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History of Chaat: स्वाद नहीं इलाज के लिए हुआ था इस डिश का जन्म, आज है भारत का सबसे पॉपुलर स्ट्रीट फूड, जानिए कहानी चाट की

History of Chaat: भारत की चाट दुनियाभर में मशहूर है. लेकिन क्या आपको पता है कि चाट की कहानी महाभारत, वेदों से होती हुई मुगलों तक पहुंचती है. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं चाट की कहानी.

History of Chaat History of Chaat
हाइलाइट्स
  • 'चाटना' या 'चटपटी' शब्द से उत्पत्ति

  • तमिल साहित्य में है जिक्र

भारत दुनियाभर में अपने स्ट्रीट फूड के लिए फेमस है और स्ट्रीट फूड में भी सबसे ज्यादा पॉपुलर है चाट. जी हां, चाट नाम तो एक है लेकिन हर जगह इसके इंग्रेडिएंट, रूप और स्वाद बदल जाता है. कहीं पर आलू चाट फेमस है तो कहीं भल्ले पापड़ी चाट... तो बहुत से लोग चना चाट खाते हैं. 

इस तरह चाट को कई अलग-अलग तरह से बनाया जा सकता है. लेकिन सबमें जो कॉमन बात रहती है वह है मसाले. चाट मतलब चटपटा स्वाद. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर चाट भारत में कैसे बनना शुरू हुई और फिर इतनी फेमस हो गई कि स्ट्रीट फूड मानी जाने वाली इस डिश के बिना शादी-ब्याह तक का मेनू पूरा नहीं होता है. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं कहानी चाट की. 

'चाटना' या 'चटपटी' शब्द से उत्पत्ति
कुछ लोग कहते हैं कि चाट शब्द की उत्पत्ति इसके शाब्दिक अर्थ 'चाटना' से हुई है, यह इतना स्वादिष्ट था कि लोग उंगलियां चाटने लगे. चाट को अक्सर पीपल के पत्तों से बनी कटोरी, जिसे दोना कहा जाता है, उसमें परोसा जाता है. कुछ लोगों का मानना ​​है कि इसकी उत्पत्ति चटपटी शब्द से हुई है. वास्तव में इसके मूल को लेकर बहुत से सवाल और संदेह हैं. चाट का जिक्र भारत के पुराने साहित्यों में मिलता है. 

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फूड हिस्टोरियन, केटी आचार्य ने अपनी किताब, 'A Historical Dictionary of Indian Food' में 12वीं सदी में राजा सोमेश्वर तृतीय के लिखे संस्कृत टेक्स्ट, मानसोलासा का जिक्र किया है. इस टेक्स्ट में वडा को दूध, दही या चावल के पानी में भिगोकर रखने के बारे में लिखा गया है. वहीं, तमिल साहित्य में दही को दालचीनी, अदरक और काली मिर्च के साथ मसालेदार बनाने का जिक्र है. हो सकता है उस समय वड़े में दही मिलाकर उसे स्वादिष्ट बनाया जाता था. इस तरह उस समय की यह मसालेदार दही हो सकता है सबसे पुरानी चाट है.

मानसोलासा में दिल्ली और उत्तर प्रदेश में फर्मेंट्ड चावल के पानी में भिगोए गए दाल के पकौड़े या कांजी-बड़े के साथ-साथ पपड़ी का भी जिक्र है जिसे पूरिका कहा जाता था. आज की तली हुई कुरकुरी पापड़ियां पूरी तरह से 12वीं शताब्दी के मानसोलासा में वर्णित पुरिकाओं से मिलती जुलती हैं जो चाट को कुरकुरा बनाती हैं. वहीं, मसालों और इमली के पानी का जिक्र महाभारत आदि में भी मिलता है. शेफ संजीव कपूर के मुताबिक, पाक अभिलेखों के अलावा, यूनानी और आयुर्वेद की प्राचीन चिकित्सा प्रणालियों में भी मसालों को मान्यता दी गई है. एक समय था जब मसाले स्वाद के साथ-साथ इलाज के काम भी आते थे. 

मुगलों से भी है कनेक्शन 
चाट से संबंधित एक किस्सा मुगल सल्तनत से भी जुड़ा हुआ है. बताया जाता है, 16वीं शताब्दी में, सम्राट शाहजहां के शासनकाल के दौरान, हैजा का प्रकोप हुआ था. चिकित्सकों और तांत्रिकों ने इसे कंट्रोल करने के भरसक प्रयास किये गये. फिर एक उपाय सुझाया गया कि खाने में ढेर सारे मसालों का इस्तेमाल किया जाए ताकि इससे शरीर के भीतर के जीवाणु मर जाएं. इस प्रकार मसालेदार तीखी चाट का जन्म हुआ, जिसके बारे में माना जाता है कि इसे दिल्ली की पूरी आबादी ने खाया था.  

चाट का एक श्रेय हकीम अली नामक दरबारी चिकित्सक को भी दिया जाता है, जिन्होंने पता लगाया कि एक स्थानीय नहर में गंदे पानी के परिणामस्वरूप गंभीर जल-जनित बीमारियां हो रही हैं और उन्होंने सोचा कि इसे रोकने का एकमात्र तरीका है मसाले. खाने में लाल मिर्च, धनिया, पुदीना जैसे मसालों के साथ इमली को भी जोड़ा जाने लगा. इसलिए, खाने को चटपटी कहा जाने लगा और माना जाता है कि यहीं से चाट का जन्म हुआ. आज चाट के अलग-अलग रूप आपको देखने को मिलते हैं.