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Food Waste Management: कद्दू के बचे बीजों से लेकर जूस पल्प तक....फूड वेस्ट को ही अपसायकल करके नई डिशेज बना रही है यह उद्यमी... फूड इंडस्ट्री को बनाना है नेचर फ्रेंडली

यूएनईपी (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम) की फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय घरों में सालाना 68.7 मिलियन टन भोजन बर्बाद होता है.

Potato peels to potato peels chips Potato peels to potato peels chips

यूनाइटेड नेशनंस फूड वेस्ट इंडेक्स की एक रिपोर्ट का अनुमान है कि भारतीय परिवार हर साल 78.2 मिलियन टन भोजन बर्बाद करते हैं. वहीं, संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया कि घरेलू स्तर पर प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष लगभग 55 किलोग्राम भोजन बर्बाद होता है. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट यह भी बताती है कि दुनिया भर में हर दिन 1 अरब से अधिक भोजन बर्बाद होता है. वहीं, वर्ल्ड बैंक ने अनुमान लगाया कि 2020 में खाने की बर्बादी से दुनिया को करीब 1.2 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ. 

अच्छी बात यह है कि आजकल बहुत से लोग इस मुद्दे को समझ रहे हैं और इस पर काम भी कर रहे हैं. आज दुनियाभर में लोग फूड वेस्ट को मैनेज करने की दिशा में अग्रसर हैं. यूके की फूड एंटरप्रेन्योर क्लो स्टुअर्ट को अपनी ट्रेवलिंग के दौरान एहसास हुआ कि फूड वेस्टेज बहुत बड़ा मुद्दा है. उन्होंने बीजिंग और बॉस्टन जैसे शहरों में देखा कि लोग प्लेट भर-भर के खाना लेते हैं और फिर आधा छोड़ देते हैं जो डस्टबिन में जाता है. 

फूड वेस्ट को किया 'अपसायकल'
सीएनबीसी को दिए एक इंटरव्यू में क्लो ने बताया कि यह देखकर उन्होंने एक ब्लॉग शुरू किया, जिस पर फूड वेस्टेज के बारे में लिखती थीं. साथ ही, बताती थी कि आप कैसे इसे अपसायकल कर सकते हैं. जैसे कोको बीन्स के टूकड़े या कद्दू के बीज कटरा नहीं हैं बल्कि नई चीजें बनाने के काम आ सकती हैं. उनके ब्लॉग का नाम था Nibs etc. और इसी नाम के साथ उन्होंने लंदन के एक फेमस मार्केट (Borough Market) में अपने हाथ से बने ग्रेनोला, क्रैकर्स और बनाना ब्रेड बेचना शुरू किया. इनमें उन्होंने पास के एक जूस स्टॉल से निकलने वाले फल और सब्जियों के छिलके और बीज अपने प्रोडक्ट्स में इस्तेमाल किए. 

जूस पल्प को लोग वेस्ट मानते हैं, लेकिन असल में उसमें ढेर सारा फाइबर और पोषण होता है. अब क्लो इंग्लैंड के केंट इलाके से सेब का पल्प लेकर अपने प्रोडक्ट्स बनाती हैं. उनके ग्रेनोला में यही पल्प मुख्य सामग्री है और उनके क्रैकर्स में 25% तक इसका इस्तेमाल होता है. उनकी कंपनी, Nibs etc. बीयर बनाने में बचे अनाज और आलू से चिप्स जैसी स्नैक बना रही है और रेपसीड ऑयल (सरसों जैसा एक तेल) के बचे हुए हिस्सों से डाइजेस्टिव बिस्किट बना रही है. ये नए प्रोडक्ट्स 40-50% तक अपसाइकल्ड चीजों से बन सकते हैं.

चिंताजनक हैं भारत के आंकड़े
UNEP (संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम) की फूड वेस्ट इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय घरों में सालाना 78.2 मिलियन टन भोजन बर्बाद होता है, सरल शब्दों में यह प्रति व्यक्ति लगभग 55 किलोग्राम है. घरेलू फूड वेस्ट के मामले में भारत दुनिया भर में दूसरे स्थान पर है, और उसके बाद चीन का स्थान है. नेशनल रिसोर्स डिफेंस काउंसिल (एनडीआरसी) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अमेरिका में उत्पादित 40% भोजन बिना खाए रह जाता है, जबकि एशिया में लगभग 1.34 बिलियन टन भोजन बर्बाद हो जाता है; इसमें मुख्य योगदान भारत और चीन का है. 

