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History of Gatte ki Sabji: मारवाड़ की शान है गट्टे की सब्जी, युद्ध के समय बनाते थे सैनिक, 100 साल से ज्यादा पुराना इतिहास

History of Gatte ki Sabji: राजस्थान जाएं और दाल-बाटी-चूरमा के साथ-साथ गट्टे की सब्जी न खाएं तो ऐसा नहीं हो सकता है. गट्टे की सब्जी ऐसा व्यंजन है जिसमें राजस्थान की संस्कृति और इतिहास का मिश्रण है. दस्तरखान में जानिए गट्टे की सब्जी की कहानी.

Gatte ki Sabji (Photo: Instagram/@anushaakula54) Gatte ki Sabji (Photo: Instagram/@anushaakula54)
हाइलाइट्स
  • मारवाड़ की शान- गट्टे की सब्जी 

  • बेसन से बनती हैं सब्जी

राजस्थान जितना अपने किलों, महलों और रजवाड़े इतिहास के लिए प्रसिद्ध है, उतना ही अपने खाने और स्वाद के लिए. यहां वेज-नॉन वेज, हर तरह के व्यंजन बनते हैं और पूरी दुनिया में आपको ऐसा स्वाद नहीं मिलेगा. दाल बाटी चूरमा, केर सांगरी से लेकर घेवर तक, और लाल मांस जैसे सैकड़ों व्यंजन राजस्थान की पहचान हैं. और इन व्यंजनों में एक विश्व-प्रसिद्ध व्यंजन है गट्टे की सब्जी. 

गट्टे की सब्जी ऐसा व्यंजन है जिसमें कोई सब्जी इस्तेमाल नहीं होती है और यह न सिर्फ राजस्थान बल्कि दुनियाभर में शौक से खाई जाती है. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं बेसन से बनने वाली इस सब्जी की कहानी और इतिहास. 

 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

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मारवाड़ की शान- गट्टे की सब्जी 
गट्टे की सब्जी पश्चिम राजस्थान में बनती है जो मारवाड़ रीजन है. सैकड़ों सालों से यह व्यंजन मारवाड़ की शान है. बताया जाता है कि इस व्यंजन की उत्पत्ति राजस्थान में उपलब्ध सीमित सामग्रियों का सही तरह से उपयोग करने के तरीके के रूप में हुई हो. हम सब जानते हैं राजस्थान का कुछ हिस्सा रेगिस्तान है जिसे मरुस्थल कहते हैं. यहां ताजा उपज लेना अक्सर मुश्किल होता था.  

ऐसे में ताजा सब्जियों के ज्यादा विकल्प नहीं होते थे. इस परेशानी का हल उन चीजों में ढूंढा गया जो सालों-साल यहां उगती थीं. जैसे चने.... चने के आटे यानी बेसन का भरपूर इस्तेमाल किया गया. बेसन में मसाले मिलाकर गट्टे तैयार किए गए और इन्हें फिर दही की ग्रेवी में पकाया जाता था. मारवाड़ियों के घरों में कोई भी खास मौका बिना गट्टे की सब्जी पूरा नहीं होता है. 

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युद्धों से जुड़े हैं तार 
एक प्रचलित मान्यता यह भी है कि गट्टे की सब्जी युद्धों के दौरान सैनिकों ने बनाई थी. दरअसल, मारवाड़ हमेशा से ही युद्ध भूमि रहा है. अक्सर लोग किसी न किसी युद्ध में शामिल होते थे और ऐसे में, सैनिक वही व्यंजन बनाते थे जो लंबे समय तक चल सकें और जिनके बनाने की सामग्री आसानी से उपलब्ध हो. 

ये व्यंजन बिना गर्म किए खाए जा सकें. इस तरह के व्यंजनों में गट्टे की सब्जी चलन में आई. सैनिकों के पास बेसन, मसाले और घी होता था तो उनके लिए बेसन के ऐसे व्यंजन बनाना आसान था और इन व्यंजनों के तासीर में भारी होने से लंबे समय तक भूख नहीं लगती थी. 

धीरे-धीरे गट्टे की सब्जी शाही परिवारों की रसोई तक पहुंची और खास मौकों पर इसे बनाया जाने लगा. आज जब भी कोई राजस्थान घूमने निकलता है तो जगह-जगह उन्हें गट्टे की सब्जी खाने को मिलती है. गट्टे की सब्जी राजस्थान की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत है.