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हरियाणा में 90 साल के कल्लू राम ने अरावली की पहाड़ी पर बनाया शानदार तालाब, दूर-दूर तक नहीं था पानी का कोई स्त्रोत

अरावली के पथरीले रास्तों से होते हुए कल्लू राम जी 50 साल तक अपनी मंजिल पाने के लिए सफर करते रहे. पूरे रास्ते न वो पहले रुकते थे ना अब रुकते हैं. कल्लू राम के बेटे वेद प्रकाश ने बताया शुरू में बेजुबानों के लिए कल्लूराम जी नीचे से ऊपर कंधे पर पानी के मटके रखकर ले जाते थे.

कल्लू राम कल्लू राम
हाइलाइट्स
  • लोग मेरे पिता को पागल बोलते थे अब पैर छूते हैं

  • बेजुबानों की मौत ने किया परेशान

कल्लू राम की उम्र 90 साल है. ये हर रोज कुर्ता गमछा लेकर जूते पहनकर  तैयार होते हैं और साथ में बेटे वेद प्रकाश और पोते राजेश को लेकर निकल पड़ते हैं. तीनों अपनी मंजिल की तरफ निकले हैं यह कहना थोड़ा गलत हो जाएगा क्योंकि इन्होंने अपनी मंजिल तैयार कर ली है. इस मंजिल को तैयार करने में सबसे बड़ी भूमिका निभाई है 90 साल के कल्लू राम जी ने. कल्लू राम जी ने 50 साल तक अरावली पहाड़ी के इन्ही पत्थरों को तोड़-तोड़ कर लगभग 5000 फीट पर एक शानदार तालाब बनाया है. ये कहानी हरियाणा के चरखी दादरी के अटेला कलां गांव की है. 

'बेजुबानों की मौत ने किया परेशान'
कल्लू राम बताते हैं कि वो अरावली की पहाड़ियों में 18 साल की उम्र से ही जानवर चराने जाते थे. गांव के कल्लू राम जी अक्सर ऊंचाई पर चिड़ियों और जंगली जानवरों को मरते देखते थे क्योंकि ऊपर पानी नहीं था, इन बेजुबानों के लिए ही कल्लूराम जी ने 50 साल तक मेहनत की.

'पहले मटके मे लाते थे पानी'
अरावली के पथरीले रास्तों से होते हुए कल्लू राम जी 50 साल तक अपनी मंजिल पाने के लिए सफर करते रहे. पूरे रास्ते न वो पहले रुकते थे ना अब रुकते हैं. कल्लू राम के बेटे वेद प्रकाश ने बताया शुरू में बेजुबानों के लिए कल्लूराम जी नीचे से ऊपर कंधे पर पानी के मटके रखकर ले जाते थे. उस वक्त तो रास्ता और मुश्किल हुआ करता था. कल्लू राम जी बताते हैं कि उन्होंने सरकारी सिस्टम से भी मदद के लिए हाथ फैलाए थे यह उसी का नतीजा था कि इतनी ऊंचाई पर पहाड़ों के बीच इस रास्ते को थोड़ा ठीक करके चलने लायक बनाया गया.

'वाह क्या नजारा है...'
पत्थर के पहाड़ों के बीच इतना सुंदर और शानदार तलाब देखकर हमारी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. ऐसा लगा कि जैसे हम कुछ असंभव सा देख रहे हैं. पूरे रास्ते हमे पानी का कोई और सोर्स दिखाई नहीं पड़ा लेकिन ऊपर पत्थर की पहाड़ी के बीच ये तालाब 70 फीट चौड़ा है. फिलहाल इसमे 5-7 फीट पानी है.

'लोग मेरे पिता को पागल बोलते थे अब पैर छूते हैं'
कालूराम जी के बेटे वेदप्रकाश बताते हैं कि जब उनके पिता ने तालाब के लिए काम करना शुरू किया तो गांव के लोग उन्हें पागल समझते थे. परिवार और रिश्तेदार भी बोलते थे कि यह क्या कर रहे हो क्यों समय खराब कर रहे हो लेकिन  पिता जी को किसी भी कीमत पर ये काम करना ही करना था. इसलिए उन्होंने किसी की बात का ना बुरा माना ना किसी की बातों को सुनकर रुके. आखिरकर 2010 में तालाब बनकर तैयार हो गया. अब वही लोग दूर दूर से इस तालाब को देखने आते हैं और पिता जी के पैर छूकर उनका आशिर्वाद लेते हैं. वेद प्रकाश यह भी बताते हैं कि कई बार सरकारी सिस्टम से मदद मांगी कभी-कभी मदद मिली भी लेकिन उतनी मदद नहीं मिल पाई जितनी हम चाहते थे. हम चाहते हैं कि इस तालाब को हर कोई जाने और यहां तक पहुंचना आसान हो.

'प्रैक्टिस भी और मेंटेनेंस भी'
कल्लू राम जी का पोता 19 साल का राजेश कहता है कि मुझे अपने दादाजी पर बहुत गर्व होता है. अब लोग कहीं मुझे देखते हैं तो यह कहते हैं कि यह तो उनका पोता है जिन्होंने पहाड़ पर तालाब बना दिया जो. राजेश कहते हैं कि वह एक एथलीट हैं. उनके साथ के दूसरे एथलीट सड़क पर दौड़ लगाकर प्रैक्टिस करते हैं लेकिन मैं रोज तालाब तक आता हूं जिससे मेरी पेटिस ज्यादा अच्छे से होती है. साथ ही ज्यादा बोलते हैं कि जब भी तालाब के पास जाओ तो कोई ना कोई काम करके आओ. इस तरह मैं दादा की विरासत का ख्याल भी रख लेता हूं.

दशरथ मांझी आपको याद होंगे अपनी बीवी को समय पर अस्पताल ना पहुंचाने के गम में उन्होंने पहाड़ काटकर रास्ता बनाया था लेकिन कालूराम जी दशरथ मांझी से भी कद में काफी बड़े दिखाई पड़ते हैं उन्होंने 5000 फीट पर पहाड़ काटकर 70 फीट चौड़ा तालाब इसलिए बना दिया क्योंकि इतनी ऊंचाई पर बेजुबान बिना पानी के मर रहे थे. 90 साल के कल्लू राम जी को अभी भी पहचान मिलना भले ही बाकी हो लेकिन उनका कद बहुत बड़ा है.