FSSAI (भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण) ने बताया कि भारत में उत्पादित सभी खाद्य पदार्थों में से एक तिहाई खाने से पहले ही बर्बाद हो जाता है या खराब हो जाता है. यह एक बहुत ही गंभीर चिंता का विषय है. सबसे बड़ी परेशानी यह है कि ज्यादातर लोग जानबूझकर भोजन बर्बाद नहीं करते हैं बल्कि उन्हें इसके बारे में पता ही नहीं होता है. हालांकि, अब भारत में भी फूड वेस्ट को गंभीरता से लिया जा रहा है और यहां पर भी लोग इसे कम से कम करने में जुटे हैं.

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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हो सकती है नेचर फ्रेंडली फूड इंडस्ट्री 
Ellen MacArthur Foundation नाम की एक संस्था कहती है कि खाना बनाने की इंडस्ट्री को ऐसा बनाया जा सकता है जो प्रकृति को नुकसान न पहुंचाए, बल्कि उसे बेहतर बनाए. जैसे कि बर्बाद होने वाली फसलों को फिर से इस्तेमाल करना. SeaMeat नाम का एक नया इंग्रीडिएंट समुद्री पौधों (seaweed) से बना है. इसका इस्तेमाल बर्गर में किया जा रहा है जिसस मीट की मात्रा 25% तक कम की जा सकती है. Seaweed जल्दी उगता है, इसमें 32% तक प्रोटीन होता है और ये बिना खाद या कीटनाशक के उगाया जा सकता है. 

इसी तरह, भारत में भी आज कई कंपनियां हैं जो इस दिशा में काम कर रही हैं. इन कंपनियों में कमर्शियल किचन में फूड वेस्ट मैनेजमेंट को बेहतर बनाने के लिए तकनीक इस्तेमाल करने वाले स्टार्टअप्स से लेकर फूड वेस्ट को पशु आहार में बदलने पर केंद्रित संगठन तक शामिल हैं. कुछ कंपनियां रसोई के कचरे से बायोगैस भी विकसित कर रही हैं या खाना पकाने के तेल को बायोडीज़ल में रिसाइकिल कर रही हैं. 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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1. तकनीक से समाधान 

  • KITRO: कमर्शियल किचन में फूड वेस्ट मैनेजमेंट को अनुकूलित करने के लिए AI-पावर्ड SaaS सोल्यूशन्स का इस्तेमाल करता है. 
  • Wastelink: खेतों से प्री-कंज्यूमर फूड वेस्ट को कलेक्ट करके इसे पशु आहार में बदलता है, जिससे इस वेस्ट को लैंडफिल में जाने से रोका जा सकता है और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम किया जा सकता है. 

2. वेस्ट से ऊर्जा और बायोगैस

  • Carbon Masters: रसोई के कचरे को इकट्ठा करता है और इसे स्थानीय उपभोग के लिए बायोगैस में बदलता है, जिससे लैंडफिल में जाने वाला कचरा कम होता है. 
  • Greenjoules: धान के भूसे और चावल की भूसी जैसे वैकल्पिक कृषि अपशिष्टों को ईंधन (फ्यूल) में बदलता है. 
  • Enviro: फूड वेस्ट एनर्जी प्लांट स्थापित किया है जो वेस्ट फूड से बिजली उत्पन्न करता है. 

3. रिसायकलिंग और अपसायकलिंग:

  • Ecoil/KNP Arises:रेस्तरां और होटलों से इस्तेमाल किया हुआ खाना पकाने का तेल खरीदता है, उसे बायोडीजल में बदलता है. 

4. NGOs:
Helping India, Feeding India जैसे संगठन भूख और फूड वेस्ट से निपटने के लिए रेस्तरां और दूसरी जगहों से बचे खाने को इकट्ठा करके जरूरतमंदों नें बांटते हैं. 

ये सिर्फ कुछ उदाहरण हैं और इनके अलावा भी और कई कंपनियां और संगठन हैं जो अलग-अलग तरीकों के माध्यम से फूड वस्ट को संबोधित कर रहे हैं, और ये सस्टेनेबल भविष्य में योगदान दे रहे हैं.