोशिश की कि उनसे बात हो. अंत में जब बात हुई, तो जैसे नई ज़िंदगी मिल गई." 

हम होटल में छिपे बैठे थे, कांपते हुए प्रार्थना कर रहे थे
फोन पर बात करते हुए लक्ष्मण कुंडू ने बताया, "हमने होटल में छुपकर खुद को बचाया. हर गोली की आवाज दिल को चीरती थी. बाहर का दृश्य भयावह था. हम घंटों वहीं छिपे रहे जब तक हालात कुछ शांत नहीं हुए."

हमले के बाद जैसे-तैसे वे दिल्ली पहुंचे, और अब वापसी की तैयारी कर रहे हैं. परिवार की आंखों में राहत के आंसू हैं, पर दिल में अब भी डर बैठा हुआ है.