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वनटांगिया समुदाय की महिलाओं के लिए रोशनी की किरण बनी ज्योति...सरकारी योजनाओं से लेकर बैंक के काम तक हर चीज ता रखती है ख्याल

वनटांगिया समुदाय का इतिहास पुराना है. ब्रिटिश काल में जब रेल की पटरियां बिछायी जा रही थीं. उस समय बड़े पैमाने पर जंगलों से साखू के पेड़ काटे गए जिसकी भरपाई के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने साखू के पौधे लगाने और पेड़ बड़े होने तक उनकी देखभाल करने के लिए भूमिहीन निर्धनों को जंगलों में बसाया.

Jyoti Jyoti
हाइलाइट्स
  • पढ़ी लिखी नहीं होती है ये महिलाएं

  • 12 महिलाओं के समूह को संभालती है 

पिछले कुछ समय से यूपी के वन्य ग्रामों की चर्चा होती रही है. वनटांगिया समुदाय यहां रहता है जिनको आजादी के 70 साल बाद राजस्व ग्राम का दर्जा मिला. इसी वनटांगिया गांव में अब महिलाओं को इकट्ठा कर उनको जागरूक करने की अलख जगायी है ज्योति जैसी युवा ने. ज्योति ‘समूह सखी’ है और गांव की महिलाओं के समूहों को loan दिलाने से लेकर उनकी लोन वापसी और सभी सरकारी योजनाओं को गांव के लोगों तक पहुंचाती हैं. जंगलों में रहने वाली महिलाओं के बीच ज्योति उम्मीद की इस किरण की तरह हैं जो उनको सुनहरे भविष्य का सपना दिखा रही है.

ज्योति इन महिलाओं के लिए सरकारी योजनाओं और सुविधाओं को इन गांव के लोगों के बीच पहुंचाने के लिए एक कड़ी का काम करती है. सुबह होते ही गांव में निकल कर महिलाओं की सुध लेना, सरकारी loan लेने वाली महिलाओं से उनके कामकाज के बारे में पूछना, उसका रोज का नियम है. वनटांगिया गांव ‘तिकोनीया-3’ में उन्होंने लगभग हर घर में महिलाओं को जरूरत के हिसाब से योजनाओं का लाभ देने में सफलता हासिल की है. जैसे निर्मला देवी को लीजिए. अपने नाम लोन लेकर छोटी सी किराने की दुकान खोलने वाली निर्मला देवी कहती हैं कि ज्योति महिलाओं की मददगार हैं.

पढ़ी लिखी नहीं होती है ये महिलाएं
दरअसल गोरखपुर में कुसुमही(Kusumhi) के जंगलों में रहने वाले वनटांगिए सबसे ज़्यादा वंचित समुदाय में से माने जाते हैं. आजादी के 70 साल बाद 2017 में गांव को राजस्व गांव का दर्जा मिला इसीलिए अन्य जगहों की तरह यहां की महिलाओं और लोगों के बीच सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाना और एक कड़ी के रूप में यहां के लोगों खास तौर पर महिलाओं और प्रशासन के बीच काम करना आसान नहीं था. सरकार की ‘दीनदयाल उपाध्याय राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन’ के तहत यहां स्वयं सहायता समूहों यानि महिलाओं के self help groups को coordinate करने के लिए समूह सखी का चुनाव हुआ. जो महिलाएं चुनी गईं वो आत्मविश्वास और जानकारी के अभाव में ठीक से काम तक नहीं कर पायीं. फिर ज्योति को चुना गया.

आठवीं पास ज्योति आज गांव के महिला समूहों को कोऑर्डिनेट करती है. उनके काम का हिसाब रखती है. मीटिंग कर योजनाओं की जानकारी देती है. बैंक से समूहों को loan दिलवाती है. loan की वापसी की किश्त सुनिश्चित करती है. योजनाओं के बारे में महिलाओं को जानकारी देकर उनको लाभ दिलवाती है. उसने कई विकसित गांव से ज्यादा काम अपने गांव में कराया है.

12 महिलाओं के समूह को संभालती है 
ज्योति की मदद से आज सबसे पिछड़े गाँव में शामिल वनटाँगिया गाँव ‘तिकोनिया’ में बदलाव की बयार आ रही है. ज्योति 12 महिला समूहों को कोऑर्डिनेट करती हैं. पहले जहां ज्योति खुद बैंक का काम नहीं कर पाती थीं वहीं आज समूहों के सभी बैंक लेन देन का हिसाब रखती है. खुद ज्योति अपने भीतर हुए बदलाव की महसूस करती है. ज्योति कहती है कि पहले बैंक जाने पर उसे दूसरों से फॉर्म भरवाने के लिए देखना पड़ता था वहीं आज वो ये सब काम खुद ही कर लेती है. 

वनटांगिया समुदाय का इतिहास
जंगलों में बसने वाले वनटांगिया समुदाय का इतिहास पुराना है. ब्रिटिश काल में जब रेल की पटरियां बिछायी जा रही थीं तो बड़े पैमाने पर जंगलों से साखू के पेड़ काटे गए जिसकी भरपाई के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने साखू के पौधे लगाने और पेड़ बड़े होने तक उनकी देखभाल करने के लिए भूमिहीन निर्धनों को जंगलों में बसाया. 1918 में गोरखपुर में भी ऐसे परिवार जंगलों में बसाए गए. इस समय बर्मा देश जो अब मयांमार है वहां की ‘टांगिया’ विधि से साखू के पौधे लगाए गए इसलिए उन भूमिहीनों को वनटांगिया कहा गया. आजादी के बाद भी ये लोग न सिर्फ मूलभूत सुविधाओं से वंचित रहे बल्कि यहां शिक्षा का उजाला भी कम है. योगी आदित्यनाथ ने सांसद रहते हुए यहां के लिए न सिर्फ काम किया बल्कि सरकार बनने पर 2017 में गोरखपुर और महाराजगंज के ऐसे वनटांगिया गांव को राजस्व ग्राम का दर्जा मिला. शिक्षा के बेहद कम स्तर की वजह से इन बातों का लाभ लोगों को देने के लिए ज्योति जैसी महिलाओं की भूमिका और बड़ी है.