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History of Chhole-Bhature: दिल्ली-पंजाब का प्यार है यह डिश, जानिए छोले-भटूरे की कहानी, कुछ इस तरह पहुंचे हिंदुस्तान

छोले-भटूरे ऐसी डिश है जिसके शौकीन हर उम्र के लोग होते हैं. दिल्ली में तो लोगों के अपने ठिकाने हैं जहां वे छोले-भटूरे खाना पसंद करते हैं. आज दस्तरखान में पढ़िए छोले-भटूरे का इतिहास.

छोले-भटूरे का इतिहास छोले-भटूरे का इतिहास
हाइलाइट्स
  • बंटवारे से जुड़ा है नाता

  • मनाया जाता है छोल-भटूरे दिवस

छोले भटूरे सिर्फ डिश नहीं हैं बल्कि प्यार हैं, इश्क हैं या कहें कि एक इमोशन हैं. उम्र कोई भी हो, लेकिन छोले-भटूरों के लिए प्यार सिर्फ बढ़ता ही है. छोले-भटूरे लोकप्रिय उत्तर भारतीय व्यंजन है जो मसालेदार छोले और खमीरी रोटी (भटूरा) से बनाया जाता है. 

इस स्वादिष्ट व्यंजन का एक लंबा और दिलचस्प इतिहास है जिसमें विभिन्न क्षेत्र और संस्कृतियां शामिल हैं. दिल्ली और पंजाब का तो प्यार हैं छोले-भटूरे. हालांकि, सवाल तो मन में आता है कि आखिर छोले-भटूरे बने कैसे या कहां से भारत आए. तो चलिए आज दस्तरखान में करते हैं छोले-भटूरों के इतिहास की बात.  

चना मसाला से प्रेरित है यह डिश?
इस व्यंजन की उत्पत्ति मध्य पूर्व में मानी जाती है, जहां कथित तौर पर चना मसाला नामक एक समान व्यंजन बनाया जाता था. यह व्यंजन मसालेदार वर्जन में भी उपलब्ध है, जहां छोले को मसालों के मिश्रण में पकाया जाता है और आम तौर पर फ्लैटब्रेड के साथ परोसा जाता है. चना मसाला पाकिस्तान, अफगानिस्तान और ईरान जैसे देशों में एक लोकप्रिय स्ट्रीट फूड है. 

बताते हैं कि प्राचीन काल में जैसे-जैसे व्यापार के लिए रास्तों का विस्तार हुआ, चना मसाला अन्य मसालों और पाक परंपराओं के साथ भारत में आया.  ऐसा माना जाता है कि मुगल शासक इस व्यंजन को भारतीय महाद्वीप में लाए थे. मुग़ल अपने समृद्ध और स्वादिष्ट व्यंजनों के प्रेम के लिए जाने जाते थे, और वे अपने साथ एक पाक परंपरा लेकर आए जिसमें फ़ारसी, तुर्की और भारतीय स्वाद और तकनीकों का मिश्रण था.

बंटवारे से जुड़ा है नाता
हालांकि, छोले-भटूरों के बारे में कई कहानियां प्रचलित हैं. ऐसी ही एक कहानी 1947 की है जब भारत में विभाजन के बाद लाखों जिंदगियां बदल गईं. जब चारों ओर लाचारी थी, तब पेशोरी लाल लांबा नाम के एक सज्जन ने दिल्ली के कनॉट प्लेस में मशहूर क्वालिटी रेस्तरां की स्थापना की और अपने साथ छोले की रेसिपी लाए. ऐसा माना जाता है कि यह ख़मीर वाली रोटी पंजाबी रसोइयों ने दी थी, जो पेट भरने वाले व्यंजन तैयार करने में अपनी एक्सपर्टीज के लिए जाने जाते थे. 

एक दूसरी किंवदंती के अनुसार, सीता राम नाम के एक पंजाबी सज्जन 1947 के विभाजन के दौरान अपने परिवार के साथ पश्चिमी पंजाब से चले आए और दिल्ली के पहाड़गंज में अपनी दुकान सीता राम दीवान चंद खोली. दुकान स्थापित करने के बाद, उन्होंने और उनके बेटे दीवान चंद ने पंजाबी छोले और भटूरा नामक खमीरी रोटी लगभग 12 आने में बेचना शुरू किया. 

मनाया जाता है छोले-भटूरे दिवस
हालांकि, यह सटीक रूप से बताना मुश्किल है कि सबसे पहले छोले भटूरे किसने बनाए, लेकिन ऐसा माना जाता है कि यह व्यंजन 20वीं सदी की शुरुआत में लोकप्रिय हो गया था. यह भी माना जाता है कि इस व्यंजन ने ढाबों में काफी लोकप्रियता हासिल की, जो यात्रियों और स्थानीय लोगों को समान रूप से किफायती और स्वादिष्ट भोजन परोसते हैं. 

20वीं सदी की शुरुआत में जब देश भर में राजमार्ग और सड़कें बनाई गईं, तो ढाबे लोकप्रिय हो गए. जिससे औसत व्यक्ति के लिए यात्रा अधिक सुलभ हो गई. हालांकि, यह अब इतना लोकप्रिय है कि यह व्यंजन लगभग सभी पार्टियों और अन्य उत्सवों में मिलता है. इसकी लोकप्रियता इस स्तर तक बढ़ गई कि इस व्यंजन को समर्पित एक पूरा दिन बन गया और यह हर साल 2 अक्टूबर को मनाया जाता है.