चटनी एक क्लासिक इंडियन डिश है. भारत के हर घर में अलग-अलग तरह की चटनी बनती हैं. हरे धनिया से आम, अमरूद जैसे फलों तक, हमारे देश में कई तरह की चटनियां खाई जाती हैं. बहुत सी चटनी तो भौगोलिक क्षेत्र के हिसाब से बनती हैं जैसे उत्तर भारत में पुदीना- धनिया, दक्षिण में नारियल, तो वहीं महाराष्ट्र-गुजरात में मूंगफली की चटनी.
वैसे आपको बता दें कि चटनी का वास्तव में कई देशों में एक व्यापक इतिहास है. और आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं चटनी के चटपटे इतिहास के बारे में.
चटनी की उत्पत्ति
चटनी की उत्पत्ति 2,000 साल पहले भारतीय उपमहाद्वीप में ताजी सामग्री से बने सॉस या पेस्ट के रूप में हुई थी.
माना जाता है कि पहली बार शाहजहां के शासन के दौरान चटनी बनाई गई थी. शाहजहां एक बार बीमार पड़ गए थे और तब हकीम ने उनके बावर्ची को सलाह दी कि शहंशाह को कुछ ऐसा खिलाया जाए जो स्वाद में चटपटा हो और जिसे आसानी से पचाया जा सके.
इस प्रकार चाट का आविष्कार हुआ - दाल और दलहन से इस्तेमाल करके इसे बनाया गया, लेकिन यह मसालेदार पुदीना और धनिये की चटनी और मीठी-खट्टी खजूर और इमली की चटनी के साथ समाप्त हुआ. अंतिम दो सामग्री - चटनी - ने ही चाट को इसका नाम दिया, क्योंकि कहा जाता है कि दोनों की उत्पत्ति संस्कृत शब्द चाटनी से हुई है - जिसका अर्थ है "चाटना."
चटनी को अंग्रेजों ने कैसे अपनाया?
ब्रिटिश वर्जन जिसे आप आमतौर पर आज देखते हैं, मूल एशियाई चटनी की तुलना में बहुत ज्यादा मात्रा में सिरका और चीनी के साथ बनाया जाता है. ऐसा संभवतः इसलिए है क्योंकि यह चटनी को लंबी शेल्फ लाइफ देता है, इसलिए यह लंबे सफर के लिए अधिक उपयुक्त है.
आम जैसे फल जो अक्सर भारतीय चटनी में उपयोग किए जाते हैं, ब्रिटिशर्स ने उनकी जगह सेब और रूबर्ब जैसे बगीचे के फलों को लिया. आज चटनी के कई रूप आपको देखने को मिलते हैं. चटनी अब सिर्फ घरों तक सीमित नहीं रह गई हैं बल्कि बड़े-बड़े रेस्टोरेंट्स भी चटनी परोसते हैं और ये कई डिशेज का स्वाद बढ़ा देती हैं.