मिठाई और नमकीन की जानी-मानी चेन बीकानेरवाला के संस्थापक लाला केदारनाथ अग्रवाल का सोमावार (13 नवंबर 2023) को निधन हो गया. वह 86 वर्ष के थे. काकाजी के नाम से मशहूर अग्रवाल अपने शुरुआती दिनों में पुरानी दिल्ली की सड़कों पर बाल्टी में भरकर रसगुल्ले और भुजिया बेचते थे. अपनी मेहनत और लगन के दम पर उन्होंने इतना बड़ा साम्राज्य खड़ा कर दिया.
देश में ही नहीं विदेशों में भी हैं दुकानें
भारत में बीकानेरवाला की 1500 से भी ज्यादा स्टोर हैं. इतना ही नहीं इसकी दुकानें अमेरिका, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, नेपाल और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देशों में भी मौजूद हैं. ग्रुप के मैनेजिंग डायरेक्टर श्याम सुंदर अग्रवाल ने कहा, काकाजी का जाना सिर्फ बीकानेरवाला के लिए क्षति नहीं है, यह पाककला परिदृश्य में एक शून्य है. उनकी दूरदर्शिता और नेतृत्व हमेशा हमारी खानपान यात्रा का मार्गदर्शन करेगा.
बीकानेर से परिवार का नुस्खा लेकर आए थे दिल्ली
केदारनाथ अग्रवाल ने अपना व्यावसायिक सफर दिल्ली से शुरू किया था. बीकानेर के रहने वाले उनके परिवार के पास 1905 से शहर की गलियों में एक मिठाई की दुकान थी. उस दुकान का नाम बीकानेर नमकीन भंडार था और वह कुछ प्रकार की मिठाइयां और नमकीन बेचते थे. अग्रवाल बड़ी महत्वाकांक्षाओं के साथ 1950 के दशक की शुरुआत में अपने भाई सत्यनारायण अग्रवाल के साथ दिल्ली आ गए. वह अपने परिवार का नुस्खा लेकर आए थे.
बाल्टियां में रसगुल्ले और भुजिया लेकर बेचते थे
शुरुआत में दोनों भाइयों ने बाल्टी में भरकर बीकानेरी रसगुल्ले और कागज की पुड़िया में बांध-बांधकर बीकानेरी भुजिया और नमकीन बेची. हालांकि, अग्रवाल बंधुओं की कड़ी मेहनत और बीकानेर के अनूठे स्वाद को जल्द ही दिल्ली के लोगों के बीच पहचान मिल गई. इसके बाद कारीगर भी बीकानेर से बुला लिए. इसके बाद नई सड़क पर एक अलमारी मिल गई. वहां उन्होंने दिल्लीवालों को सबसे पहले मूंग की दाल का हलवा चखाया.
शुद्ध देसी घी से बने इस हलवे को लोगों ने खूब पसंद किया. केदारनाथ अग्रवाल ने बताया था कि फिर मोती बाजार, चांदनी चौक में ही एक दुकान किराए पर मिल गई. उसी वक्त दिवाली आ गई और हमारी मिठाई और नमकीन की खूब सेल हुई. हालत यह हो गई थी कि रसगुल्लों की तो हमें राशनिंग यानी लिमिट तक तय करनी पड़ी. एक बार में एक शख्स को 10 से ज्यादा रसगुल्ले नहीं बेचे जाते थे. ग्राहकों की लाइनें लग जाती थी.
दिल्ली में नई सड़क से शुरू किया नया काम
'बीकानेरवाला' का दिल्ली में सबसे पहला ठिकाना 1956 में नई सड़क पर हुआ. 1962 में मोती बाजार में एक दुकान खरीदी. इसके बाद करोल बाग में 1972-73 में वह दुकान खरीदी, जो अब देश-दुनिया में बीकानेरवाला की सबसे पुरानी दुकान के रूप में पहचानी जाती है. आज भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में कंपनी का बिजनस फैला है.
ऐसे पड़ा बीकानेरवाला नाम
केदारनाथ अग्रवाल ने बताया था कि शुरू में ट्रेड मार्क था BBB यानी बीकानेरी भुजिया भंडार लेकिन कुछ ही दिनों बाद सबसे बड़े भाई जुगल किशोर अग्रवाल दिल्ली आए तो उन्होंने कहा कि यह क्या नाम रखा है. हमने तो तुम्हें यहां बीकानेर का नाम रोशन करने के लिए भेजा था. इसके बाद नाम रखा गया 'बीकानेरवाला' और 1956 से आज तक 'बीकानेरवाला' ही ट्रेड मार्क बना हुआ है. काका जी के परिवार में तीन बेटे और तीन बेटियां हैं. सब शादीशुदा हैं और सबके बच्चे हैं. बेटों में सबसे बड़े राधेमोहन अग्रवाल, दूसरे नंबर पर नवरत्न अग्रवाल और तीसरे नंबर पर रमेश अग्रवाल हैं. सभी इसी बिजनस में लगे हुए हैं.
कंपनी का टर्नओवर है इतना सौ करोड़
साल 1988 में ब्रांड को विश्व स्तर पर ले जाने के लिए कंपनी ने एयर-टाइट पैकेजिंग में मिठाई और नमकीन बेचने के लिए बिकानो लॉन्च किया. इसके बाद साल 1995 में बीकानेरवाला ने हरियाणा के फरीदाबाद में एक नया प्लांट खोलते हुए, पेप्सिको के ब्रांड 'लहर' के लिए नमकीन का उत्पादन करने का एक विशेष समझौता किया. इसी तरह 2003 में कंपनी ने बिकानो चैट कैफे खोलने शुरू किए. यह एक तरह का फास्ट फूड सर्विस रेस्टोरेंट है. आज इस कंपनी का टर्नओवर 1,300 करोड़ रुपए है और उसमें 1000 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं. कंपनी अगले तीन सालों में आईपीओ लाने की तैयारी में है. इसके साथ ही उसकी योजना 2030 तक 10,000 करोड़ रुपए का रेवेन्यू हासिल करने और 600 स्टोर खोलने की है.