गांवों में अक्सर आपने पंचायतों के बारे में सुना होगा और कई गावों में आज भी सरपंच के लिए पुरुष प्रधान छवि ही है, लेकिन गुजरात के कुनारिया गांव में तस्वीर थोड़ी नहीं पूरी अलग है. क्योंकि यहां पर देश की पहली बालिका पंचायत का गठन हुआ है. इस पहल को गुजरात सरकार के महिला एवं बाल विकास कल्याण विभाग द्वारा 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' अभियान के तहत की गई है. इस पहल के बाद केंद्र में महिला एवं बाल विकास मंत्रालय अब देशभर में बालिका पंचायत शुरू करने की योजना बना रहा है.
चार लड़कियों ने चुनाव के लिए नामांकन भरा था
बालिका पंचायत का प्रबंधन 11-21 वर्ष की लड़कियों द्वारा किया जाता है और इसका मुख्य उद्देश्य बालिकाओं के सामाजिक और राजनीतिक विकास को बढ़ावा देना और समाज से बाल विवाह और दहेज प्रथा जैसी कुरीतियों को दूर करना है. बालिका पंचायत की सरपंच को चुनने के लिए पूरी संवैधानिक प्रक्रिया के जरिए चुनाव आयोजित किए गए. कुल चार लड़कियों ने चुनाव के लिए नामांकन भरा था, जिसमें से गरवा भारती ने चुनाव जीता. गरवा इस वक्त 21 साल की हैं और अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही हैं.
उनके द्वारा बनाई गई कमिटी में कई बच्चियां है, जो 18 साल की हैं और कई अलग-अलग जिम्मेदारियों को संभाल रही हैं. 117 वोटों से जीतीं भारती फिलहाल डिस्टेंस लर्निंग के जरिए ग्रेजुएशन कर रही हैं. वह अपनी जीत को अपने गांव की कई महिलाओं के जीवन में बदलाव लाने के एक महान अवसर के रूप में देखती हैं. बालिका पंचायत का अनुभव पंचायती राज में 50% महिला आरक्षण को प्रभावी ढंग से लागू करने में उपयोगी होगा. हम स्वास्थ्य, शिक्षा, पोषण आहार जैसे मुद्दों पर ध्यान देंगे और लड़कियों के करियर में वृद्धि के लिए प्रशिक्षण भी आयोजित करेंगे'.
बालिका पंचायत के चुनाव के बाद लड़कियों की एक कमिटी भी बनाई गई. इसी कमेटी के अंतर्गत 17 साल से लेकर 21 साल तक की लड़कियां अपनी भागीदारी दिखा रही हैं. 'बालिका पंचायत' का उद्देश्य लड़कियों के सामाजिक और राजनीतिक विकास को बढ़ावा देना और राजनीति में लड़कियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना है.
कच्छ के बालिका पंचायत की सरपंच गरबा भारती ने कहा, 'बालिका पंचायत' 10 से 21 साल की उम्र की लड़कियों की पंचायत है, जिसका मुख्य उद्देश्य है कि लड़कियों की आवाज़ को सुना जाए और हर महत्वपूर्ण मामलो में उनकी भागीदारी हो'.
बालिका पंचायत बनाई गई
गांव के उपसरपंच सुरेश चंगा बताते हैं कि गांव की लड़कियां जो बाहर नहीं आ सकतीं, उन्हें शिक्षा नहीं मिल सकती. इसलिए, उनकी मदद के लिए बालिका पंचायत बनाई गई है. उदाहरण के लिए, यदि कोई लड़की स्कूल छोड़ती है और उसके माता-पिता उसे बाहर नहीं जाने दे रहे हैं, तो बालिका पंचायत उसके माता-पिता को समझाते हैं और उस लड़की को फिर से शिक्षा के लिए भेजते हैं.
इसी तरह से बालिका पंचायत के ज़रिए दहेज, यौन उत्पीडन, घरेलू हिंसा और अन्य महिलाओं से संबंधित समस्याओं को सुनकर, समझकर इसका हल निकाला गया.
बालिका पंचायत बनने के बाद इस गांव में कई तरह के बदलाव हुए. पहले जहां लड़कियां अपने हक के लिए नहीं आ पाती थी, वह लड़कियां और महिलाएं अपने हक के लिए आज आगे भी आ रही हैं और अपनी लड़ाई लड़ रही हैं.
'घरों के नेमप्लेट पर बेटियों के नाम'
गरबा बताती हैं कि बालिका पंचायत बनने के बाद पंचायत सदस्यों ने महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक बार बेहतरीन निर्णय लिया. इस गांव हर घर की प्लेट पर सिर्फ और सिर्फ घर की बेटियों का नाम है. अन्य जगहों पर और शहरों में ना पिता के नाम नजर आएंगे लेकिन यह एक ऐसा गांव है, जहां पर आपको घरों के नेमप्लेट पर बेटियों के नाम हैं. गरवा इसके पीछे की वजह बताते हुए कहती हैं कि शादी से पहले बेटी के नाम के साथ पिता का नाम जुड़ता है और शादी के बाद पति का नाम जुड़ता है और इसलिए महिलाओं को अपने हक की पहचान और सामान दिलाने के लिए इस मुहिम की शुरुआत की गई. अब इस गांव को एक आइडल गांव मानते हुए अन्य गांवों में भी इस तरह से बालिका पंचायत का गठन किया जाएगा.