इतिहासकार और फूड एक्सपर्ट पुष्पेश पंत के मुताबिक, बिरयानी भारत में सर्वोत्कृष्ट उत्सव का व्यंजन है और एक सुगंधित व्यंजन है. 400 साल पुराना हैदराबाद शहर अपनी विशिष्ट बिरयानी के लिए उतना ही लोकप्रिय है जितना कि यह चारमीनार स्मारक के लिए.
बिरयानी भले ही भारत का शाही व्यंजन हो लेकिन लोग यह पूछने से नहीं चूकते हैं कि यह भारत में कहां से और कब आई?
बिरयानी के प्रति यह प्रेम ही है जो आज देशभर में आपको बिरयानी के कई अलग-अलग स्वाद मिलेंगे. अवध और हैदराबाद के राज्यों में बिरयानी तैयार करने की विधि खासतौर पर तैयार की गईं. जहां पारंपरिक रूप से बिरयानी को मिट्टी के बर्तन में कोयले के ऊपर पकाया जाता है, वहीं लखनवी बिरयानी को तांबे के बर्तन में पकाया जाता है और हैदराबादी बिरयानी का मुख्य आकर्षण केसर है.
बिरयानी' की उत्पत्ति के संबंध में कई किंवदंती मौजूद हैं. इसकी अवधारणा मुगल साम्राज्य से जुड़ी है, जहां शाही रसोइयों ने बैरक में भूखे सैनिकों को खिलाने के लिए चावल और मांस से अनोखी डिश तैयार की. दूसरी मान्यता है कि चावल और मांस का एक समान संयोजन 2 ईस्वी में वर्तमान तमिलनाडु में पाया गया था, जहां घी, चावल, गोमांस और विभिन्न मसालों जैसे तेज पत्ते और काली मिर्च से बना एक व्यंजन था. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं कहानी बिरयानी की.
ईरान से भारत का सफर
बताते हैं कि बिरयानी की उत्पत्ति ईरान में हुई थी. यहां तक कि बिरयानी नाम का मूल फ़ारसी "बिरिंज बिरियान" है जिसका अर्थ है तला हुआ चावल. ईरान में, डेग (बर्तन) को दम पर रखा जाता है और चावल को धीरे से तला जाता है. लेकिन बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, समकालीन ईरान में सड़कों पर बेची जाने वाली बिरयानी में अब चावल नहीं होता है और यह रुमाली रोटी के लिफाफे में पकाए गए मांस के रसीले टुकड़ों में विकसित हो गया है.
लेकिन यह व्यंजन भारत में अलग तरह से विकसित हुआ है, जहां इसका एक रंगीन और विविध इतिहास है. इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि बिरयानी सबसे पहले इस भूमि पर मुगलों के साथ आई थी. बहुत संभावना यह भी है कि इसने तीर्थयात्रियों और कुलीन वंश के सैनिक-राजनेताओं के साथ दक्षिण भारत के दक्कन क्षेत्र की यात्रा की. धीरे-धीरे क्षेत्रीय लोगों ने इसे अपने-अपने हिसाब से अलग-अलग स्वरूप और स्वाद दिया.
कई तरह की होती हैं बिरयानी
वर्तमान केरल में, मालाबार/मोपला बिरयानी आपको मिल जाएगी. कभी-कभी इसमें मांस और चिकन की जगह मछली या झींगा का इस्तेमाल होता है. इसमें मसाला तेज होता है. वहीं, सुदूर पश्चिम बंगाल में, बांग्लादेशी राजधानी के पकवान का ढाकई संस्करण भी कम स्वाद नहीं होता है. और पश्चिमी तट पर, हल्की बोहरी बिरयानी के संरक्षक हैं.
भोपाल में भई बिरयानी की एक किस्म मिल जाएगी, जहां दुर्रानी अफगानों के साथ यह व्यंजन आया. फिर मोरादाबादी बिरयानी (उत्तर प्रदेश के मोरादाबाद शहर में बनाई गई) है जो अब राजधानी दिल्ली में जगह बना रही है. और "बिरयानी थीम पर राजस्थानी सुधार" का सबसे अच्छा उदाहरण पॉपुलर अजमेर शरीफ सूफी दरगाह में गरीब नवाज की दरगाह पर श्रद्धालु तीर्थयात्रियों के लिए तैयार की गई देग है.
हैदराबादी बिरयानी दक्षिण भारतीय स्वादों और मसालों के एक मजबूत मिश्रण से काफी प्रभावित है, जिसमें कच्चे मांस या चिकन को मसालेदार दही के बेस में मैरीनेट किया जाता है, जिसे बाद में चावल के साथ धीमी गति से पकाया जाता है. लखनवी बिरयानी, बिरयानी का हल्का, और स्वादिष्ट संस्करण है, इस विशेष बिरयानी की खाना पकाने की विधि लखनऊ शहर में विकसित की गई है. वहीं, कोलकाता बिरयानी में आलू डाला जाता है.