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मॉडल स्कूल के कांसेप्ट पर बच्चों को पढ़ा रहे विज्ञान, इस स्कूल के प्रिंसिपल करते हैं स्कूल की सफाई

यह एक सरकारी स्कूल होने के बावजूद बच्चों को प्राइवेट स्कूल जैसी सुविधाएं दे रहा है. यहां पर बनाए गए हर एक मॉडल्स इसी स्कूल के प्रिंसिपल द्वारा बनाए गए हैं. गिरीश के साथ-साथ उनके साथी शिक्षक जिग्नेश ढोलकिया भी उनके साथ मिलकर बच्चों के भविष्य को संवारने का काम कर रहे हैं.

Gujarat's innovative model school Gujarat's innovative model school
हाइलाइट्स
  • यह एक सरकारी स्कूल होने के बावजूद बच्चों को प्राइवेट स्कूल जैसी सुविधाएं दे रहा है

  • बच्चों की पढ़ाई आसान बनाने के लिए इस तरह के कांसेप्ट को स्कूल में लाया गया.

बच्चों को सरल और आसान तरीके से शिक्षा देने के लिए स्कूलों में कई तरह की तकनीक और तरीके अपनाए जाते हैं. कोई डिजिटल माध्यम से पढ़ाता है तो कोई कहानियों के जरिए लेकिन गुजरात के राजकोट के एक गांव में ऐसा स्कूल है जिसकी पहचान मॉडल स्कूल के तर्ज पर हो रही है. यहां पर बच्चों को विज्ञान और अन्य विषयों से संबंधित जानकारी मॉडल्स के जरिए दी जाती है. इसकी खास बात यह है कि यह एक सरकारी स्कूल होने के बावजूद बच्चों को प्राइवेट स्कूल जैसी सुविधाएं दे रहा है. यहां पर बनाए गए हर एक मॉडल्स इसी स्कूल के प्रिंसिपल द्वारा बनाए गए हैं.

बच्चों को विज्ञान में रॉकेट साइंस, सोलर सिस्टम, वर्ल्ड मैप, अर्थ रिवोल्यूशन और रोटेशन, मिसाइल्स और अन्य कॉन्सेप्ट भी इसी मॉडल के जरिए पढ़ाए और समझाए जाते हैं. इन मॉडल्स को किसी आर्टिस्ट ने नहीं बल्कि इसी स्कूल के प्रिंसिपल गिरीश बावलिया ने खुद बनाया है. इन मॉडल्स की खास बात यह भी है कि इन्हें किसी फ्रेश मटेरियल से नहीं बल्कि कबाड़ के सामान से बनाया गया. स्कूल के प्रिंसिपल गिरीश बावलिया बताते हैं कि बच्चों की पढ़ाई आसान बनाने के लिए इस तरह के कांसेप्ट को स्कूल में लाया गया. इन स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों को कक्षा में कांसेप्ट समझाए जाने के बाद बाहर मैदान में लाकर इन मॉडल्स के जरिए भी प्रैक्टिकल नॉलेज दिया जाता है. बच्चों को बेहतर शिक्षा और भविष्य देने के लिए वे हर मुमकिन प्रयास करते हैं. यहां पर बनाए गए हर शॉट्स मॉडल्स और पेंटिंग इन्हीं के द्वारा बनाए गए हैं.

Gujarat's innovative model school
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गिरीश ने बताया कि उन्होंने इस मॉडल स्कूल की शुरुआत साल 2018 में की थी जब वे स्कूल में बतौर प्रिंसिपल नियुक्त हुए. तब से उन्होंने ठान लिया था कि बच्चों को पढ़ाने के लिए कुछ नया तरीका ढूंढना ही होगा. वैसे देखा जाए तो इस स्कूल की एक नहीं कई खास बातें हैं. जिस तरह से यहां पर पढ़ाने का तरीका अलग है उसी तरह से यहां पर स्कूल को संचालित करने वाले प्रिंसिपल की सोच और काम भी अलग है. आमतौर पर आप किसी स्कूल के प्रिंसिपल को अपने केबिन में या फिर ज्यादा से ज्यादा बच्चों से इंटरेक्शन करते हुए देखेंगे. लेकिन जब आप गिरीश से मुलाकात करेंगे तब आपको ऐसा लगेगा ही नहीं किए यहां के प्रिंसिपल हैं. गिरीश जिस स्कूल में प्रिंसिपल हैं वह खुद ही उस स्कूल में स्कूल की साफ सफाई करने का काम भी करते हैं. दरअसल बात यह है कि यह एक सरकारी स्कूल में होने के कारण यहां पर हमेशा से ही फंड्स की कमी रही है. और इसी कारण से सफाई कर्मचारी हर रोज नहीं आ पाते हैं. गिरीश का मानना है कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता इसलिए उन्होंने खुद सफाई की जिम्मेदारी उठाई है. गिरीश खुद 2 घंटे पहले स्कूल पहुंचते हैं और स्कूल के कॉरिडोर, क्लासरूम और वॉशरूम की भी सफाई करते हैं. वे कहते हैं कि उन्हें प्रिंसिपल होते हुए भी इस तरह का काम करने में कोई शर्म महसूस नहीं होती है. वे अपने स्कूल को घर की तरह मानते हैं और इसीलिए यहां पर झाड़ू पोछा करने में हिचकते नहीं है.

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गिरीश बताते हैं कि उन्होंने कई बार अपने इस काम के लिए लोगों से ताने भी सुने. लोगों ने उन्हें कहा कि एक प्रिंसिपल होने के बावजूद एक सफाई कर्मचारी वाला काम उन्हें शोभा नहीं देता है. इन सभी बातों को उन्होंने अनसुना किया और अपने काम में लगे रहे. गिरीश को अपने काम और स्कूल से इतना प्यार है कि वह साल में एक बार भी छुट्टी नहीं लेते हैं. गिरीश साल के 365 दिन स्कूल आते हैं और काम करते हैं. वे कहते हैं कि जब बच्चों के वेकेशंस या फिर छुट्टी होती है तब भी स्कूल में आकर उनके लिए अलग-अलग योजनाएं और पढ़ाई के तरीके ढूंढते रहते हैं. और शायद इसीलिए हर रोज स्कूल आते हैं.

गिरीश के साथ-साथ उनके साथी शिक्षक जिग्नेश ढोलकिया भी उनके साथ मिलकर बच्चों के भविष्य को संवारने का काम कर रहे हैं. उन्होंने पांचवीं से आठवीं कक्षा में पढ़ने वाले बच्चों की हैंडराइटिंग पर कुछ इस कदर काम किया कि आप यकीन नहीं कर पाएंगे कि यह हाथ से लिखी हुई हैंडराइटिंग है. बच्चों की हैंडराइटिंग देखकर आपको लगेगा कि किसी ने आपके हाथ में एक प्रिंटर उसकी कॉपी थमा कर रख दी है. लेकिन यह कोई प्रिंटआउट नहीं बल्कि बच्चों की ही राइटिंग है. स्कूल में पढ़ने वाला हर बच्चा अपने पढ़ाई और स्कूल से बहुत प्यार करता है. कई बार तो ऐसा भी होता है कि स्कूल खत्म होने के बाद भी बच्चे स्कूल नहीं पढ़ाई करने के लिए बैठे रहते हैं. गिरीश का सपना है कि वे इसी तरह बच्चों को आगे बढ़ाते रहें और उन्हें एक अच्छा और जिम्मेदार नागरिक बनाने की कोशिश करें.