scorecardresearch

हिमालय को बचाने में जुटा है यह शख्स, लोगों के साथ मिलकर साफ किया 8 हजार किग्रा कचरा, पेश की मिसाल

प्रदीप सांगवान हीलिंग हिमालय फाउंडेशन के संस्थापक और प्रमोटर हैं, जिन्होंने हिमालय से कचरे को साफ करने का कठिन काम संभाला है. सांगवान और उनकी टीम ने अब तक हिमालय की तलहटी से लगभग 8,00,000 किलोग्राम गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरे को साफ किया है.

Pradeep Sangwan (Photo: Healing Himalayas) Pradeep Sangwan (Photo: Healing Himalayas)
हाइलाइट्स
  • हर दिन करते हैं 1.5 टन कचरा इकट्ठा

  • स्थानीय लोगों के साथ मिलकर करते हैं काम

हिमालय घूमने की इच्छा किसकी नहीं है. लेकिन बहुत से लोग ट्रिप के नाम पर हिमालय में सिर्फ कचरा फैला रहे हैं. आजकल पहाड़ों में प्लास्टिक का कचरा, कांच की बोतलें और न जाने क्या-क्या मिलता है. जिस कारण हिमालय की प्राकृतिक सुंदरता खतरे में है. 

इसलिए एक शख्स इस तस्वीर को बदलने में जुटा है. प्रदीप सांगवान हिमालय पर्यटकों द्वारा छोड़े गए कचरे को साफ करने के मिशन पर हैं. इसी उद्देश्य से उन्होंने छह साल पहले हीलिंग हिमालय फाउंडेशन की स्थापना की. उनके फाउंडेशन ने इस मिशन के लिए हिमाचल प्रदेश में पांच मटेरियल रिकवरी फैसिलिटीज की स्थापना की है. 

हर दिन करते हैं 1.5 टन कचरा इकट्ठा
पीटीआई के मुताबिक, हरियाणा के गुरुग्राम के मूल निवासी 37 वर्षीय सांगवान कहते हैं, "हम अपनी 5 मटेरियल रिकवरी फैसिलिटीज में दैनिक आधार पर लगभग 1.5 टन गैर-बायोडिग्रेडेबल कचरा इकट्ठा करते हैं. अगर इकट्ठा न किया जाए तो यह लैंडफिल या खुली हवा में जला दिया जाता." 

सांगवान का कहना है कि उनके प्रोजेक्ट्स में ग्रामीण हिमालयी क्षेत्र में सफाई अभियान, वेस्ट मैनेजमेंट और अन्य गतिविधियां शामिल हैं. हर बार दिसंबर के महीने में, सांगवान अगले साल के लिए एक कैलेंडर तैयार करते हैं और इसके हिसाब से उनके वॉलंटियर्स अपनी ट्रिप्स प्लान करते हैं.

सांगवान का कहना है कि ट्रैकिंग करते समय वे लोग कचरा इचट्ठा करते हैं और एक जगह छेर लगाते हैं. फिर इसे उनके बेस पर लाया जाता है. 

स्थानीय लोगों के साथ मिलकर करते हैं काम
सांगवान का कहना है कि चंडीगढ़ के डीएवी कॉलेज से अपनी पढ़ाई के दौरान, वह हिमाचल प्रदेश के कुछ छात्रों के संपर्क में आए. जिनके साथ उन्होंने 2007-08 में हिमाचल घूमना शुरू किया. 2009 में उन्होंने कई यात्राएं कीं और इस दौरान उन्होंने लाहौल में चरवाहा समुदाय के लोगों से मुलाकात कीय वे इस बात से प्रभावित थे कि कैसे, बहुत दूर-दराज के इलाके में भी, इन लोगों को अपने पर्यावरण की इतनी परवाह है. 

उनकी फाउंडेशन ने दो साल पहले कुल्लू जिले के चितकुल के पास रकचम में अपना पहला वेस्ट कलेक्शन और छंटाई यूनिट स्थापित की. इसके बाद मंसारी (कुल्लू), पूह (किन्नौर), ताबो (स्पीति) और नारकंडा (शिमला) में अन्य चार फैसीलिटीज स्थापित की गईं. रकचम इकाई चितकुल के करीब है, जिसे अंतरराष्ट्रीय सीमा पर भारत के अंतिम गांव के रूप में जाना जाता है.

लोगों को करना है जागरूक
सांगवान का कहना है कि उनकी फाउंडेशन पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, हिमाचल प्रदेश राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य के वन विभाग के साथ मिलकर एक संयंत्र लगाने का काम कर रही है. 

सांगवान अक्सर ऐसे लोगों से मिलते हैं जो बीयर और अन्य कांच की बोतलों को लापरवाही से फेंक देते हैं. ये बोतलें कभी-कभी मवेशियों के खुर में फंस जाती हैं और उन्हें घायल कर देती हैं. इसलिए उनका लक्ष्य लोगों को जागरूक करना और संवेदनशील बनाना है.