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History of Kebabs: भारत में 1000 साल से ज्यादा पुराना है कबाब का इतिहास, आज मौजूद हैं सैकड़ों वैरायटी

History of Kebabs: इब्न बतूता के अनुसार, कबाब भारत में मुगल शासन से पहले भारतीय रसोई में मौजूद थे. इस काल में शाही रसोई की कमान खानसामा (पुरुष रसोइया) के हाथ में होती थी. जिसमें तुर्की, ईरानी और अफगानी खानसामा का बोलबाला था.

History of Kebabs History of Kebabs
हाइलाइट्स
  • अफगानों के साथ भारत पहुंचा कबाब 

  • कबाब का इतिहास हजारों साल पुराना है

आप लखनऊ जाएं और टुंडे कबाबी के गलौटी कबाब न खाएं.. तो फिर आप क्या ही लखनऊ गए. जी हां, इस जगह के कबाब दुनियाभर में मशहूर हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि लखनऊ के अलावा, और भी बहुत सी जगहें हैं भारत में जहां के कबाब मशहूर हैं. दूर-दूर से लोग कबाबों का लुत्फ उठाने इन मशहूर जगहों पर पहुंचते हैं. लेकिन कबाब खाते समय कभी आपके दिन में यह सवाल आया है कि आखिर पहली बार कबाब बना कैसे होगा और कहां इसे बनाया गया?

आज दस्तरखान में हम आपको बता रहे हैं कहानी कबाब की. और आपको जानकर दैरानी होगी की कबाब का इतिहास हजारों साल पुराना है. मोरक्को के प्रसिद्ध यात्री इब्न बतूता ने उल्लेख किया है कि 1200 ईस्वी में कबाब भारतीय राजपरिवारों के खाने का हिस्सा हुआ करता था. 

कबाब का इतिहास 
कबाब का उल्लेख पहली बार 9वीं शताब्दी ईस्वी के ग्रंथों में किया गया था, और संभवतः कबाब की उत्पत्ति इससे भी पहले हुई थी. ऐसा माना जाता है कि इस व्यंजन की उत्पत्ति फ़ारसी साम्राज्य में हुई थी, जहां यह लोकप्रिय स्ट्रीट फूड था. "कबाब" शब्द फ़ारस से निकला है, जिसका अर्थ है "तलना" या "भूनना." ऐसा माना जाता है कि कबाब की उत्पत्ति मध्ययुगीन फ़ारसी शहर समरकंद में हुई थी, जहां मूल रूप से मेमने के मांस से कबाब बनाए जाते थे. यह व्यंजन तेजी से पूरे मध्य पूर्व और मध्य एशिया में फैल गया और ओटोमन व्यंजनों का प्रमुख हिस्सा बन गया. 

इसके बाद की शताब्दियों में, कबाब एक लोकप्रिय व्यंजन बने रहे, क्योंकि उन्हें खुली आग पर पकाया जा सकता था और इसके लिए किसी विशेष उपकरण या सामग्री की जरूरत नहीं होती थी. 18वीं सदी के अंत में, कबाब ने भारत में अपनी जगह बनाई, यहां वे जल्द ही एक लोकप्रिय स्ट्रीट फूड बन गए.  

हालांकि, एक मान्यता यह भी है कि कबाब की उत्पत्ति तुर्की में हुई थी जब सैनिक खुले मैदान में आग पर शिकार किए गए जानवरों के ताजा मांस को भूनते थे. इस उत्पत्ति के बारे में 1377 में किस्सा-आई यूसुफ की तुर्की लिपि में जिक्र है और अब यह सबसे पुराना सोर्स है जहां कबाब को एक व्यंजन के रूप में बताया गया है. 

अफगानों के साथ भारत पहुंचा कबाब 
बताया जाता है कि कबाब मुगलों के भारत आने से पहले ही भारतीय रसोई में पहुंच चुका था. अफगान लुटेरे और आक्रमणकारी कबाब को भारत लेकर आए. हालांकि, मुगलों के आने से पहले कबाब का मतलब था मीट का मैरिनेशन, जिसे खुले ओवन में पकाया जाता था. लेकिन मुगलों ने इसे और स्वादिष्ट व्यंजन के रूप में विकसित किया. मुगलों के कबाब नरम और रसीले थे, जिसे मसालों और सूखे मेवों से बनाया गया. 

मशहूर शेफ मारुत सिक्का का कहना है कि भारत पारंपरिक रूप से एक शाकाहारी देश है, इसलिए यह कबाब का जन्मस्थान नहीं है. सिर्फ राजपुताना जैसे क्षेत्रों में ही मांस खाने का इतिहास है. यहां मांस का पहला प्रमाण जो मिलता है वह है सूला जो कबाब से काफी मिलता-जुलता है. इसे ज्यादातर जंगली सूअर या हिरण के मांस से बनाया जाता था. 

लेकिन भारतीय संदर्भ में कबाब सिर्फ मांस के बारे में नहीं है. बल्कि कुछ स्वादिष्ट भारतीय विविधताएं जैसे हरियाली कबाब, पनीर टिक्का और दही के कबाब की उत्पत्ति भारत में हुई है. Just Kebabs - Celebration of 365 Kebab के लिए के लेखक शेफ दविंदर कुमार ने अपनी किताब में 120 शाकाहारी कबाबों की एक सूची दी है. 

