परंपरा, यानी हमारे अतीत की विरासत या फिर यूं कहें कि हमारी सामाजिक विरासत का वो अहम हिस्सा जो जिंदगी को रोशनी से भर देता है. पीढ़ी-दर-पीढ़ी जिसकी मौजदूगी हमे जिंदा रहने का एहसास कराती रहती है. अरुणाचल प्रदेश के सेप्पा शहर के एक गांव में ऐसी ही परंपरा को बचाने और विरासत को सहेजने की कोशिश की जा रही है.
जैसा नाम वैसा काम
अरुणाचल प्रदेश के रेंग गांव में एक गुरुकुल है, जिसका नाम है न्युबु न्यवगाम येरको. इस गुरुकुल के नाम में ही इसका मकसद छिपा है. 'न्यूबू' का हिंदी में मतलब होता है पुजारी, 'न्यवगाम' मतलब, बुद्धि और ज्ञान रखने वाला व्यक्ति, 'येरको' यानी सीखने की संस्था. इस गुरुकुल में सिर्फ पढ़ाई नहीं कराई जाती, बल्कि परंपरा, विरासत और सदियों पुराने रीति रिवाजों को संजोया जाता है, जिससे आने वाली पीढ़ियां भी उसे जिंदा रखें.
खत्म होती विरासत को जिंदा रखने की पहल
अरुणाचल प्रदेश में 26 जनजातियां और 100 से ज्यादा उपजातियां बसती है. 50 से अधिक बोलियां बोली जाती हैं, ज्यादातर जनजातियों की अपनी अलग-अलग बोली है, और अलग अलग परंपराएं हैं. ऐसे में ये गुरुकुल खत्म होती जा रही उस विरासत को जिंदा रखने की पहल है.
पुरानी सभ्यता को संजोने की जद्दोजहद
यहां विरासत की खुशबू तो है, साथ में आधुनिकता का सवेरा भी है. पुरानी सभ्यता और साहित्य को संजोने की जद्दोजहद है, तो तेजी से बदलती दुनिया के साथ कदमताल करने की जिद भी है. परंपराओं की ये भूमि महान है. भारत में ऐसी कई परंपराएं हैं. ऐसी कई सभ्यताएं हैं. जो वक्त के साथ खत्म होती जा रही हैं ये गुरुकुल उस विरासत को संजोने की कोशिश है.
(सेप्पा से युवराज मेहता की रिपोर्ट)