scorecardresearch

Exclusive: पटना की एक बेटी ने पेश की अनूठी मिसाल, सामाजिक बेड़ियों को तोड़ चढ़ाया बहन का तिलक

बिहार के पटना से जो खबर सामने आई है, वह बेटियों का मान बढ़ाने वाली है. साथ ही समाज की उन बेड़ियों को तोड़ती है जिसे हमेशा पुरुष अपनी संपत्ति समझता है. बेटियां किसी से कमजोर नहीं हैं, न ही बोझ. फिर उनके जन्म पर निराशा क्यों...यह सवाल उठाती हैं बिहार की बेटी प्रिया?

Tilak ceremony Tilak ceremony
हाइलाइट्स
  • बेटी होने पर न हों निराश

  • अगर हम बेटियां हैं तो हमें किसी का बेटा नहीं बनना

  • पढ़ें लिखे घरों में भी होते हैं भेदभाव

बेटा है कुल का दीप तो बाती हैं बेटियां, सिर गर्व से सबका उठाती हैं बेटियां, सुख दुःख का समय हो या हंसी का मौसम चंदन की तरह छांव लुटाती हैं बेटियां....

आज तक जिन परम्‍पराओं और रीति रिवाजों पर सिर्फ पुरुषों का हक समझा जाता रहा है उसे अब बेटियां निभा रही हैं. बेटे और बेटियों के बीच भेदभाव को मिटाते हुए बिहार की बेटी प्रिया सिंह ने अपनी बहन का तिलक चढ़ाया. प्रिया ने पटना वुमन्स कॉलेस से ग्रेजुएशन किया है. फिलहाल वह सीए की पढ़ाई कर रही हैं. प्रिया ने अपने इस क्रांतिकारी कदम से यह साबित कर दिया कि लड़कियां लड़कों से किसी भी क्षेत्र में कम नही हैं. 

अगर हम बेटियां हैं तो हमें किसी का बेटा नहीं बनना

पटना के महेश प्रसाद सिंह पेशे से बिजनेसमैन हैं. उनकी चार बेटियां हैं. बड़ी बेटी अनुष्का टीचर हैं, दूसरे नंबर की हैं शिखा कुमारी जिनकी शादी दीपक सिंह से तय हुई है. तीसरी बेटी प्रिया हैं जिन्होंने आगे आकर अपनी बहन का तिलक खुद चढ़ाने का फैसला किया. यह पूछने पर कि तिलक में भाई (अन्य पुरुष) की जगह आपको बैठा हुआ देखना लोगों के लिए कितना आश्चर्यजनक रहा होगा. इसपर प्रिया कहती हैं, सामाजिक परंपरा की बेड़‍ियों को तोड़ना जरूरी था. इसलिए मैंने खुद तिलक चढ़ाने की इच्छा जाहिर की. हमने बचपन से ही हर काम खुद करना सीखा है. मुझे लगता है हम किसी से कम नहीं हैं और अगर हम बेटियां हैं तो हमें किसी का बेटा नहीं बनना. मैंने तिलक समारोह में बहन बनकर ही सभी रस्मों को पूरा किया. वर पक्ष के के लोगों ने भी मेरे इस कदम की दिल से सराहना की.

एक दूसरे को बांधते हैं राखी


प्रिया बताती हैं, हम चारों बहनें राखी का त्योहार भी बहुत धूमधाम से मनाती हैं. एक दूसरे को राखी बांधते हैं. हमारे लिए हम चार ही सबकुछ हैं. हमारे पिता भी हमें बहुत सपोर्ट करते हैं, उन्हें हम पर भरोसा है. हमारी परवरिश ही कुछ इस तरह हुई है कि कभी भाई न होने का दुख नहीं लगा. लेकिन बिहार जैसे राज्य में लड़का और लड़की के बीच बहुत भेदभाव होता है. परिवार भले ही आपका सपोर्ट करे लेकिन हमारा समाज कभी लड़कियों को बराबरी का हक नहीं देता. हमारे समाज में पितृसत्तात्मक सोच हावी है जो हर जगह दिखाई पड़ती है. इसे बदलना चाहिए. सोसाइटी में बदलाव लाना है तो महिलाओं को सेल्फ डिपेंडेंट होना होगा.

अपनी बहन का तिलक चढ़ातीं प्रिया
अपनी बहन का तिलक चढ़ातीं प्रिया

लोग हमें तरस की निगाहों से न देखें


पटना की रहने वाली प्रिया कहती हैं उन्होंने अपने घर में कभी भेदभाव का सामना नहीं किया लेकिन बाहर के लोगों ने उन्हें इस बात का अहसास जरूर दिलाया कि उनका भाई नहीं है. प्रिया की मां को लोग हमेशा दिलासा देते रहते कि जाने दो बेटा नहीं हुआ तो क्या, बेटी को ही बेटा समझ लो... प्रिया को ये बात बहुत अजीब लगती थी. उन्हें इसमें तरस की भावना नजर आती थी. लोगों के अंदर यह भावना है कि बेटी होना बुरे कर्मों का फल है.

पढ़े लिखे घरों में भी होते हैं भेदभाव


मेरे इस कदम से समाज पर कितना असर पड़ेगा ये तो मैं नहीं जानती लेकिन मैं नहीं चाहती कोई हमें तरस की नजर से देखें. दशकों से चली आ रही इस समस्या का हल क्या है सवाल पर प्रिया कहती हैं, मेरा मानना है शिक्षा इसके लिए बहुत जरूरी है. लड़कियां दो परिवार को संस्कारवान बनाती हैं. वे शिक्षित होंगी तो पूरा समाज शिक्षित होगा. हमारा परिवार शिक्षित है इसलिए ऐसे कदम उठाने को लेकर ज्यादा सोचना नहीं पड़ता. लेकिन कुछ परिवार ऐसे हैं जहां ये करना बहुत बड़ी बात होगी. खैर भेदभाव तो पढ़े-लिखे लोग भी करते हैं. दहेज प्रथा, भ्रूण हत्या जैसी कुरीतियां शिक्षित घरों में भी देखने को मिलती हैं. इसे खत्म करने के लिए लोगों की मानसिकता में बदलाव लाना होगा.