इनमें से कुछ के बारे में आज हम आपको बता रहे हैं:
टुंडे कबाबी के गलौटी कबाब:
मुलायम, रसीली, मुंह में घुल जाने वाली पैटी जैसे लखनऊ के कबाबों को इनका नाम निर्माता हाजी मुराद अली के नाम पर मिला है. उनका केवल एक हाथ था और इसलिए उन्हें लोग टुंडे कहते थे. इसी नाम पर इस जगह का नाम टुंडे कबाबी पड़ गया. दरअसल, नवाब वाजिद अली शाह के दांत नहीं थे इसलिए वह कुछ ऐसा कबाब खाना चाहते थे जो नरम हो. हाजी मुराद ने उन्हें ऐसे कबाब बनाकर दिए. उन्होंने कबाब में 160 मसालों का इस्तेमाल किया था. साथ ही, कबाब इतना नरम और कोमल था कि इसका नाम गलौटी कबाब पड़ गया. 

बिहारी कबाब:
बिहारी कबाब का स्वाद देहाती होता है. इनमें मसाले ज्यादा नहीं होता हैं बल्कि ये खुली आंच में भुने हुए मांस के टुकड़े होते हैं. मसालों का उपयोग सिर्फ मांस को मैरीनेट करने और उसे नरम बनाने के लिए किया जाता है. कहते हैं कि इसकी उत्पत्ति अरब और तुर्की आक्रमणकारियों के शिविरों में हुई थी जो अपनी तलवार की धार पर मांस के टुकड़े तिरछा करके भूनते थे. 

काकोरी कबाब:
काकोरी न केवल 1925 के प्रसिद्ध काकोरी षडयंत्र के लिए, बल्कि स्वादिष्ट कबाब के लिए भी जाना जाता है. उत्तर प्रदेश के इस छोटे से शहर के नाम से ही यहां के कबाब प्रसिद्ध हैं. काकोरी कबाब अवधी व्यंजनों के सबसे प्रसिद्ध व्यंजनों में से एक है और अपनी नरम बनावट और सुगंध के लिए जाने जाते हैं. इसे सीखों में भूना जाता है और भारतीय रोटी के साथ परोसा जाता है. 

चपली कबाब:
प्याज, टमाटर, अंडे और अनार के बीज का उपयोग करके मांस कीमा बनाया जाता है, ऐसा कहा जाता है कि इनकी उत्पत्ति उत्तर पश्चिमी भारत, अब पाकिस्तान में हुई थी. इसकी उत्पत्ति पश्तून व्यंजनों से हुई है और इसके सपाट दिखने के कारण इसे चपली कहा जाता है.

कलमी कबाब:
यह एक लोकप्रिय भारतीय कबाब है जो चिकन ड्रमस्टिक्स को मैरीनेट करके और तंदूर में भूनकर बनाया जाता है. मसाले, दही और पुदीना सामग्री का हिस्सा हैं.

रेशमी कबाब:
इसमें निश्चित रूप से बहुत अधिक मुगल प्रभाव है जिसे खाना पकाने की प्रक्रिया में देखा जा सकता है. इसमें बहुत ज्यादा क्रीम और काजू का उपयोग किया जाता है. यह बोनलेस चिकन से बनता है. इसे मांस के टुकड़ों को दही, क्रीम, काजू के पेस्ट, मसालों में मैरीनेट करके पकाया जाता है और फिर तंदूर में ग्रिल किया जाता है. इसकी ऊपरी परत परतदार और अंदर से मुलायम होती है. 

शामी कबाब:
भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में एक लोकप्रिय कबाब, यह मांस, छोले और अंडे के साथ बनाया जाता है. नाश्ते के रूप में खाया जाने वाला कबाब मुगल काल से चला आ रहा है जब सीरियाई रसोइयों ने सम्राट की रसोई में इसका आविष्कार किया था. बिलाद-अल शाम सीरिया का पुराना नाम था.

शिकमपुर कबाब या पत्थर के कबाब:
हैदराबाद का यह कबाब स्थानीय और विदेशी सामग्रियों के संयोजन का बेहतरीन उदाहरण है. मांस के प्रति मुगलों के प्रेम को आंध्र प्रदेश के गर्म और तीखे मसालों के साथ मिलाकर इस रसीले और सुगंधित कबाब को बनाया गया. यह अनूठी तैयारी मूल रूप से  पत्थर को गर्म करके बनाई गई थी और उसी पर इसे रखा गया था. यह इसे एक अनोखा स्मोकी फ्लेवर देता है.

शीश कबाब:
यह मूलतः अरब के नियमित आहार का हिस्सा है. दिलचस्प बात यह है कि अंग्रेजी में जब भी कबाब का जिक्र किया जाता है तो आमतौर पर उनका मतलबय शीश कबाब से ही होता है. इसे बनाने के लिए मांस को सीख में पिरोया जाता है और प्याज, टमाटर, शिमला मिर्च, मशरूम आदि जैसी कुछ सब्जियों के साथ पकाया जाता है. कबाब का सबसे पुराना वर्जन माना जाता है, यह हर जगह उपलब्ध है. 

सुतली कबाब:
इसका नाम उस धागे (सुतली) से लिया गया है जिसका उपयोग कबाब को सींख से बांधने में किया जाता है क्योंकि मांस के टुकड़े इतने नरम होते हैं कि अगर उन्हें ठीक से न बांधा जाए तो वे नीचे गिर जाते हैं. यह बांग्लादेश में लोकप्रिय है.

डोनर कबाब:
डोनर कबाब तुर्की मूल का है और शवर्मा के समान है क्योंकि यह भी घूमने वाले सींकचे पर मांस को भूनकर बनाया जाता है. इसे पीटा ब्रेड के साथ परोसा जाता है. इनके अलावा भी और कई तरह के कबाब दुनियाभर में मशहूर हैं और इनकी सैकड़ों वैरायटी को भारत में ही उपलब्ध हैं.