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History of Gulab Jamun: इस मिठाई में न फूल है और न फल, तो फिर कैसे बनी गुलाब जामुन, जानिए इतिहास

History of Gulab Jamun: आज दस्तरखान में पढ़िए कहानी गुलाब जामुन की. गुलाब जामुन का इतिहास सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है बल्कि अरब और फारस तक फैला हुआ है.

History of Gulab Jamun History of Gulab Jamun
हाइलाइट्स
  • दिलचस्प है गुलाब जामुन का इतिहास

  • मौजूद हैं कई वैरायटी 

भारत मिठाइयों के लिए मशहूर है. हमारे देश में अनगिनत तरह की मिठाइयां बनती हैं और इनका स्वाद सिर्फ भारत तक सीमित नहीं है बल्कि दूसरे देशों में भी भारतीय मिठाइयों के दीवाने हैं. भारतीय मिठाइयों में रसीली गुलाब जामुन की खास जगह है जो एक बार खाता है बस इनका दीवाना हो जाता है. 

उत्तर भारत में शादी हो या कोई दूसरा शुभ मौका, गुलाब जामुन तो मिठाइयों के मेन्यू में होते ही होते हैं. हमारे देश में गुलाब जामुन बनाने और खाने-खिलाने की परंपरा बरसों से चली आ रही है. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं इस रसभरी मिठाई का रसभरा इतिहास. 

कैसे पड़ा गुलाब जामुन नाम 
गुलाब जामुन को दूध से बनाया जाता है. सबसे पहले दूध से खोया बनता है और फिर इसी खोए से गुलाब जामुन बनाई जाती हैं. हालांकि, आजकल बहुत से लोग दूध के खोए की जगह कई मॉडर्न चीजें जैसे ब्रेड, दूध पाउडर आदि इस्तेमाल करने लगे हैं. स्वाद बढ़ाने के लिए गुलाब जामुन को अक्सर बादाम और काजू जैसे सूखे मेवों से सजाया जाता है. 

अब सवाल है कि इस मिठाई में न फूल है न फल तो भई इसका नाम गुलाब जामुन कैसे पड़ा. इस सवाल का आसान सा जवाब है. दरअसल शब्द "गुलाब" फ़ारसी शब्द 'गुल' और 'अब' से बना है. गुल का अर्थ है फूल और अब का अर्थ है पानी, जो गुलाब जल-सुगंधित सिरप का संदर्भ देता है. "जामुन" शब्द साथ में इसलिए जुड़ गया क्योंकि इस मिठाई का आकार जामुन फल से मिलता है. 

दिलचस्प है गुलाब जामुन का इतिहास
ऐतिहासिक रूप से, गुलाब जामुन की उत्पत्ति से संबंधित कई अलग-अलग दिलचस्प किस्से हैं. बहुत से लोगों के अनुसार, इस मिठाई को गलता से शाहजहां के एक शाही खानसामे ने बनाया था. हालांकि, यह भी बताया जाता है कि उन्होंने इस मिठाई की प्रेरणी फ़ारसी या तुर्की परंपराओं की मिठाई से ली थी. दरअसल, फ़ारसी मिठाई 'बामीह' और तुर्की की 'तुलुम्बा,'दोनों स्वाद, बनावट और सामग्री के मामले में गुलाब जामुन के समान हैं. 

हालांकि, गुलाब जामुन के विपरीत इन्हें ठंडा परोसा जाता है. एक मान्यता यही है कि इन मिठाइयों से ही मुगल रसोइयों ने प्रेरणा ली. और तो और अरबी मिठाई 'लुकमत अल-कादी' भी गुलाब जामुन के समान है. मशहूर फूड हिस्टोरियन और लेखक माइकल क्रॉन्डल की किताब, 'द डोनट: हिस्ट्री, रेसिपीज़, एंड लोर फ्रॉम बोस्टन टू बर्लिन' में जिक्र है कि फारसी लोग अपने साथ यह 'गोल पकौड़ा' लाए थे जो आखिर में गुलाब जामुन बन गया. 

मौजूद हैं कई वैरायटी 
भारत में अलग-अलग क्षेत्रों में गुलाब जामुन की कई  वैरायटी मौजूद हैं. इसका मतलब है कि अलग-अलग तरह के गुलाब जामुन, जिनके नाम भले अलग हैं लेकिन स्वाद के मामले में लगभग समान हैं. एक वैरायटी है पश्चिम बंगाल की मिठाई 'लेडिकेनी.' यह आकार में बेलनाकार है. इसमें और गुलाब जामुन के बीच यही एकमात्र अंतर है. हालांकि, लेडिकेनी का यह नाम रखे जाने के पीछे एक रोमांचक कहानी है. 

1850 के दशक में, कलकत्ता के प्रतिभाशाली हलवाईयों में से एक भीम चंद्र नाग को गवर्नर जनरल लॉर्ड चार्ल्स कैनिंग की पत्नी लेडी कैनिंग के लिए एक विशेष मिठाई तैयार करने के लिए कहा गया था, जो अपने पति के साथ भारत आ रही थीं. उन्होंने इस बेलनाकार मिठाई को बनाया जो लेडी कैनिंग को बहुत पसंद आई और इसी कारण इस मिठाई का नाम लेडीकेनी पड़ गया. 

नेपाल और पाकिस्तान में इस मिठाई को गुलाब जामुन के नाम से ही जाना जाता है. मालदीव में इसे 'गुलाबबुजानू' और बांग्लादेश और म्यांमार में 'गुलाब जाम' के नाम से जाना जाता है. यह मॉरीशस, फिजी, मलय प्रायद्वीप, दक्षिण अफ्रीका और कैरेबियाई देशों त्रिनिदाद और टोबैगो में भी आम है, जहां दिलचस्प बात यह है कि इसे 'रसगुल्ला' कहा जाता है.