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गांव की सुख-समृद्धि के लिए अपने ही घरों को लोगों ने लगा दिया ताला, ग्रामीणों ने फिर से शुरू की 35 साल पहले बंद हुई परंपरा

किसी कारणवश 35 साल से यह यात्रा गांव में नहीं निकली है. लेकिन अब 35 साल के बाद इस गांव में रहने वाले हर उम्र के लोग अपने घरों में ताला मार कर यात्रा पर निकल गए हैं.

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हाइलाइट्स
  • करीब 35 साल पहले एक परंपरा चलाई गई थी

  • 35 साल पहले पड़ा था गांव में अकाल 

आज भी गांव की पुरानी मान्यताएं, परंपराएं और श्रद्धा गांव का आधार बनी हुई हैं. अब ऐसे ही गुजरात के सूरत में 35 साल के बाद एक और पुरानी धार्मिक मान्यता को अपनाया गया है .सूरत जनपद के ओलपाड तहसील में आने वाले इशनपोर गांव के हर घर में ताला लगा हुआ है. गांव में सन्नाटा पसरा है. नहीं यहां कोई अनहोनी नहीं हुई है. बल्कि गांव के सभी लोग सही सलामत हैं. करीबन 1,800 की आबादी वाले इस गांव के सभी लोग अपने घरों को छोड़कर बाहर निकल गए हैं ताकि गांव में सुख समृद्धि के साथ-साथ ग्राम जनों का और पशुओं का जीवन निरोगी बना रहे.

करीब 35 साल पहले परंपरा चलाई गई थी

ओलपाड तहसील के इशनपोर गांव में करीब 35 साल पहले एक परंपरा चलाई गई थी, जिसका नाम जंतर धार्मिक यात्रा था. इसमें गांव के सभी बूढ़े, बच्चे, युवा और महिलाएं 1 दिन के लिए घरों में ताला मार कर यात्रा पर चले जाया करते थे. लेकिन किसी कारणवश 35 साल से यह यात्रा गांव में नहीं निकली. लेकिन अब 35 साल के बाद इस गांव में रहने वाले हर उम्र के लोग अपने घरों में ताला मार कर यात्रा पर निकल गए हैं.

इस यात्रा में शामिल होने वाले ग्रामीण, यात्रा के 3 दिन पहले से नियमों का पालन करना शुरू कर देते हैं. जैसे कि नशे का सेवन न करना, मांसाहार न खाना, किसी मरण प्रसंग में न जाना, यात्रा में जाने के 3 दिन पहले से दाढ़ी बाल न कटाना आदि. 

35 साल पहले पड़ा था गांव में अकाल 

इस जंतर यात्रा के बारे में गांव के सरपंच धर्मेश पटेल के मुताबिक, आज से 35 साल पहले गांव में अकाल मृत्यु और रोग फैला था जिसको लेकर गांव वाले बड़े भयभीत हुए थे. तब गांव की रक्षा के लिए गांव वाले जंतर यात्रा निकालकर करजण तहसील में स्थित कष्टभंजन हनुमान जी के मंदिर गए थे और वहां हनुमान जी से और साधु-संतुओं से अपने गांव की रक्षा के लिए प्रार्थना की थी. उसके बाद गांव में सब कुछ ठीक-ठाक हो गया था.

आपसी कलह के कारण हो गई थी यात्रा बंद 

गांव के सरपंच बताते हैं कि साल 1986 में शुरू हुई जंतर यात्रा गांव वालों की आपसी कलह के कारण बंद हो गई थी. लेकिन एक बार फिर से इशनपोर गांव वासियों ने इस यात्रा को निकालने का निश्चय किया. इस यात्रा के दौरान गांव के सभी ग्रामीण घरों में ताला मारकर बाहर हो जाते हैं.  इतना ही नहीं उनके साथ साथ गाय, भैंस, बैल, स्वान जैसे जीवों को भी गांव के बाहर ले जाया जाता है.

सुबह यात्रा शुरू होती है और शाम को यात्रा खत्म करने के बाद जब गांव वाले वापिस गांव में लौटते हैं, तो फिर महा प्रसादी का आयोजन किया जाता है. और यात्रा के दौरान मंदिर के पुजारी द्वारा तांत्रिक आकृति का कागज गांव वालों को दिया जाता है जिसे गांव के लोग जंतर कहते हैं. फिर उसे वहां से लाकर गांव के मुख्य प्रवेश द्वार के बाहर बांध दिया जाता है, जिसके नीचे से ही सभी ग्रामीण गुजरते हैं.

(संजय सिंह राठौर की रिपोर्ट)