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पैरामिलिट्री फोर्स की नौकरी छोड़कर फतेहपुर का ये किसान उगा रहा मोती, इस बार कुंभ के बाजारों में दिखेगी इनकी चमक

शत्रुघन मोती व जरबेरा की खेती करके दूसरे किसानों को नई दिशा देते हैं. और उन किसानों को भी प्रोत्साहित करते हैं जो किसानी से ऊब चुके हैं. शत्रुघन की ये कोशिश किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने में मददगार हो रही है.

मोतियों की खेती मोतियों की खेती
हाइलाइट्स
  • पैरामिलिट्री फोर्स की नौकरी छोड़कर कर रहे मोती की खेती

  • मोती की खेती पर्यावरण के लिए अनुकूल

  • खेती से प्रतिवर्ष 7 से 8 लाख रुपये की आमदनी

यूपी के फतेहपुर जिले के बुदवन गांव के रहने वाले किसान शत्रुघन शर्मा ने देश के लाखों किसानों के लिए मिसाल पेश की है. वे मोती (सीप) की खेती करते हैं. शत्रुघन जनपद के ऐसे युवा किसान हैं जो पैरामिलिट्री फोर्स की नौकरी छोड़कर तकनीकी खेती की ओर आकर्षित हुए हैं और अब हजारों किसानों को इसके लिए प्रेरित भी कर रहे हैं.

मोती की खेती पर्यावरण के लिए अनुकूल
शत्रुघन मोती व जरबेरा की खेती करके दूसरे किसानों को नई दिशा देते हैं. और उन किसानों को भी प्रोत्साहित करते हैं जो किसानी से ऊब चुके हैं. शत्रुघन की ये कोशिश किसानों की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने में मददगार हो रही है. मोती की खेती पर्यावरण के लिए अनुकूल भी मानी जाती है. सरकार भी अब इंटीग्रेटेड फार्मिंग के तहत इस प्रकार की खेती को प्रोत्साहित कर रही है.

हर साल कमाते हैं 7 से 8 लाख रुपये
किसान शत्रुघन शर्मा ने बताया कि वह अभी 10 हजार सीपियों में मोती तैयार कर रहे हैं, जो बाजार में गुणवत्ता के अनुसार 1 हजार रुपये से 1200 रुपये तक बिकते हैं. अगर मोती की उत्पादक गुणवत्ता अच्छी है तो दाम और भी अच्छे मिलते हैं. फिलहाल इस बार प्रयागराज में महाकुंभ के बाजारों में इसकी सप्लाई करेंगे. मोती खेती से प्रतिवर्ष 7 से 8 लाख रुपये की आमदनी होती है. किसानों की दोगुनी आय के लिए इस तरह की तकनीकी खेती पर जोर दिया है.

मोतियों की खेती


पैरामिलिट्री फोर्स की नौकरी छोड़कर शुरू की खेती
शत्रुघन शर्मा बताते हैं, मैंने 2021 में एसएसबी से इस्तीफा दिया. नौकरी छोड़ने का कारण ये था कि जहां जहां मेरी पोस्टिंग हुई हर जगह पॉली हाउस के जरिए अच्छी खेती हो रही थी. मैंने भी उसी वक्त सोच लिया मैं भी कुछ ऐसा ही करूंगा. 2022 में अपने घर आकर मैंने मोती की फार्मिंग शुरू की. अब करीब तीन साल से मैं ये खेती कर रहा हूं. इस पर सात से आठ लाख की लागत लगती है. हमने 10 हजार मोती डाला है. अभी तक इसकी सप्लाई बनारस में करते हैं. इस बार कुंभ के मेले में भी मोतियों की सप्लाई करेंगे. इस फार्मिंग में तीन साल में लगभग दोगुना फायदा होता है. इसकी खेती में सरकारी योजना का भी बहुत लाभ मिला है.

- फतेहपुर से नितेश श्रीवास्तव की रिपोर्ट