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History of Jalebi: ज़ुल्बिया, जौलबिया या जल-वल्लिका... और फिर बनी हमारी जलेबी, जानिए इस रसभरी मिठाई की कहानी

History of Jalebi: भारत में बहुत सी मिठाईयां हैं लेकिन जलेबियों की बात ही अलग है. रसभरी और कुरकुरी जलेबी से कभी मन नहीं भरता है. आज दस्तरखान में जानिए इस मजेदार मिठाई की कहानी.

History of Jalebi History of Jalebi
हाइलाइट्स
  • भारतीय जलेबी साधारण चीनी सिरप के साथ बनती है

  • इंदौर में लोग जलेबी को जलेबा के नाम से जानते हैं

जलेबी का नाम सुनते ही मुंह में पानी आने लगता है. ठंडी जलेबी का गर्म केसर दूध के साथ तो गर्म जलेबी का ठंडी रबड़ी के साथ, अलग ही स्वाद आता है. दुनियाभर में जब भी जलेबी की बात होती है तो इसे भारत के साथ जोड़ा जाता है जबकि आपको जानकर हैरानी होगी कि जलेबी भारत की नहीं ईरान की देन है. जी हां, जलेबी ईरान से भारत आई है. 

रसभरी , कुरकुरी जलेबी की जड़ें ईरान में हैं जहां इसे ज़ुल्बिया के नाम से जाना जाता था. अब सवाल है कि यह भारत कैसे पहुंची. आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं जलेबी की कहानी. 

जब जलेबी ज़ुल्बिया थी!
ज़ुल्बिया को आप जलेबी की कजिन कह सकते हैं, जिसे पहली बार 10वीं शताब्दी की शुरुआत में ईरान या फारस में पेश किया गया था. उस समय, रमज़ान की इफ्तार सभाओं के दौरान सुबह गर्म चाय के साथ जुल्बिया खाई जाती थी. इस मिठाई को प्रसिद्ध बनाया एक अरब लेखक, इब्न सय्यर अल-वरराक की अरबी रसोई की किताब में लोकप्रिय बनाया गया था. 13वीं शताब्दी में एक प्रसिद्ध अरब लेखक, मुहम्मद बिन हसन अल-बगदादी ने किताब अल-तबीख में भी इसका जिक्र है.

बताया जाता है कि ज़ुल्बिया अभी भी आधुनिक ईरान में एक प्रसिद्ध मिठाई है और नौरोज़ नामक फ़ारसी नव वर्ष की थाली में इसका होना जरूरी है. ज़ुल्बिया और जलेबी अलग-अलग नाम वाले एक ही व्यंजन नहीं हैं. इनका स्वाद एक जैसा होता है, लेकिन बनाने का तरीका और दिखने का तरीका अलग-अलग होता है. ज़ुल्बिया में एक फ्लोरल पैटर्न होता है, जबकि जलेबी में सर्कुलर पैटर्न होते हैं. इसके अलावा, फ़ारसी रेसिपी में शहद और गुलाब जल सिरप की जरूरत होती है, जबकि भारतीय जलेबी साधारण चीनी सिरप के साथ बनाई जाती है. 

ज़ुल्बिया भारत में बनी जलेबी
मध्ययुगीन काल के दौरान, तुर्की और फ़ारसी व्यापारी और कारीगर भारत के तटों पर पहुंचे और स्थानीय व्यंजनों में स्वादिष्ट ज़ुल्बिया को पेश किया. समय के साथ, इस मिठाई को भारतीयों ने जौलबिया, जल-वल्लिका, कुंडलिका और कई अन्य नामों से अपना लिया. अंततः, इसे जलेबी के नाम से जाना जाने लगा, जो मूल नाम का एक प्रकार है. 15वीं शताब्दी तक, जलेबी भारतीय त्योहारों, शादियों और यहां तक ​​कि मंदिरों में भी लोकप्रिय हो गई थीं. 

1450 ई. में एक जैन लेखक जिनासुर ने अपने जैन धर्मग्रंथ प्रियमकर्णपकथा में बताया है कि कैसे धनी व्यापारी अपनी सभाओं में जलेबी का आनंद लेते थे. 1600 ई. का संस्कृत पाठ, गुण्यगुणबोधिनी, वर्तमान जलेबी के समान मिठाई की सामग्री और विधि की रूपरेखा बताता है. 16वीं शताब्दी में, जलेबी का उल्लेख भोजन कुतुहला पुस्तक में मिलता है. यह पुस्तक उपमहाद्वीप के पहले नुस्खा और खाद्य विज्ञान ग्रंथों में से एक है और इसे रघुनाथ नामक एक भारतीय लेखक ने लिखा था. 

भारत की जलेबी
मीठी और चाशनीयुक्त भारतीय व्यंजन जलेबी का एक विविध इतिहास है जो सदियों और क्षेत्रों तक फैला हुआ है. इसे उत्तरी भारत में जलेबी के रूप में जाना जाता है, दक्षिण में इसे अक्सर जिलेबी के रूप में उच्चारित किया जाता है. यह मिठाई देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से जानी जाती है. बंगाल में इसे जिलापी कहा जाता है, जबकि इंदौर में लोग इसे जलेबा के नाम से जानते हैं. 

न केवल नाम, बल्कि इसे परोसने का तरीका भी क्षेत्रों के अनुसार अलग-अलग होता है. उदाहरण के लिए, बंगाल में छेना जिलापी है, जबकि मध्य प्रदेश और हैदराबाद में क्रमशः मावा और खोवा जलेबी से भी जलेबियां बनाई जाती हैं. जलेबी सदियों से लाखों भारतीयों के दिलों पर राज कर रही है.